प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एसोसिएशन ऑफ़ साउथ ईस्ट एशियन नेशन्स (आसियान) समिट में शामिल होने मलेशिया नहीं जाएंगे. पीएम मोदी इस समिट में वर्चुअली जुड़ेंगे.
पीएम मोदी की जगह भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर इस समिट में हिस्सा लेंगे. यह समिट मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में 26 से 28 अक्तूबर तक है.
इस समिट में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अलावा जापान की प्रधानमंत्री सनाए तकाइची, ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा और दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा भी शामिल होंगे.
दूसरी तरफ़ इस समिट में पीएम मोदी के अलावा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन नहीं शामिल होंगे.
ट्रंप का एशिया दौरा रविवार को मलेशिया से शुरू हो रहा है, जो जापान के बाद दक्षिण कोरिया में ख़त्म होगा. दक्षिण कोरिया में आयोजित एशिया पैसिफिक इकनॉमिक कोऑपरेशन (एपीईसी) समिट में ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाक़ात हो सकती है.
ट्रंप अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति हैं, जो मलेशिया दौरे पर जा रहे हैं. ट्रंप से पहले बराक ओबामा और लिंडन बी जॉनसन ने मलेशिया का दौरा किया था.
भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक़, "प्रधानमंत्री मोदी आसियान समिट में 26 अक्तूबर को वर्चुअल माध्यम से जुड़ेंगे. वहीं 27 अक्तूबर को मलेशिया में आयोजित 20वें ईस्ट एशिया सम्मेलन में एस जयशंकर पीएम मोदी का प्रतिनिधित्व करेंगे."
असामान्य फ़ैसला?
JIM WATSON/AFP via Getty Images 13 फ़रवरी, 2025 को व्हाइट हाउस में पीएम मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान हाथ मिलाते हुए पीएम मोदी के मलेशिया नहीं जाने का मतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से उनकी आमने-सामने की मुलाक़ात नहीं होगी.
पीएम मोदी वैश्विक आयोजनों से दूर रहने के लिए नहीं जाने जाते हैं. कुआलालंपुर समिट में पीएम मोदी के नहीं जाने को असामान्य फ़ैसले के रूप में भी देखा जा रहा है.
2020 और 2021 में कोविड महामारी के कारण पीएम मोदी आसियान समिट में वर्चुअली शामिल हुए थे जबकि 2022 में भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने उनका प्रतिनिधित्व किया था.
इसके अलावा 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से नरेंद्र मोदी ख़ुद सभी आसियान समिट में शामिल हुए हैं. यहाँ तक कि 2023 में भारत में आयोजित जी-20 समिट से ठीक पहले मोदी जकार्ता में आयोजित आसियान समिट में शरीक हुए थे.
हाल के महीनों में पीएम मोदी ने कुछ वैश्विक आयोजनों से दूरी बनाई है. इससे पहले मिस्र के शर्म अल-शेख़ शहर में आयोजित ग़ज़ा शांति सम्मेलन से दूर रहे थे.
भारतीय मीडिया में ख़बरें चल रही थीं कि सितंबर महीने में पीएम मोदी न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करेंगे और राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाक़ात करेंगे लेकिन पीएम मोदी ने इससे भी दूरी बनाई थी और यूएनजीए को एस जयशंकर ने संबोधित किया था.
विपक्षी दल कांग्रेस ने पीएम मोदी के मलेशिया नहीं जाने के फ़ैसले पर सवाल उठाया है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का 'सामना नहीं करना चाह रहे' हैं.
जानकार आसियान में पीएम मोदी के शामिल न होने को अमेरिका से दूरी बनाए रखने की 'सोची-समझी' रणनीति बता रहे हैं.
मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम से हुई बातचीत का ज़िक्र करते हुए पीएम मोदी ने गुरुवार को एक्स पर लिखा, "आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में वर्चुअल रूप से शामिल होने और आसियान-भारत व्यापक रणनीतिक साझेदारी को और गहरा करने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ."
अनवर ने भी कहा कि मोदी उस समय भारत में चल रहे दीपावली उत्सव के कारण इस बैठक में वर्चुअल रूप से शामिल होंगे.
आसियान सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मलेशिया नहीं जाने के फ़ैसले पर कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं.
जयराम रमेश ने कहा, "सोशल मीडिया पर राष्ट्रपति ट्रंप की तारीफ़ में पोस्ट करना एक बात है लेकिन उनसे आमना-सामना करना दूसरी बात है."
उन्होंने एक्स पर लिखा, "पीएम मोदी के मलेशिया नहीं जाने की वजह साफ़ है, वह राष्ट्रपति ट्रंप के सामने नहीं आना चाहते, जो वहां मौजूद होंगे. उन्होंने कुछ हफ़्ते पहले मिस्र में ग़ज़ा शांति शिखर सम्मेलन में शामिल होने का निमंत्रण भी इसी वजह से ठुकरा दिया था."
जयराम रमेश ने कहा कि ट्रंप से मिलना पीएम मोदी के लिए 'काफ़ी जोखिम भरा' है.
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सामरिक मामलों के जाने-माने विश्लेषक ब्रह्मा चेलानी ने एक्स पर लिखा, "प्रधानमंत्री मोदी का ट्रंप की मौजूदगी वाले आसियान शिखर सम्मेलन में शामिल न होने का फ़ैसला इस रूप में देखा जा रहा है कि वह अमेरिकी राष्ट्रपति से दूरी बनाए रखना चाहते हैं. ट्रंप ने भारत पर ऊँचे टैरिफ़ और अप्रत्यक्ष प्रतिबंधों के ज़रिए दबाव बनाए रखा है. माना जा रहा है कि मोदी ट्रंप से मुलाक़ात तभी करना चाहेंगे जब ट्रेड डील का मसौदा तैयार हो जाएगा, उससे पहले नहीं."
