जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में चरमपंथी हमले के बाद केंद्र सरकार की कश्मीर नीति पर भी सवाल उठ रहे हैं. जम्मू-कश्मीर में सामान्य स्थिति बहाल करना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का एक बड़ा वादा था.
साल 2019 में सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाया था. इसके ज़रिए जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किया गया. उस समय प्रधानमंत्री मोदी ने अनुच्छेद 370 की निंदा की थी.
उन्होंने था कि 'अनुच्छेद 370 एक औज़ार है. इसका इस्तेमाल करके कश्मीर में आतंक, हिंसा और भ्रष्टाचार फैलाया जा रहा था.'
तब से लेकर पहलगाम हमले तक, मोदी सरकार का दावा रहा है कि उनके शासन के 10 सालों के दौरान जम्मू-कश्मीर में शांति और अहिंसा का एक नया दौर आया है.
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मंगलवार का हमला जम्मू-कश्मीर के हाल के समय में सबसे घातक चरमपंथी हमला माना जा रहा है.
इस हमले के बाद बहुत सारे सवाल उठ रहे हैं. इनमें सबसे बड़ा सवाल सरकार की कश्मीर नीति पर है. यानी सरकार की नीति कितनी कामयाब रही?
जो दावे किए गए, उनकी हक़ीक़त क्या है? इस घटना के बाद इस नीति का क्या होगा?
इन सब सवालों का जवाब जानने के लिए बीबीसी हिंदी ने कुछ विशेषज्ञों से बात की.
मोदी सरकार की कश्मीर नीति और दावेसाल 2014 से ही जम्मू-कश्मीर के हालात सामान्य करना मोदी सरकार का एक बड़ा वादा था. दूसरी बार, सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को ख़त्म किया. सरकार का दावा था कि इससे वहाँ के हालात सामान्य होंगे.
सरकार ने की कि भारत के बाक़ी राज्य के लोग भी अब जम्मू-कश्मीर में ज़मीन ख़रीद सकते हैं और घर बना सकते हैं.
पर्यटन और सुरक्षा, इस नीति का एक बड़ा हिस्सा थे. सरकार ने कई बार दावा किया कि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर में . भी इस बात को दर्शाते हैं.
साल 2024 में से भी ज़्यादा पर्यटक कश्मीर गए थे. कश्मीर घाटी के लिए ये एक नया रिकॉर्ड था. बॉर्डर टूरिज़्म की भी शुरुआत की गई.
इसके अलावा सरकार की तरफ़ से कश्मीर में कई बुनियादी संरचनाओं का भी निर्माण किया गया. कई टनल बनीं. इसने जम्मू-कश्मीर के सुदूर इलाक़ों को आपस में जोड़ने का काम किया.
इसी साल प्रधानमंत्री मोदी ने का उद्घाटन किया. यह टनल सोनमर्ग और गगनगिर को जोड़ता है. इस परियोजना को पूरा होने में क़रीब 2700 करोड़ ख़र्च हुए.
उच्च शिक्षा के लिए कई संस्थान खोले गए. यहाँ तक कि सिधरा में एक गोल्फ़ कोर्स भी बनाया गया.
सरकार की तरफ़ से दसवीं और बारहवीं के विद्यार्थियों को टैबलेट दिए गए.
कुल मिलाकर सरकार की तरफ़ से यह दर्शाया गया कि कश्मीर में ख़ौफ़ का दौर ख़त्म हो गया है. हालात सामान्य हो गए हैं. चरमपंथी तत्वों पर क़ाबू कर लिया गया है.
साल 2019 में अनुच्छेद 370 हटाने के पाँच साल बाद प्रधानमंत्री मोदी ने साल 2024 में पहली बार जम्मू-कश्मीर का दौरा किया.
उनका यह दौरा लोकसभा चुनाव के कुछ दिन पहले हुआ था. श्रीनगर में एक बड़ी सभा में प्रधानमंत्री ने कहा था कि कश्मीरी अब '
उन्होंने , "अनुच्छेद 370 के हटने के बाद कश्मीर प्रगति और समृद्धि की नई ऊंचाइयों को छू रहा है. स्थानीय लोग खुलकर सांस ले पा रहे हैं. यह आज़ादी अनुच्छेद 370 के हटने के बाद आई है. दशकों तक कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने अनुच्छेद 370 के बारे में जम्मू-कश्मीर और देश के लोगों को गुमराह किया."
