प्रोटीन इस समय काफ़ी चर्चा में है. यह शेक, बार, पाउडर और यहां तक कि चाय और कॉफी में भी पाया जाता है.
सुपरमार्केट की अलमारियों पर नज़र डालें तो रोज़मर्रा के कुछ खाने के भी "हाई-प्रोटीन" संस्करण उपलब्ध हैं, वहीं, टिकटॉक पर इंफ्लूएंसर ज़्यादा से ज़्यादा प्रोटीन लेने के तरीक़े और सुझाव साझा कर रहे हैं.
हमारे स्वास्थ्य के लिए यह बहुत ही आवश्यक पोषक तत्व है. यह मांसपेशियों को मज़बूत बनाता है, लंबे समय तक पेट भरा हुआ महसूस कराता है और वज़न घटाने में मदद कर सकता है.
लेकिन क्या प्रोटीन के प्रति हमारी दिलचस्पी हद से ज़्यादा बढ़ गई है? और क्या इसकी वजह से हम एक और ज़रूरी पोषक तत्व फ़ाइबर को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं?
प्रोटीन क्या है?
साउथ वेल्स विश्वविद्यालय में पोषण की प्रोफ़ेसर डॉ. एम्मा बेकेट कहती हैं, "प्रोटीन एक मैक्रोन्यूट्रिएंट है और बेहद ज़रूरी भी. शरीर को स्वरूप देने में इसकी बड़ी भूमिका होती है."
जब हम प्रोटीन युक्त भोजन करते हैं, तो हमारे पाचन तंत्र में मौजूद एंजाइम प्रोटीन को अमीनो एसिड में तोड़ देते हैं. यही अमीनो एसिड शरीर में दोबारा जुड़कर ऐसे विशेष प्रोटीन बनाते हैं, जो मांसपेशियों की मरम्मत और नए टिश्यू के निर्माण में मदद करते हैं.
"मानव शरीर में 20,000 से अधिक प्रोटीन होते हैं. यह शरीर में कई तरह से काम करते हैं. ये हीमोग्लोबिन का निर्माण करते हैं. वह प्रोटीन जो लाल रक्त कणिकाओं में मौजूद होता है और पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाता है. यही एंज़ाइम के रूप में रासायनिक क्रियाओं की गति बढ़ाने का काम करते हैं, मांसपेशियों को बनाने और उनकी मरम्मत में सहायक होते हैं, और हमारी त्वचा व बालों में पाए जाने वाले केराटिन का उत्पादन करते हैं."
डॉ. बेकेट कहती हैं, "प्रोटीन की ख़ासियत यह है कि हम इसे शरीर की उन्हीं चीज़ों में संग्रहित रखते हैं जिनका लगातार इस्तेमाल होता है. इसलिए अगर हमें पर्याप्त प्रोटीन नहीं मिलता, तो शरीर को मजबूरन मांसपेशियों से उसकी भरपाई करनी पड़ती है."
प्रोटीन हमें कई तरह के खाद्य पदार्थों से मिलता है. जैसे कम वसा वाला मांस, अंडे, सेम, दालें, मेवे, मटर और डेयरी उत्पाद जैसे दूध और दही.
ब्रिटिश हार्ट फ़ाउंडेशन के अनुसार, युवाओं के लिए प्रोटीन की मात्रा प्रति दिन शरीर के प्रति किलो वज़न पर 0.75 ग्राम है. औसतन, यह महिलाओं के लिए करीब 45 ग्राम और पुरुषों के लिए 55 ग्राम बैठता है.
हालांकि, विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि प्रोटीन के साथ अन्य ज़रूरी पोषक तत्वों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए. यह सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है.
फ़ाइबर कितना जरूरी है?फ़ाइबर हमारे शरीर के लिए बेहद ज़रूरी है. सोशल मीडिया पर स्वास्थ्य व आहार संबंधी सलाह देने वाली ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस में सर्जन डॉ. करण राजन बताते हैं, 'इसका एक काम यह भी है कि यह लैक्सटिव की तरह काम करता है. यह आंतों को साफ़ करने का काम करता है.'
फ़ाइबर हमारी आंतों की नियमित सफ़ाई सुनिश्चित करता है और कब्ज़ से बचाता है. आंतों में मौजूद बैक्टीरिया फ़ाइबर को पचाकर ऐसे कंपाउंड बनाते हैं, जो पूरे शरीर में सूजन को कम करने में मदद करते हैं.
