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अफ़ग़ानिस्तानः भूकंप के बाद 17 झटके, 'वो रात किसी क़यामत जैसी लग रही थी'

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image AFP via Getty Images रविवार की आधी रात में आए भूकंप में लगभग 800 लोगों की मौत हुई है.

अफ़ग़ानिस्तान के दूरदराज़ कुनार प्रांत में रविवार आधी रात से ठीक पहले मतीउल्लाह शहाब की नींद खुली तो उन्होंने देखा कि उनका घर हिल रहा है.

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 6.0 तीव्रता का भूकंप अफ़ग़ानिस्तान के पूर्वी हिस्से में आया, जिसमें कम से कम 800 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए हैं.

हालांकि भूकंप का केंद्र 16 किलोमीटर दूर था, लेकिन शहाब के असदाबाद गाँव में ज़मीन बुरी तरह हिली. उनके घर के 23 लोग इस डर के मारे अपने कमरों से बाहर निकल आए कि कहीं दीवारें उन पर न गिर जाएं और पूरी रात एक बाग़ में जागते हुए बिताई.

मतीउल्लाह कहते हैं, "हम सब डर गए थे."

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भूकंप से सबसे ज़्यादा असर कुनार और नांगरहार प्रातों में हुआ, लेकिन इसके झटके राजधानी काबुल और पड़ोसी पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद तक महसूस किए गए.

मतीउल्लाह एक फ़्रीलांस पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं और सुबह होने पर उन्होंने अपनी गाड़ी से भूकंप के केंद्र वाले पहाड़ी इलाक़े तक पहुंचने की कोशिश की.

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'जिस भी गांव में गया, तबाह हो गए थे' image AFP via Getty Images एक्सपर्ट्स का मानना है कि भूकंप के केंद्र की कम गहराई के कारण नुकसान अधिक हुआ है.

मतीउल्लाह बताते हैं कि रास्ते पर चट्टानें गिरी होने के कारण उन्हें गाड़ी छोड़कर दो घंटे पैदल चलना पड़ा, तब जाकर वे सबसे ज़्यादा प्रभावित गांवों तक पहुंचे.

जब वो पहुंचे तो देखा कि कई छोटे बच्चों का इलाज सड़क पर ही किया जा रहा था. दो नन्हे बच्चे एक स्ट्रेचर पर साथ लेटे थे, जिनके सीने और चेहरों पर चोट आई थी.

अन्य बच्चों को सफ़ेद चादरों में लपेटा गया था. सिर्फ़ उसी गाँव में 79 लोगों की मौत हुई थी.

मतीउल्लाह ने बीबीसी से कहा, "मैंने बहुत सी लाशें देखीं. मैंने 17 बार झटके महसूस किए."

मतीउल्लाह ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर मारे गए लोगों के लिए क़ब्रें खोदने में मदद की.

वो कहते हैं, "जिन गांवों में मैं गया था, वे तबाह हो चुके थे. एक व्यक्ति ने मुझे बताया कि उनकी पत्नी और चार बच्चों की मौत हो गई. लेकिन ज़्यादातर लोग इतने सदमे में थे कि कुछ बोल नहीं पा रहे थे."

मतीउल्लाह ने बताया, "लोगों के चेहरे धूल से ढके हुए थे और चारों तरफ़ ख़ामोशी थी. वे रोबोट जैसे लग रहे थे - कोई इस बारे में बात नहीं कर पा रहा था."

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हेलीकॉप्टर ही है एकमात्र सहारा image AFP via Getty Images अफ़ग़ानिस्तान में भूकंप से दूरदराज़ के पहाड़ी इलाक़े प्रभावित हुए हैं, जहां राहत पहुँचाने का सिर्फ़ एक ही ज़रिया है हेलीकॉप्टर.

सड़कें बंद होने की वजह से तालिबान सरकार की बचाव टीमें पहाड़ी गांवों तक पहुंचने के लिए हेलीकॉप्टरों पर निर्भर हैं. लेकिन दूर-दराज़ और पहाड़ी इलाक़ों की वजह से कई जगहें अब भी पहुंच से बाहर हैं.

इस बीच, ऐसी रिपोर्टें भी आई हैं कि लोग मलबे में दबे हुए मर रहे हैं क्योंकि मदद समय पर नहीं पहुँच पा रही है.

कुनार के सोकई ज़िले के एक और निवासी इज़्ज़तुल्लाह साफ़ी ने बताया कि भूकंप में उनके घर का एक हिस्सा ढह गया.

उन्होंने बीबीसी को बताया, "मेरी नींद बच्चों, महिलाओं और जानवरों की चीख़ों से टूटी. भूकंप बहुत तेज़ था और वह रात किसी क़यामत जैसी लग रही थी. झटकों के बाद तेज़ हवा चली और हल्की बारिश हुई. मेरे बच्चे डर के कारण मुझसे लिपट गए और रोने लगे. चारों तरफ़ धूल भर गई."

"मोबाइल नेटवर्क तुरंत बंद हो गया. हम रिश्तेदारों से संपर्क नहीं कर सके. घर क्षतिग्रस्त हो गया था और बिजली भी चली गई थी, इसलिए हमें अपने फ़ोन की रोशनी पर ही निर्भर रहना पड़ा."

उन्होंने कहा कि सुबह सरकारी हेलीकॉप्टर आए और पहाड़ों से घायलों को उठाकर मुख्य कुनार हाइवे तक ले गए, जहाँ से उन्हें गाड़ियों के ज़रिए क्लिनिक भेजा गया.

image AFP via Getty Images कई गांव पूरी तरह तहस-नहस हो गए और लोग सड़कों पर रहने को मजबूर हैं.