हालाँकि, इस दौरान कठिनाइयाँ भी आईं. साल 2017 में अमरनाथ यात्रियों पर चरमपंथियों ने हमला किया. इसमें आठ यात्रियों की मौत हो गई.
साल 2019 में अनुच्छेद 370 हटने से पहले, घाटी के पुलवामा में चरमपंथी हमले में 40 सीआरपीएफ़ जवान मारे गए.
किस बात की है ज़रूरत?
बीबीसी ने काउंटर टेररिज़्म विशेषज्ञ इंस्टिट्यूट ऑफ़ कॉन्फ़्लिक्ट मैनेजमेंट के डॉ. अजय साहनी से बात की.
उन्होंने कहा, "जहाँ तक काउंटर टेररिज़्म की बात है, इस सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया जो पहले नहीं हो रहा था. पॉलिसी जो पहले थी, वही अभी भी है. उससे चरमपंथ पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा है."
"पहले लोग कहते थे कि डेवलपमेंट लेकर आए हैं. अब कह रहे हैं कि इंवेस्टमेंट लाए हैं. मुझे नहीं दिख रहा. शायद दो-चार रोड बन गए. पहले भी बने थे. भले ही इन्होंने इसका उद्घाटन किया हो, टनल इनके ज़माने में नहीं बने."
उन्होंने कहा कि 'काउंटर टेररिज़्म' महज़ सुरक्षा बलों की सफलता होती है. सरकार का काम नीति बनाना और संवाद बढ़ाना होता है.
साहनी के हिसाब से, इस पहलू में मोदी सरकार बहुत क़ामयाब नहीं रही.
वे कहते हैं, "काउंटर टेररिज़्म महज़ सुरक्षा बलों की क़ामयाबी होती है. उसमें पहले नाकामी भी हुई. उसे सीखें. बदलें. फिर थोड़ी-थोड़ी क्षमता और योग्यता बढ़ाई गई."
"सुरक्षा बलों का काम राजनीतिक मुद्दों को सुलझाना नहीं है. वह आपको एक हद तक किसी इलाक़े या उनके लोगों पर नियंत्रण दे सकते हैं. उसके बाद राजनीतिक पहल की ज़रूरत होती है. वह कहीं भी नहीं है.''
साहनी के मुताबिक़, "जो राजनीतिक पहल है, वह विभाजनकारी और ध्रुवीकरण करने वाली है. रोज़ सुबह आप कुछ न कुछ ऐसा कहते हैं या करते हैं जिससे मुस्लिम आबादी में अलगाव पैदा होता है और और हिन्दू आबादी उत्तेजित होती है.''
उनके मुताबिक, "इन चीज़ों को धीरे-धीरे ख़त्म करके, पूरे जम्मू-कश्मीर को वापस एक भारतीय पहचान के अंदर लाना चाहिए. वह एक समावेशी पहचान होनी चाहिए, ध्रुवीकरण वाली पहचान नहीं. इसी के साथ, दूसरी तरफ़ इस्लामी चरमपंथ की बात होती है. ये जो दो अतिवादी विचारधाराएँ हैं, वे एक-दूसरे की वजह से पलती और बढ़ती हैं.''
भारतीय जनता पार्टी का मानना है कि इस घटना से सरकार की छवि और उसकी कश्मीर नीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
बीजेपी प्रवक्ता आरपी सिंह ने बीबीसी से कहा, "इससे सरकार की छवि पर कोई आँच नहीं आएगी. समस्या ग्राउंड पर होगी. कश्मीर पर जो लोगों का भरोसा था, वह डगमगा गया है. खासकर पर्यटकों का भरोसा."
"कश्मीर पर्यटन के लिए जाना जाता है. टूरिस्ट सेक्टर में लोगों का भरोसा बनाने में बहुत समय लगा. सुरक्षा फिर से एक बड़ा मुद्दा बन गई है. लेकिन इससे सरकार की कश्मीर नीति नहीं बदलेगी. कश्मीर को भारत की मुख्यधारा में लाने का प्रयास अभी भी जारी रहेगा."
