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ट्रंप-पुतिन बैठक में नहीं हुआ कोई समझौता, लेकिन भारत के लिए ये हैं संकेत

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image Andrew Harnik/Getty Images ट्रंप और पुतिन ने बातचीत के बाद साथ में प्रेस कॉन्फ्रेंस तो की, लेकिन पत्रकारों के सवालों का जवाब नहीं दिया

अलास्का के एंकोरेज में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आमने-सामने मुलाक़ात करीब तीन घंटे चली, लेकिन न रूस-यूक्रेन युद्धविराम पर सहमति बन पाई और न कोई ठोस समझौता हो सका.

ट्रंप ने कहा, "कोई समझौता तब तक नहीं होगा, जब तक असल में समझौता नहीं हो जाता." उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि दोनों देश किसी समझौते तक नहीं पहुंच सके.

पुतिन ने कहा कि संघर्ष को ख़त्म करने के लिए उसके "मूल कारण" दूर करना ज़रूरी है और इस दौरान उन्होंने अगली मुलाक़ात के लिए मॉस्को में मिलने का संकेत भी दिया.

मुलाक़ात के बाद संयुक्त बयान जारी हुआ, लेकिन दोनों नेताओं ने पत्रकारों के सवाल नहीं लिए.

बातचीत वन-ऑन-वन (सिर्फ़ दोनों नेताओं के बीच) से आगे बढ़कर थ्री-ऑन-थ्री (दोनों नेताओं के साथ दो-दो सलाहकारों के बीच) के फ़ॉर्मेट में हुई.

इस बैठक के राजनीतिक और कूटनीतिक संकेत भारत के लिए भी अहम हैं, क्योंकि बातचीत से पहले ट्रंप ने भारत के रूस से तेल आयात को निशाना बनाते हुए बयान दिया था. विशेषज्ञ मानते हैं कि यह दबाव भारत के ज़रिए रूस को संदेश देने की ट्रंप की रणनीति का हिस्सा है.

प्रेस कॉन्फ्रेंस में सवालों के जवाब नहीं दिए गए image BBC

शुरुआती योजना अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति पुतिन के बीच अकेले में मुलाक़ात की थी, लेकिन बाद में बदलाव हुआ और बातचीत "थ्री-ऑन-थ्री" फ़ॉर्मेट में हुई. यानी दोनों राष्ट्रपतियों के साथ दो-दो प्रमुख सलाहकार भी मेज़ पर मौजूद थे.

अमेरिका की तरफ़ से विदेश मंत्री मार्को रुबियो और विशेष दूत स्टीव विटकॉफ़ शामिल थे, जबकि रूस की तरफ़ से विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और विदेश नीति सलाहकार यूरी उशाकोव भी मौजूद थे.

बता दें कि इस बातचीत में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की या यूक्रेन का कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं था.

ट्रंप ने संयुक्त बयान को पुतिन को धन्यवाद देकर ख़त्म किया और उन्हें "व्लादिमीर" कहकर संबोधित किया. उन्होंने कहा, "हम आपसे बहुत जल्द बात करेंगे और शायद आपसे फिर बहुत जल्द मिलेंगे." इस पर पुतिन ने अंग्रेज़ी में जवाब दिया, "अगली बार मॉस्को में." इसके बाद दोनों नेताओं ने पत्रकारों के सवाल नहीं लिए.

प्रेस कॉन्फ्रेंस में सवाल नहीं लेने के फ़ैसले पर रूसी राष्ट्रपति के प्रेस सचिव दिमित्री पेस्कोव ने कहा कि व्यापक टिप्पणी करने के कारण सवाल नहीं लेने का निर्णय लिया गया. उन्होंने कहा, "बातचीत वाकई बहुत अच्छी रही और दोनों नेताओं ने यही कहा. इस तरह की बातचीत से मिलकर शांति का रास्ता तलाशने की दिशा में ठोस कदम बढ़ाए जा सकते हैं."

