गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के मंत्रिमंडल के सभी 16 मंत्रियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है.
बीबीसी संवाददाता लक्ष्मी पटेल से बात करते हुए राज्य सरकार के प्रवक्ता मंत्री ऋषिकेश पटेल ने इसकी पुष्टि की.
गुजरात विधानसभा चुनाव अभी दो साल दूर हैं, लेकिन राज्य के सभी मंत्रियों के इस्तीफ़ा देने से हलचल मच गई है.
नए मंत्री कल महात्मा मंदिर में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में शपथ लेंगे.
16 मंत्रियों में आठ कैबिनेट मंत्री और आठ राज्य मंत्री शामिल हैं.
जिन कैबिनेट मंत्रियों ने इस्तीफ़ा दिया है उनके नाम हैं - कनुभाई देसाई, ऋषिकेश पटेल, राघवजी पटेल, बलवंतसिंह राजपूत, कुंवरजी बावलिया, मुलुभाई बेरा, कुबेर डिंडोर और भानुबेन बाबरिया
इस्तीफ़ा देने वाले राज्य स्तर के मंत्रियों के नाम हैं -हर्ष संघवी, जगदीश पांचाल, पुरुषोत्तम सोलंकी, बच्चूभाई खाबड़, मुकेश पटेल, प्रफुल्ल पंशेरिया, भीखूसिंह परमार और कुंवरजी हलपति.
पूरे मंत्रिमंडल का इस्तीफ़ा क्यों मंजूर?
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफ़ेसर और राजनीतिक विश्लेषक घनश्याम शाह ने कहा, "भाजपा की स्थिति अब 1985 में कांग्रेस जैसी हो गई है. 1985 में माधवसिंह सोलंकी को 149 सीटें मिली थीं, और कोई विपक्षी दल नहीं था. लेकिन, 2022 में भाजपा ने वह रिकॉर्ड भी तोड़ दिया. उसने 156 सीटें जीतीं. उसके बाद, जो लोग कांग्रेस और भाजपा से बगावत करके निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीते और फिर भाजपा में वापस आए, उन्हें मिलाकर संख्या बढ़कर 162 हो गई."
इन परिस्थितियों में हर विधायक की उम्मीदों पर खरा उतरना मुश्किल है, यही वजह है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में पहली बार भाजपा में विरोध के स्वर देखने को मिले और वडोदरा और साबरकांठा में कुल दो उम्मीदवार बदलने पड़े. इसके बाद से भाजपा में असंतोष दिखाई दे रहा है.
राजनीतिक विश्लेषक विद्युत जोशी का मानना है कि भाजपा मंत्रिमंडल में फेरबदल करके सत्ता विरोधी लहर से पार पाना चाहती है.
वो कहते हैं, "जब भी भाजपा को सत्ता विरोधी लहर दिखती है, तो वह दूसरों पर दोष मढ़ देती है. इसलिए यह मंत्रिमंडल विस्तार और अब तक की सरकार की गलतियों का ठीकरा पुराने मंत्रियों पर फोड़ने की कोशिश है."
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भाजपा में व्याप्त असंतोष का समर्थन करते हुए सौराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकार कौशिक मेहता ने बीबीसी से कहा, "सौराष्ट्र के लोगों को लग रहा था कि भाजपा उनकी उपेक्षा कर रही है क्योंकि दक्षिण गुजरात को मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया था. दूसरी बात यह कि सौराष्ट्र के लेउवा पटेलों में भी काफ़ी नाराज़गी है, जिसे दूर करना ज़रूरी है."
उन्होंने कहा, "एक और बात ध्यान देने वाली है कि पटेल के ओबीसी वोट बैंक को साधने के लिए जगदीश पांचाल को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया है, लेकिन चूंकि मुख्यमंत्री और अध्यक्ष पद अहमदाबाद के पास चले गए हैं, इसलिए सौराष्ट्र में सत्ता संतुलन की ज़रूरत है. इसलिए लगता है कि वित्त, उद्योग और राजस्व जैसे महत्वपूर्ण विभागों में सौराष्ट्र की आवाज़ को रखा जाएगा."