इज़्ज़तुल्लाह ने कहा, "यहाँ शोक का माहौल है. बिजली गुल है, बाज़ार पूरे दिन बंद रहे. कुछ दूरदराज़ के गावों में अब भी पहुंचना मुश्किल है, पहाड़ों में बसे ऐसे गांव सड़क से पांच से छह घंटे दूर हैं."

मतीउल्लाह का कहना है कि वॉलंटियर फंसे हुए लोगों को निकालने की कोशिश कर रहे थे और उन्होंने देखा कि दो महिलाओं को एक ढहे हुए घर से बाहर निकाला गया.

उन्होंने बताया, "उन्हें घायल अवस्था में बाहर निकाला गया और अब वे अस्पताल में हैं."

लेकिन उन्हें इस बचाव अभियान की तस्वीरें लेने की इजाज़त नहीं मिली क्योंकि तालिबान महिलाओं की तस्वीरें लेने की अनुमति नहीं देता.

मतीउल्लाह ने कहा कि कई लोग अब खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं और उन्हें टेंटों की ज़रूरत है.

कुनार निवासी बास मरजाना ने भूकंप में अपने परिवार के कई सदस्यों को खो दिया. वह भी घायल हो गईं थीं. उन्होंने बताया कि जब भूकंप आया तो वह सो रही थीं और छत उनके पूरे परिवार पर गिर गई.

image AFP via Getty Images बीबीसी संवाददाता यामा बारिज़ ने क्या देखा image Abbas Farzami/BBC Afghan Service नादिर ने बताया कि भूकंप के बाद वो अपने दो पोते पोतियां बचा पाए, बेटों का कुछ पता नहीं है.

कुनार जाते समय मैं दोबारा नांगरहार रीजनल हॉस्पिटल रुका. आज यहाँ 80 से ज़्यादा घायलों को लाया गया है, ज़्यादातर मज़ार दारा और नोरगुल से.

ये कुनार के वे ज़िले हैं जो कल तक पहुंच से बाहर थे. घायलों में से ज़्यादातर को एयरलिफ्ट कर जलालाबाद के अस्पताल पहुँचाया गया.

आज अस्पताल का माहौल थोड़ा शांत लग रहा है, सदमा कुछ कम होता दिख रहा है और कुछ लोग अब अपने हालात पर बात करने की स्थिति में हैं.

मैंने मज़ार दारा के निवासी नादिर ख़ान से मुलाक़ात की.

पचास साल से ऊपर के नादिर ने बताया कि रविवार रात जब उनका घर गिरा तो उन्होंने अपने दोनों बेटों, बहुओं और पोते-पोतियों को खो दिया.

वो कहते हैं कि वे सिर्फ़ दो पोते-पोतियों को बचा पाए, लेकिन उन्हें यह भी नहीं पता कि वे अब कहाँ हैं.

image Abbas Farzami/BBC Afghan Service नांगरहार रीजनल हॉस्पिटल में घायलों की भीड़ है.

नादिर ने कहा कि अब वे कहाँ जाएँगे, उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा – उनका घर और परिवार, सब कुछ चला गया.

मैं कुछ देर ख़ामोश था...वो अपने बेटों को याद करते हुए सिसक रहे थे और कह रहे थे काश वे उन्हें बचा पाते.

कुछ शांत होने के बाद उन्होंने कहा, "मेरे सिर और रीढ़ में चोट लगी थी, इसलिए मैं हिल नहीं सका कि उन्हें बचा सकूँ. काश मैं ठीक होता तो उनकी मदद कर पाता."

उन्हें रेस्क्यू टीम अस्पताल ले आई, "मुझे नहीं पता मेरे बेटों के शवों का क्या हुआ."

नांगरहार स्वास्थ्य प्राधिकरण के प्रमुख ने मुझे बताया कि उनकी टीमें अब उन इलाक़ों तक पहुँचने में कामयाब हुई हैं, जहाँ कल तक पहुँचना संभव नहीं था.

हालांकि टीमों को कुछ उपकरण और संसाधन दिए गए हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि तबाही को देखते हुए यह काफ़ी नहीं है.

मैंने उनसे पूछा कि क्या रेस्क्यू टीमों में महिला स्वास्थ्यकर्मी भी हैं, तो उन्होंने बताया कि इलाक़ा पहाड़ी होने के कारण वहाँ महिला स्वास्थ्यकर्मियों के लिए पहुँचना मुश्किल है.

भूकंप पीड़ितों के लिए मदद image AFP via Getty Images

अफ़ग़ान निवेशक और अज़ीज़ी बैंक के मालिक मीरवाइज़ अज़ीज़ी ने भूकंप पीड़ितों के लिए 500 मिलियन अफ़ग़ानी देने की घोषणा की है.

भारत भी पीड़ितों के लिए मानवीय सहायता भेज रहा है.

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बताया कि भारत की ओर से अफ़ग़ानिस्तान को भेजी जा रही मानवीय सहायता में बढ़ोतरी की गई है.

सोमवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया था, "भारत ने काबुल में 1000 परिवारों के लिए टेंट भेजे हैं. भारतीय मिशन ने काबुल से कुनार के लिए तुरंत 15 टन खाद्य सामग्री भी भेजी है."

भारतीय विदेश मंत्री ने कहा, "इस कठिन समय में भारत अफ़ग़ानिस्तान के साथ खड़ा है."

इस साल अफ़ग़ानिस्तान को ख़ासतौर पर अमेरिका से मिलने वाली मदद में भारी कटौती का सामना करना पड़ा है, जिससे उस मदद में और कमी आई है. यह आपदा अफ़ग़ानिस्तान के लिए और संकट लेकर आई है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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