पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में भारत के हमले के बाद दोनों देशों के बीच हालात बहुत ही तनावपूर्ण हो गए हैं. इस घटनाक्रम पर दुनिया के कई देशों की प्रतिक्रिया आई है. इसमें चीन भी शामिल है.
चीनी विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में भारत के हवाई हमले को 'अफ़सोसजनक' बताया है. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि वे मौजूदा हालात को लेकर 'चिंतित' हैं.
चीनी विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया, "भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे के पड़ोसी हैं और हमेशा रहेंगे. वे दोनों चीन के पड़ोसी भी हैं. चीन सभी तरह के आतंकवाद का विरोध करता है."
मंत्रालय के प्रवक्ता ने दोनों देशों से "शांत रहने, संयम बरतने और ऐसी कार्रवाइयों से बचने की अपील की है, जो स्थिति को और जटिल बना सकती हैं."
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विशेषज्ञों को लगता है कि चीन कभी भी यह नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान अस्थिर हो, जिससे उसके करोड़ों का निवेश बेकार हो जाए.
पाकिस्तान में चीन ने
इसके अलावा चीन, पाकिस्तान में चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपेक) और बेल्ट एंड रोड के तहत एक बड़ा निवेश कर रहा है.
ऐसे में चीन नहीं चाहेगा कि मध्य एशिया को सड़क से जोड़ने का उसका सपना अधूरा रह जाए.
चीनी मामलों के जानकार और बेनेट यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ तिलक झा भी इस बात से पूरी तरह से सहमत नज़र आते हैं.
वह कहते हैं, "इस क्षेत्र में अगर तनाव बढ़ता है तो इसका सीधा असर चीन के निवेश और सपनों पर पड़ता है. चीन कभी नहीं चाहेगा कि ऐसा कुछ हो जिससे उसके हित प्रभावित हों."
चीन और पाकिस्तान के बीच राजनयिक संबंध तो 21 मई, 1951 को शुरू हो गए थे.
पाकिस्तान और चीन के बीच कई दशकों से रक्षा सहयोग और राजनयिक संबंध रहे हैं. इस दौरान आर्थिक दृष्टि से भी पाकिस्तान की चीन पर निर्भरता बढ़ी है.
चीन ने पाकिस्तान को हथियारों की सप्लाई तो की लेकिन भारत के ख़िलाफ़ किसी युद्ध में सीधे साथ देने नहीं आया.
पश्चिमी देशों से जब भारत की नज़दीकी बढ़ी तो पाकिस्तान का झुकाव चीन की ओर हुआ.
क़र्ज़ से लेकर एफ़एटीएफ़ (फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स) की सख़्त कार्रवाइयों से बचने के मौक़ों पर चीन पाकिस्तान की मदद के लिए आगे आया है.
लेकिन इस दौरान भारत के साथ संबंधों में भी चीन ने एक संतुलन क़ायम रखा है.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में चाइना स्टडीज़ के प्रोफेसर आर वरा प्रसाद कहते हैं, "चीन, भारत और पाकिस्तान के बीच कभी भी युद्ध या इसकी स्थिति नहीं चाहेगा. युद्ध होता है तो चीन का हित प्रभावित होगा और मध्य एशिया में उसके लिए संकट खड़ा हो जाएगा."
वह कहते हैं कि इस समय चीन का टैरिफ़ को लेकर अमेरिका से एक अलग स्तर पर तनाव चल रहा है. ऐसे में चीन यह ज़रूर चाहेगा कि इस समय में भारत के साथ उसके संबंध बेहतर रहें.
प्रसाद कहते हैं, "चीन यूं भी अपने हितों की तरफ़ ज़्यादा झुकाव रखता है न किसी विवाद में उलझना चाहता है. यही वजह है कि चीन पाकिस्तान की तरफ़ से कभी भी भारत के ख़िलाफ़ किसी भी युद्ध में सीधे साथ नहीं आया है."
डॉ तिलक झा कहते हैं, "इस समय चीन पाकिस्तान और भारत से सटे शिनजियांग प्रांत में विकास चाहता है. यह तभी संभव है जब पाकिस्तान में उसका 'चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर' प्रोजेक्ट और बेल्ट एंड रोड परियोजना सफल हो. भारत पहले ही इसका विरोध करता आ रहा है. ऐसे में वह कतई नहीं चाहेगा कि इसके विरोध का स्तर और बढ़े."
चीन इस समय पाकिस्तान का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और आयात का सबसे बड़ा स्रोत है.
चीन कस्टम्स डिपार्टमेंट के अनुसार, चीन और पाकिस्तान के बीच 2024 में द्विपक्षीय व्यापार 23.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है.
पिछले साल की तुलना में यह बढ़ोतरी है.
वहीं पाकिस्तान को चीन का निर्यात 17 प्रतिशत बढ़कर 20.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है और आयात 18.2 प्रतिशत घटकर 2.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया है.