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भारत के लिए संकेत: तीन विशेषज्ञों की राय

गोवा यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफ़ेसर राहुल त्रिपाठी का कहना है कि अमेरिका में ऐसे रूसी राष्ट्राध्यक्ष की मेज़बानी करना काफ़ी बड़ा कूटनीतिक जोख़िम था.

उन्होंने कहा, "जिन पर न सिर्फ़ पूरे पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगाए हैं बल्कि जिनके ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय का गिरफ़्तारी वारंट भी है."

उनके मुताबिक, "अब अमेरिका से टैरिफ़ के संभावित ख़तरे के बीच, एक अधिक आत्मविश्वासी और स्वीकार्य मॉस्को भारत के हित में और भी अहम हो जाता है."

अलास्का में बैठक के लिए जाते वक्त एयर फ़ोर्स वन से फ़ॉक्स न्यूज़ को दिए इंटरव्यू में डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर भारत का ज़िक्र किया.

उन्होंने कहा, "असल में उन्होंने (रूस) एक ऑयल क्लाइंट खो दिया है, यानी भारत, जो लगभग 40 फ़ीसदी तेल ले रहा था. चीन, जैसा कि आप जानते हैं, काफ़ी मात्रा में ले रहा है... और अगर मैंने सेकेंडरी सेंक्शंस लगाए तो यह उनकी नज़र से बेहद विनाशकारी होगा. अगर मुझे करना पड़ा तो मैं करूंगा, शायद मुझे ऐसा न करना पड़े."

रूस मामलों के विशेषज्ञ और जेएनयू स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर राजन कुमार इसे दबाव बनाने की कोशिश मानते हैं.

उनका कहना है कि यह असल में रूस को संदेश देने का तरीका था, "भारत और दूसरे रास्तों के ज़रिए रूस पर दबाव बनाया जा सकता था. ट्रंप जानते हैं कि चीन पर दबाव नहीं डाला जा सकता, इसलिए अपेक्षाकृत सॉफ्ट टारगेट मानकर ट्रंप लगातार भारत का नाम लेते रहे हैं."

"भारत पर इस तरह दबाव बनाकर वे टैरिफ़ को भी कम करवाना चाहते हैं, या ज़ीरो टैरिफ़ की ओर ले जाना चाहते हैं. साथ ही रूस को यह संदेश देना चाहते हैं कि उसके क़रीबी देशों को उससे अलग कैसे किया जा सकता है. चीन को वे अलग नहीं कर पाएंगे, लेकिन कोशिश यह है कि भारत को अलग किया जाए."

image BBC

प्रोफ़ेसर राजन कुमार कहते हैं, "ट्रंप को लगता है कि भारत रूस से आयात बंद कर सकता है. इसके दो कारण हैं. पहला, भारत नहीं चाहता कि अमेरिका के साथ संबंध बिगड़ें. दूसरा, रूस से मिलने वाले सस्ते तेल का लाभ पिछले दिनों में काफ़ी घट गया है."

"इसलिए अगर अमेरिका दबाव बनाता, तो संभावना थी कि भारत आयात में विविधता लाता और वो इसकी कोशिश भी कर रहा था. इसलिए ट्रंप ने कहा कि भारत अब शिफ्ट कर रहा है साथ ही दबाव में और शिफ़्ट करेगा. लेकिन अभी भारत ने ऐसा कोई फ़ैसला नहीं लिया है कि रूस से आयात पूरी तरह बंद कर दे. भारत यह कहने की कोशिश कर रहा है कि हमारा मार्केट जहां से भी हमें लाभ देगा, हम वहीं से ख़रीदेंगे."

बातचीत के नतीजों पर प्रोफ़ेसर राजन कुमार कहते हैं, "ट्रंप के नज़रिए से यह बैठक असफल नहीं रही. उनके हिसाब से यह एक सकारात्मक पहला कदम है. वे बड़े प्रतिनिधिमंडल के साथ आए थे. दोनों नेताओं ने एक-दूसरे के प्रति सकारात्मक संदेश देने की कोशिश की."