उन्होंने कहा, "आज कश्मीर के युवा पाकिस्तान के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं. मुस्लिम युवा भी कर रहे हैं. अभी सरकार का पहला काम होगा कि लोगों की आस्था कश्मीर पर वापस आए. भारतीय पर्यटकों पर इसका असर पड़ेगा. राज्य की अर्थव्यवस्था भी कमज़ोर होगी."
दूसरी ओर, कश्मीरी विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार के वादे कभी सही थे ही नहीं. वह बस असली मुद्दे छुपाने के लिए एक आवरण थे.
राजनीतिक विशेषज्ञ और कश्मीर यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर नूर अहमद बाबा कहते हैं कि अपनी कश्मीर नीति पर सरकार अमल नहीं कर पाई.
उन्होंने बीबीसी से कहा, "जब अनुच्छेद 370 हटाया गया था, तब बोला गया था कि कश्मीर में चरमपंथ और अलगाववाद को जड़ से हटाया जा रहा है. उसके बाद कश्मीर की पूरी सिक्योरिटी का कंट्रोल दिल्ली के हाथ में था."
"उसके बाद हालात बेहतर हो रहे थे और टूरिज़्म बेहतर हो रहा था. हालाँकि, तब भी जम्मू और कश्मीर के कुछ इलाक़ों में हिंसा हो रही थी. लेकिन बोला गया कि कश्मीर में हालात सामान्य हो गए हैं. लोगों का भरोसा वापस आ गया है."
नूर अहमद का कहना है कि मंगलवार का हमला इस बात को नकारता है.
उनके मुताबिक, "यहाँ सुरक्षा एजेंसियों की नाकामी है. यह अतिआत्मविश्वास का नतीजा भी है. अब केंद्र सरकार के लिए यह बोलना मुश्किल होगा कि कश्मीर में हालात ठीक हैं. यह हादसा एक तरीक़े से सरकार की कश्मीर नीति की विफलता है."

मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान (एमपी-आईडीएसए) के सदस्य आदिल रशीद से भी बीबीसी ने बात की.
आदिल रशीद की राय है, "साल 2019 में जब से अनुच्छेद 370 हटाया गया, तब से कश्मीर के सुरक्षा हालात में लगातार सुधार हुआ है. इसी के साथ विकास भी काफ़ी अच्छा हुआ है. शुरू में एक अनिश्चितता की स्थिति थी, जो अब ख़त्म होती जा रही है."
वे कहते हैं, "इसका प्रमाण यह है कि इस घटना के विरोध में परसों रात रैली और कैंडिल मार्च निकला. इसके बाद इमामों ने मस्जिदों से इस हमले की निंदा की. कश्मीर के सभी समुदायों ने इसकी सख़्त निंदा की है. सरकार और सुरक्षा बलों के लिए यह बहुत उत्साहवर्धक संकेत है.''
वे कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि कश्मीर के विकास की किसी भी नीति में बदलाव आएगा. हालाँकि, एक असरदार सुरक्षा नीति ज़रूर आएगी."
आदिल रशीद का कहना है, "सरकार के सबसे बड़े आलोचक भी इस बात को नहीं नकार सकते कि कश्मीर में विकास हुआ है. कश्मीर का जो आम नागरिक है, उसको बहुत फ़ायदा हुआ है."
"जिनके दिलों में राजनीतिक विचार हैं, वह हमेशा रहेंगे. लेकिन ज़मीन पर बहुत सुधार हुआ है. देश के नागरिकों को भरोसा है कि हालत ठीक हुई है."
उनके मुताबिक़, "एक ऐसी घटना हो भी जाती है तो नागरिकों को यह कोई ट्रेंड नहीं लगेगा. यह एक बहुत बड़ा हमला ज़रूर है. इसमें राजनयिक और सेना के स्तर पर ठोस कार्रवाई भी की जाएगी. वहाँ के लोगों का सरकार के साथ जो भरोसा बना है, मुझे नहीं लगता कि वह कमज़ोर होगा."
(बीबीसी संवाददाता जुगल पुरोहित के इनपुट के साथ)
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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