पाकिस्तान को चीन ने 2024 में सबसे ज़्यादा इलेक्ट्रानिक मशीनरी और उपकरणों का निर्यात किया. इसका बाजार मूल्य क़रीब 5.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था.
इसमें से फ़ीसदी 35 प्रतिशत सेमीकंडक्टर डिवाइस और 27 फ़ीसदी स्मार्टफ़ोन सहित टेलीफ़ोन सेट थे.
चीन ने पाकिस्तान को 2.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर के परमाणु रिएक्टर, बॉयलर, मशीनरी और यांत्रिक उपकरण का निर्यात किया.
इसके साथ ही 1.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लौह और इस्पात उत्पादों का निर्यात भी किया.
डॉ तिलक झा कहते हैं, "जब आप किसी देश के साथ इतने बड़े स्तर पर व्यापार करते हैं तो स्वाभाविक है कि आप चाहते हैं कि वहां के हालात बेहतर रहें. जिससे आर्थिक हितों को साधा जा सके."
आर वरा प्रसाद कहते हैं, "पाकिस्तान में पहले से ही चीन की परियोजना पर कई संकट मंडरा रहे हैं. ऐसे में दो पड़ोसी देशों के बीच तनाव की स्थिति चीन के लिए बेहतर नहीं होगी."
वह कहते हैं, "पाकिस्तान में तो पहले ही से ही चीन के नागरिकों की सुरक्षा का संकट है और फिर अगर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता है तो उसकी तमाम परियोजनाएं ही ख़तरे में आ जाएंगी."

अमेरिका से बढ़ती दूरियों के बाद पाकिस्तान चीन की तरफ मुड़ता चला गया है.
इस समय चीन और पाकिस्तान न केवल संयुक्त सैनिक अभ्यास करते हैं बल्कि पाकिस्तान बड़े पैमाने पर चीन से आधुनिक हथियार ख़रीदता है.
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच वर्षों के दौरान पाकिस्तान में हथियारों के आयात का 81 फ़ीसदी हिस्सा चीन से हुआ.
पिछले पांच वर्षों में पाकिस्तान के पास आए पांच में से चार हथियार चीनी हैं. चीन ने पाकिस्तान को पीएल-15 मिसाइलें दी हैं. पीएल-15 और एसडी-10 जैसी मिसाइलें चीन की आधुनिक बीवीआर तकनीक से बनी हैं. ये मिसाइलें जहाज़ों को लंबी दूरी से हवा में नष्ट करने की क्षमता रखती हैं.
पहलगाम हमले के बाद बीबीसी उर्दू ने पाकिस्तान की से चीन के रवैया के बारे में सवाल पूछा था.
उनका कहना था कि चीन को पाकिस्तान के ज़रिए खाड़ी के देशों तक पहुंच मिलती है.
तसनीम असलम ने बताया था, "चीन इस क्षेत्र का बड़ा देश है जिसके दोनों प्रतिद्वंद्वी देशों के साथ व्यापारिक संबंध हैं. यह चीन के हित में है कि क्षेत्र में शांति व्यवस्था क़ायम रहे. चीन को अपने आर्थिक हितों की सुरक्षा चाहिए."
झा कहते हैं, "दोनों देशों में शांति ही चीन के विकास में मदद करेगी अन्यथा परियोजनाएं पूर्ण होने के बाद भी अगर सुरक्षा का संकट और अस्थिरता के हालात बने रहे तो फिर उस परियोजना का व्यापारिक लाभ चीन कैसे उठा पाएगा? इस समय ग्वादर पोर्ट बनकर तैयार है लेकिन चीन इसका लाभ तभी उठा पाएगा जब शांति होगी."
विवाद में नहीं उलझना चाहता है चीनभारत, पाकिस्तान और चीन संबंधों को लेकर आर वरा प्रसाद कहते हैं, "चीन हमेशा ही दोनों पक्षों से संयम बरतने को कहता है. वह किसी भी विवाद में नहीं उलझना चाहता है."
वरा प्रसाद कहते हैं, "यहां भी चीन यही कर रहा है. चीन की मजबूरी यह भी है कि वह अमेरिका के साथ व्यापारिक युद्ध में फंसा हुआ है, इसलिए वह भारत के साथ नया मोर्चा नहीं खोलना चाहता."
वहीं भारत चीन का एक बड़ा व्यापारिक भागीदार है इसलिए वह भारत के साथ मज़बूत संबंध रखना चाहता है.
प्रसाद कहते हैं कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ कार्रवाई में भारत भी दुनिया से इसराइल जैसा समर्थन चाहता है लेकिन चीन भारत के कूटनीतिक प्रभाव को कम कर देता है क्योंकि कूटनीतिक मोर्चे पर वह पाकिस्तान का साथ देता है.
तीनों देशों के बीच संबंध को लेकर तिलक झा कहते हैं, "ये सभी देश प्रतिद्वंदी होने के साथ ही पड़ोसी भी हैं. ऐसे में अगर क्षेत्र में कोई अस्थिरता होती है तो नुक़सान सभी को ही होगा."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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