हालांकि उन्होंने कहा कि प्रेस कॉन्फ़्रेंस में सवाल न लेने का मतलब यह हो सकता है कि कोई ठोस डील नहीं हुई या उसे अभी सार्वजनिक नहीं करना चाहते.

वह कहते हैं "उन्हें लगता है कि दूसरी शक्तियां, ख़ासकर यूरोपियन यूनियन, हस्तक्षेप कर सकती हैं."

image Andrew Harnik/Getty Images

भारत पर टैरिफ़ बढ़ाने की संभावना पर उनका आकलन है कि यह ख़तरा फिलहाल कम है. "ट्रंप के नज़रिए से बातचीत सफल रही, इसलिए भारत पर और दबाव की संभावना सीमित है. लेकिन यूक्रेन या यूरोपियन यूनियन के दृष्टिकोण से देखें तो यह वार्ता नाकाम रही, क्योंकि युद्धविराम या हवाई हमलों पर रोक जैसे अहम मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं हुई."

निकोर एसोसिएट्स की अर्थशास्त्री मिताली निकोर मानती हैं कि ट्रंप-पुतिन मुलाक़ात भारत के लिए सकारात्मक संकेत लेकर आई है.

उनका कहना है, "इस स्थिति में अमेरिका भारत को फिर से टारगेट नहीं कर सकता. अब जब वह रूस के साथ बातचीत कर रहे हैं, तो ऐसे में भारत को निशाना बनाना काफ़ी विरोधाभासी प्रतिक्रिया होगी."

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वह आगे कहती हैं, "मौजूदा हालात में अमेरिका के लिए टैरिफ़ बढ़ाना मुश्किल है. बल्कि अब समय है कि टैरिफ़ कम करने की बात हो. यह भी कहा जा सकता है कि किसी नए टैरिफ़ के एलान को टाला जा सकता है, क्योंकि अमेरिका की बातचीत और डील ख़ुद रूस के साथ हो रही है."

मिताली कहती हैं कि भारत ने यूक्रेन को शुरुआत से कई मानवीय सहायता पैकेज दिए हैं, इसलिए यह कहना ग़लत है कि भारत को यूक्रेन की परवाह नहीं है.

उनके अनुसार, "राष्ट्रपति पुतिन का यह कहना बेहद अहम है कि अगर राष्ट्रपति ट्रंप दो-तीन साल पहले से ही सत्ता में होते, तो यह युद्ध होता ही नहीं, ऐसा समय आता ही नहीं."

मिताली कहती हैं कि उन्हें उम्मीद है कि आगे का माहौल सकारात्मक रहेगा और भारत अपनी स्थिति अमेरिका के सामने और मज़बूती से रख सकेगा.

ट्रंप-पुतिन ने और क्या-क्या कहा? image Andrew Harnik/Getty Images बातचीत ख़त्म होने के बाद ट्रंप और पुतिन ने एक साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया

क़रीब तीन घंटे चली मुलाक़ात के बाद व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि रूस यूक्रेन में चल रहे संघर्ष को ख़त्म करने में "ईमानदारी से रुचि" रखता है.

उन्होंने युद्ध को "त्रासदी" बताया और कहा कि किसी टिकाऊ समझौते के लिए पहले "मूल कारणों" को ख़त्म करना होगा.

पुतिन ने ट्रंप के उस दावे से सहमति जताई कि अगर वह 2020 के चुनाव के बाद भी पद पर बने रहते तो युद्ध शुरू नहीं होता.

उन्होंने कहा, "ट्रंप साफ़ तौर पर अपने देश की समृद्धि की परवाह करते हैं लेकिन समझते हैं कि रूस के अपने हित हैं."

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि "कई मुद्दों पर सहमति बन गई" लेकिन कुछ मुद्दे अब भी बचे हुए हैं.