घनश्याम शाह कहते हैं, "हालांकि विसावदर भाजपा की प्रतिबद्ध सीट नहीं है, लेकिन वहां से आप विधायक गोपाल इटालिया के चुने जाने के बाद आप जैसी सक्रिय पार्टी अपनी नई रणनीति बना रही है. विसावदर चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी ने 40 सीटों पर ज़्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया है. जिसका पहला उदाहरण बोटाद में हो रहा विरोध प्रदर्शन है, जिसका असर सिर्फ़ बोटाद तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पास की गढडा से गरियाधर सीट पर भी इसका असर देखा जा सकता है. आप भी भाजपा के लिए एक चुनौती है."
उनका कहना है, "इसका असर गुजरात में फरवरी 2026 में होने वाले नगर निगम और जिला पंचायत चुनावों पर पड़ सकता है. इतना ही नहीं, इस साल मानसून में सरकार के कामकाज की वजह से सौराष्ट्र और उत्तर गुजरात में सत्ता विरोधी लहर भी पैदा हुई है. इसका मुकाबला करने के लिए अगर नया मंत्रिमंडल बनता है तो विधायकों और कार्यकर्ताओं में मौजूदा मंत्रियों के खिलाफ गुस्सा ठंडा हो सकता है और नई ऊर्जा आ सकती है."
राजनीतिक विश्लेषक विद्युत जोशी कहते हैं, "भाजपा पहले भी ऐसा कर चुकी है. प्राकृतिक आपदाओं के दौरान पैदा हुई सत्ता विरोधी लहर के चलते उन्होंने केशुभाई पटेल की सरकार बदल दी थी. इसलिए, पटेल और ओबीसी आंदोलन को दबाने में नाकाम रहीं आनंदीबेन पटेल के समय, जब जिला पंचायत और नगर निगम चुनावों में असंतोष देखा गया, तो उन्होंने उन्हें बदल दिया. उस दौरान भले ही विजय रूपाणी नगर निगम में जीत गए हों, लेकिन वोटों के बंटवारे से ज़्यादा महत्वपूर्ण यह था कि गांधीनगर और सूरत में आप की पकड़ मज़बूत थी. इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने पूरी सरकार बदलने की कोशिश की और वे इसमें कामयाब भी रहे, यही वजह है कि वे दो साल के लिए मंत्रिमंडल का विस्तार कर रहे हैं. इसे विस्तार नहीं, बल्कि पुनर्गठन ही कहना चाहिए."
वो कहते हैं, "पिछले कुछ सालों से भाजपा में जातिगत समीकरणों में असंतुलन रहा है. गांधीनगर पहुँचने के लिए उन्हें सौराष्ट्र का रास्ता अपनाना पड़ता है, लेकिन सी.आर. पाटिल के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद, 156 सीटें मिलने के बावजूद, सभी को लगता है कि सौराष्ट्र की उपेक्षा हुई है. क्योंकि भाजपा में शंकरसिंह ने बगावत की थी, उसके बाद लगातार सौराष्ट्र का प्रदेश अध्यक्ष या मुख्यमंत्री सौराष्ट्र से ही रखा जाता रहा. लेकिन, अहमदाबाद के मुख्यमंत्री और सी.आर. पाटिल की जोड़ी के कारण सौराष्ट्र के लोगों में असंतोष रहा है."
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गुजरात में 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 156 सीटें जीतीं थीं. उसके बाद कांग्रेस विधायक भी भाजपा में शामिल हो गए और उपचुनाव लड़कर विधायक बन गए.
इसके बाद विधानसभा में पार्टी के विधायकों की संख्या बढ़कर 162 हो गई.
गुजरात में स्थानीय निकाय चुनाव 2026 की शुरुआत में और विधानसभा चुनाव 2027 के अंत में होने वाले हैं.
इनपुट्स : लक्ष्मी पटेल और भार्गव पारिख
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