वॉशिंगटन डीसी स्थित विल्सन सेंटर के निदेशक माइकल कुगलमैन का कहना है कि अब ट्रेड डील के ज़रिए ही दोनों देशों के बीच भरोसा बहाल हो सकता है.
उन्होंने एक्स पर लिखा, "मोदी के आसियान शिखर सम्मेलन में शामिल न होने और मोदी-ट्रंप मुलाक़ात के न होने से स्थिति फिर पहले जैसी हो गई है. अमेरिका और भारत के रिश्तों को नई शुरुआत देने का सबसे अच्छा मौक़ा अब एक व्यापार समझौता ही है (जो जल्द होने की उम्मीद है). यह ऐसा भरोसा बहाल करने वाला क़दम होगा, जिससे पिछले कई महीनों से चल रहे तनाव में कुछ नरमी आ सकती है."
अमेरिका और भारत कई महीनों से व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहे हैं, लेकिन ये बातचीत जटिल हो गई है क्योंकि भारत ने रूस से तेल आयात बढ़ा दिया था.
इसी वजह से अमेरिका ने अगस्त में भारतीय सामानों पर 25 फ़ीसदी का टैरिफ़ लगा दिया, जिससे कुल टैरिफ़ बढ़कर 50 फ़ीसदी हो गया है. अमेरिकी फ़ैसले के जवाब में भारत के विदेश मंत्रालय ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था, 'यह कार्रवाई अनुचित, अकारण और तर्कहीन है.'
भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने पीएम मोदी के इस फ़ैसले को सही ठहराया है.
उन्होंने लिखा, "अगर पीएम मोदी कुआलालंपुर जाते तो ट्रंप के साथ बैठक करनी पड़ती. ट्रंप की अप्रत्याशित और बेतुकी बातें राजनीतिक जोखिम पैदा करती हैं."
कंवल सिब्बल ने कहा कि जब तक अमेरिका से व्यापार समझौता नहीं हो जाता, ट्रंप से मिलने से बचना ही बेहतर है.
'प्रधानमंत्री शायद वो जोख़िम नहीं लेना चाहते'प्रोफ़ेसर हर्ष वी पंत नई दिल्ली स्थित ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के अध्ययन और विदेश नीति विभाग के उपाध्यक्ष हैं.
बीबीसी संवाददाता अभय कुमार सिंह से बातचीत में वे कहते हैं कि यह कोई अचानक लिया गया या रहस्यमय फ़ैसला नहीं है.
हर्ष वी. पंत कहते हैं, "भारत और अमेरिका के बीच इस समय ट्रेड वार्ता चल रही है. ऐसे में राष्ट्रपति ट्रंप हर तरह का दबाव बनाने की रणनीति अपनाते हैं. वह बातचीत में हर चीज़ का इस्तेमाल करते हैं ताकि अपने पक्ष को मज़बूत कर सकें."
उनका कहना है कि अगर प्रधानमंत्री ट्रंप से सीधे मिलते, तो वो अपने आप को "एक तरह से उन प्रेशर पॉइंट्स के लिए ओपन" कर देते.
"अगर सीधी वार्ता होती है और वो (ट्रंप) सार्वजनिक तौर पर कुछ कह देते हैं, तो वहाँ आप क्या जवाब दे पाएंगे?"
हर्ष वी. पंत मानते हैं कि यह फ़ैसला रणनीतिक रूप से सोचा-समझा गया क़दम है. उनका कहना है, "जब तक ट्रेड एग्रीमेंट पर कोई ठोस नतीजा नहीं निकलता, तब तक ट्रंप जैसे नेता से सीधा जुड़ाव रखना जोखिम भरा हो सकता है. प्रधानमंत्री शायद वही जोखिम नहीं लेना चाहते."
JIM WATSON/AFP via Getty Images भारत के पीएम मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप की फ़रवरी 2025 में मुलाक़ात हुई थी पंत कहते हैं, "अगर हमारे और अमेरिका के बीच कुछ दिक्क़तें चल रही हैं और बातचीत जारी है, तो भारत को ख़ुद को ऐसे मौक़ों पर एक्सपोज़ क्यों करना चाहिए? प्रधानमंत्री वहाँ सार्वजनिक रूप से उनके साथ होंगे तो ट्रंप कुछ भी कह सकते हैं और वो ऐसे बयानों के लिए जाने जाते हैं. प्रधानमंत्री ख़ुद को उस तरह की सार्वजनिक असहजता के लिए क्यों खुला रखें?"
"ऐसे में जब कोई नेता इतना अप्रत्याशित हो, तो सार्वजनिक तौर पर सीमित बातचीत रखना ही समझदारी है. जब तक ट्रेड एग्रीमेंट्स पर सहमति नहीं बन जाती, तब तक उनसे बचना ही बेहतर है."
अगले महीने दक्षिण अफ़्रीका में जी-20 समिट है और पीएम मोदी के इस समिट में शामिल होने की पूरी संभावना है.
ट्रंप ने पहले ही घोषणा कर दी है कि वह इस समिट में नहीं जाएंगे. ट्रंप का कहना है कि दक्षिण अफ़्रीका की नीतियां बहुत ख़राब हैं. इसी साल भारत में क्वॉड समिट होना था लेकिन अब तक हुआ नहीं. यानी इस साल पीएम मोदी और ट्रंप के बीच एक और मुलाक़ात होती नहीं दिख रही है.
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