उनके अनुसार बातचीत में "प्रगति" हुई है, लेकिन फिलहाल समझौते तक नहीं पहुंचा जा सका है.

उन्होंने कहा, "हम वहां तक नहीं पहुंचे." ट्रंप का कहना है कि अब वह नेटो सहयोगियों, यूरोपीय नेताओं और सीधे राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से बात करेंगे.

ज़ेलेंस्की की प्रतिक्रिया

ज़ेलेंस्की ने बातचीत से पहले कहा था कि रूस की तरफ़ से युद्ध ख़त्म करने का "कोई संकेत" नहीं है. मुलाक़ात के कुछ घंटों बाद उनका पहला बयान आया कि वह सोमवार को वॉशिंगटन डीसी में राष्ट्रपति ट्रंप से मिलेंगे.

एक्स परउन्होंने लिखा, "हमारी राष्ट्रपति ट्रंप से लंबी और सार्थक बातचीत हुई. हमने वन-ऑन-वन बातचीत से शुरुआत की और फिर यूरोपीय नेताओं को इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया. यह कॉल डेढ़ घंटे से ज़्यादा चली, जिसमें लगभग एक घंटा राष्ट्रपति ट्रंप के साथ हमारी द्विपक्षीय बातचीत का था."

उन्होंने आगे लिखा, "हम यूक्रेन, अमेरिका और रूस के बीच त्रिपक्षीय बैठक के राष्ट्रपति ट्रंप के प्रस्ताव का समर्थन करते हैं. यूक्रेन का मानना है कि अहम मुद्दों पर सीधे नेताओं के स्तर पर चर्चा की जा सकती है और इसके लिए ट्राइलेटरल फॉर्मेट सही है."

image Andrew Harnik/Getty Images पुतिन ने कहा कि उन्होंने ट्रंप का स्वागत 'पड़ोसी' कहकर किया बीबीसी के उत्तरी अमेरिका संवाददाता एंथनी जर्चर और रूस संपादक स्टीव रोज़नबर्ग का विश्लेषण

एंथनी जर्चर का विश्लेषण है कि ट्रंप का बयान "कोई समझौता तब तक नहीं होगा, जब तक असल में समझौता नहीं हो जाता" बिना नतीजे वाली वार्ता को स्वीकार करने का एक तरीका था.

कई घंटों की बातचीत के बाद न तो युद्धविराम हुआ और न कोई ठोस नतीजा निकला. ट्रंप ने "कुछ बड़ी प्रगति" की बात कही, पर विवरण बहुत कम दिए.

वह बिना सवाल लिए बाहर निकल गए. यूरोपीय सहयोगी और यूक्रेनी अधिकारी राहत महसूस कर सकते हैं कि ट्रंप ने कोई एकतरफ़ा रियायत नहीं दी.

स्टीव रोज़नबर्ग कहते हैं कि "प्रेस कॉन्फ़्रेंस" तब प्रेस कॉन्फ़्रेंस नहीं होती जब सवाल ही न हों. दोनों नेता बयान देकर मंच से उतर गए, तो हॉल में हैरानी हुई.

रूसी प्रतिनिधिमंडल के सदस्य भी पत्रकारों के सवालों को नज़रअंदाज़ करते हुए तेज़ी से बाहर निकल गए.

ये साफ़ संकेत थे कि यूक्रेन युद्ध के मामले में व्लादिमीर पुतिन और डोनाल्ड ट्रंप के बीच अब भी गंभीर मतभेद हैं. ट्रंप युद्धविराम चाहते थे, पुतिन ने नहीं दिया.

दिन की शुरुआत रेड कार्पेट स्वागत से हुई, पर अंत तक ट्रंप पुतिन को राज़ी नहीं करा पाए.

इससे पहले ट्रंप ने कड़ा रुख और संभावित प्रतिबंधों की चेतावनी दी थी, लेकिन अमल नहीं हुआ. सवाल अब यह है कि क्या वह आगे ऐसा करेंगे.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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