उच्च फ़ाइबर वाला आहार हृदय रोग, स्ट्रोक और टाइप-2 डायबिटीज़ के ख़तरे को भी कम करता है.
विशेषज्ञों का मानना है कि लोग फिर भी इसकी अहमियत को नजरअंदाज करते हैं.
डॉ. राजन कहते हैं, "लोग अब भी पर्याप्त मात्रा में फ़ाइबर नहीं लेते. ये आदत डालने में अभी वक़्त लगेगा."
ब्रिटेन सरकार के निर्देशों के मुताबिक़, संतुलित आहार में हर व्यक्ति को रोज़ाना 30 ग्राम फ़ाइबर लेना चाहिए.
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कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि प्रोटीन को लेकर बढ़ती दिलचस्पी की वजह यह भी है कि इसके नतीजे जल्दी और साफ़ दिखाई देते हैं.
अमेरिका की मेंस हेल्थ मैगज़ीन के डिप्टी एडिटर पॉल कीटा कहते हैं, "सुंदरता की नजर से देखें तो प्रोटीन पुरुषों को मनचाही मांसपेशियां बनाने में मदद करता है."
वे बताते हैं, "फ़ाइबर के मामले में ऐसा नहीं है. पुरुष आईने में अपना दिल नहीं देख सकते, न ही उसे दूसरों से तुलना कर सकते हैं. आपके दिल की शक्ल से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है. इसलिए मुझे लगता है कि इन उत्पादों में 'वैनिटी फ़ैक्टर' यानी दिखावे की चाह भी शामिल है."
महिलाओं में उम्र बढ़ने के साथ मांसपेशियां (सार्कोपीनिया) स्वाभाविक रूप से कमजोर होने लगती हैं. यह प्रक्रिया पुरुषों और महिलाओं दोनों में दिखाई देती है, लेकिन रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज़) के दौरान एस्ट्रोजन हार्मोन में तेज़ गिरावट महिलाओं के लिए इसे और गंभीर बना देती है.
विशेषज्ञ बताते हैं कि मेनोपॉज़ के बाद महिलाओं की हड्डियों में कमजोरी (ऑस्टियोपोरोसिस) के भी अधिक ख़तरे होते हैं, क्योंकि हार्मोनल बदलाव हड्डियों की मज़बूती पर सीधा असर डालते हैं.
प्रोटीन हड्डियों के स्वास्थ्य को मज़बूत करने में सहायक हो सकता है, लेकिन ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ़ सरे ने 2019 में किए गए 127 अध्ययनों के विश्लेषण में पाया गया है कि निर्धारित मात्रा से अधिक प्रोटीन लेने का कोई ख़ास लाभ नहीं मिलता है.
कंज़्यूमर मार्केट रिसर्च कंपनी स्पिन्स के सीनियर डायरेक्टर स्कॉट डिकर का कहना है कि कई 'हाई-प्रोटीन' प्रोडक्ट लोगों के लिए भ्रामक साबित हो सकते हैं.
वे बताते हैं, "यह बहुत ही दिलचस्प है कि जिन प्रोडक्ट्स को पहले हाई-कार्ब या जंक फूड समझा जाता था, उनमें बस एक चम्मच प्रोटीन पाउडर मिलाकर अचानक उन्हें 'हेल्थ फ़ूड' की तरह पेश किए जाने लगा है."
पैसा भी इसका एक बड़ा कारण है.
2021 में दुनिया भर के बाज़ार में प्रोटीन पाउडर की ख़पत 4.4 अरब डॉलर (करीब 3.6 अरब पाउंड) आंकी गई, जिसके 2030 तक 19.3 अरब डॉलर (करीब 15.6 अरब पाउंड) तक पहुंचने का अनुमान है. यह कंपनियों के लिए बेहद फ़ायदेमंद साबित हो रहा है.
"प्रोटीन मैक्सिंग" सोशल मीडिया ट्रेंड्स भी इस बहस को बढ़ावा दे रहे हैं. इसमें लोग हर भोजन में प्रोटीन की मात्रा अधिकतम करने की कोशिश करते हैं.
क्या आप बहुत अधिक प्रोटीन ले सकते हैं?
बाज़ार में प्रोटीन से जुड़े उत्पादों की बढ़ती लोकप्रियता हमें ज़रूरत से ज़्यादा प्रोटीन लेने के लिए भी प्रेरित कर सकती है.
विशेषज्ञ बताते हैं कि किसी व्यक्ति को कितनी प्रोटीन चाहिए, यह उसकी उम्र, जेंडर, शरीर के आकार और व्यायाम की मात्रा पर निर्भर करता है.
मेंस हेल्थ मैगज़ीन के पॉल कीटा ने देखा कि दुकानों में लगातार नए-नए हाई-प्रोटीन उत्पाद आ रहे हैं.
इसके बाद उन्होंने यह जानने के लिए तीन हफ़्ते तक ऐसे पैकेज्ड खाद्य पदार्थों पर आधारित डाइट अपनाई.
इस दौरान उनके भोजन में हाई-प्रोटीन ओटमील, हाई-प्रोटीन दही, हाई-प्रोटीन मैकरोनी-चीज़ और यहां तक कि हाई-प्रोटीन पानी तक शामिल था.
कीटा कहते हैं, "इसके स्वाद से मैं हैरान रह गया."
इन उत्पादों का स्वाद बेहद मीठा था. दरअसल, इन हाई-प्रोटीन पैकेज्ड खाद्य पदार्थों में अतिरिक्त शक्कर मिलाई गई थी, जिससे प्रोटीन पाउडर में मौजूद अमीनो एसिड के कड़वे स्वाद को कम किया जा सके.
कीटा बताते हैं कि इतनी अधिक प्रोटीन लेने के बाद उन्हें लगा कि इसके साथ कुछ "करना" भी चाहिए.
नतीजतन, उन्होंने अपनी सामान्य दिनचर्या से कहीं ज़्यादा व्यायाम करना शुरू कर दिया.
उन्होंने इस प्रयोग से पहले और बाद में अपने शरीर का माप लिया. नतीजा यह रहा कि उनका वज़न तो नहीं बढ़ा, लेकिन सीने का आकार थोड़ा बढ़ गया.
कीटा कहते हैं, "यह शायद इसलिए हुआ क्योंकि मैं ज़्यादा प्रोटीन ले रहा था और भारी वज़न भी उठा रहा था और विज्ञान भी इसे सही ठहराता है."
लेकिन क्या यह उनके लिए फ़ायदेमंद साबित हुआ? वे हंसते हुए कहते हैं, "नहीं, मैं इस प्रयोग के दौरान लगभग हर समय परेशान ही रहा."
कीटा को इस प्रयोग से निराशा हुई. विशेषज्ञ भी चेतावनी देते हैं कि अत्यधिक प्रोटीन को पचाना किडनी पर दबाव डाल सकता है.
विशेष रूप से अधिक मात्रा में पशु से आने वाले प्रोटीन के सेवन से किडनी स्टोन का ख़तरा हो सकता है और जिन्हें पहले से किडनी संबंधी समस्या है, उनके लिए यह किडनी रोग का जोखिम बढ़ा सकता है.
अत्यधिक प्रोटीन हड्डियों के स्वास्थ्य पर भी असर डाल सकता है. ब्रिटिश डायटेटिक एसोसिएशन के अनुसार, बहुत अधिक प्रोटीन लेने से मतली जैसे साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि लोगों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह प्रोटीन कहां से आ रहा है? क्या उन्हें प्राकृतिक स्रोतों से मिल रहा है या फिर प्रोसेस्ड पैकेज्ड फूड्स से?
डॉ. बेकेट बताती हैं, "हमारे मैक्रोन्यूट्रिएंट्स यानी कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा की सिफ़ारिश केवल इस आधार पर नहीं होती कि हमें इनमें कितनी मात्रा चाहिए,"
"यह इस आधार पर तय की जाती है कि ये पोषक तत्व उन खाद्य पदार्थों में मौजूद अन्य न्यूट्रिएंट्स के साथ कैसे संतुलित हैं? लेकिन बाजार में दिख रहे अत्यधिक प्रोसेस्ड प्रोटीन वाले उत्पाद हमेशा इस संतुलन से मेल नहीं खाते।"
डॉ. बेकेट चेतावनी देती हैं कि केवल प्रोटीन पर अत्यधिक ध्यान देना स्वास्थ्य के लिहाज से "बड़ा जोखिम" पैदा कर सकता है और वह लोगों को फ़ाइबर सहित संपूर्ण पोषण पर ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित करती हैं.
वे कहती हैं, "हम किसी इंजन की तरह नहीं हैं. हमारा शरीर सिर्फ़ एक ही प्रकार के ईंधन पर नहीं चलता है. हमारे स्वास्थ्य और जीवित रहने के लिए हमें कई तरह के पोषक तत्वों की ज़रूरत होती है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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