नई दिल्ली: टेलीकॉम सेक्टर की कंपनी Vodafone Idea के स्टॉक में गुरुवार को तेजी देखने को मिल रही है. गुरुवार को स्टॉक में 4 प्रतिशत से ज़्यादा की तेज़ी देखी गई, जिससे स्टॉक ने 6.94 रुपये के अपने इंट्राडे हाई लेवल को टच किया. इस तेज़ी का कारण यह है कि सूत्रों से पता चला है कि भारत सरकार कंपनी में 1 अरब डॉलर निवेश करने वाले निवेशक की तलाश में हैं. सूत्रों के मुबातिक, अगर सरकार के निवेशक मिल जाता है, तो उसे कंपनी की 12 से 13 प्रतिशत की हिस्सेदारी मिल सकती है.
सरकार निवेशक की तलाश मेंमामले से परिचित लोगों ने इकोनॉमिक टाइम्स को बताया कि सरकार एक बड़े निवेशक की तलाश में है जो वोडाफोन आइडिया में 1 अरब डॉलर (करीब ₹8,800 करोड़) का निवेश कर सके. अधिकारियों के अनुसार, बदले में निवेशक को कंपनी में 12-13% हिस्सेदारी मिल सकती है. एक अधिकारी ने बताया कि वोडाफोन आइडिया के मौजूदा मालिक, आदित्य बिरला ग्रुप (एबीजी) और ब्रिटेन की वोडाफोन, चाहें तो अपनी हिस्सेदारी कम कर सकते हैं. ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि सरकार फिलहाल कंपनी में अपना निवेश बनाए रखने की योजना बना रही है.
अधिकारी ने नाम न छपने की शर्त पर कहा कि वे नए निवेशक के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रहे हैं, जो भारत या किसी अन्य देश से हो सकते हैं. यह निवेशक ऐसा हो जो कंपनी को पैसे लगाने के साथ-साथ वोडाफोन आइडिया के मैनेजमेंट में भी मदद कर सके. सरकार को उम्मीद है कि नया निवेशक घाटे में चल रही इस टेलीकॉम कंपनी को नए विचारों के साथ आगे ले जाएगा.
यह प्रस्ताव, वोडाफोन आइडिया के एजीआर बकाया पर संभावित राहत के साथ, कंपनी को जीवित रखने के लिए सरकार की कोशिशों को दिखाता है.
एक दूसरे अधिकारी ने कहा कि हालांकि निवेशक का चयन अभी नहीं हुआ है, लेकिन कुछ इच्छुक खरीदारों की पहचान कर ली गई है और जल्द ही उन लोगों से बातचीत आगे बढ़ने की संभावना है.
फिलहाल, वोडाफोन आइडिया में सरकार की हिस्सेदारी 48.99% है क्योंकि सरकार ने कंपनी के कुछ बकाया को इक्विटी में बदल दिया है. आदित्य बिरला ग्रुप (एबीजी) के पास 9.50% और वोडाफोन (यूके) के पास 16.07% की हिस्सेदारी है.
वोडाफोन आइडिया को इस वित्तीय वर्ष के आखिर तक तत्काल वित्तीय मदद की आवश्यकता है, क्योंकि उसे सरकार को एजीआर बकाया के रूप में हजारों करोड़ रुपये चुकाने शुरू करने होंगे.
अधिकारियों ने बताया कि वे वोडाफोन आइडिया को व्यापक राहत देने के साथ-साथ निवेशक की तलाश पर भी विचार कर रहे हैं. बिजनेस से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि जब तक कंपनी को एजीआर बकाया पर कुछ राहत नहीं मिलती, तब तक निवेशक आकर्षित करना मुश्किल होगा.
इन कोशिशों को करते हुए सरकार की मंशा साफ है कि वह कंपनी को बचाना चाहती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि अगर कंपनी बंद हो जाती है, तो सबसे ज़्यादा नुकसान सरकार को होगा क्योंकि वह इसकी सबसे बड़ी शेयरधारक है और ज़्यादातर बकाया राशि सरकार की ही है.
सरकार निवेशक की तलाश मेंमामले से परिचित लोगों ने इकोनॉमिक टाइम्स को बताया कि सरकार एक बड़े निवेशक की तलाश में है जो वोडाफोन आइडिया में 1 अरब डॉलर (करीब ₹8,800 करोड़) का निवेश कर सके. अधिकारियों के अनुसार, बदले में निवेशक को कंपनी में 12-13% हिस्सेदारी मिल सकती है. एक अधिकारी ने बताया कि वोडाफोन आइडिया के मौजूदा मालिक, आदित्य बिरला ग्रुप (एबीजी) और ब्रिटेन की वोडाफोन, चाहें तो अपनी हिस्सेदारी कम कर सकते हैं. ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि सरकार फिलहाल कंपनी में अपना निवेश बनाए रखने की योजना बना रही है.
अधिकारी ने नाम न छपने की शर्त पर कहा कि वे नए निवेशक के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रहे हैं, जो भारत या किसी अन्य देश से हो सकते हैं. यह निवेशक ऐसा हो जो कंपनी को पैसे लगाने के साथ-साथ वोडाफोन आइडिया के मैनेजमेंट में भी मदद कर सके. सरकार को उम्मीद है कि नया निवेशक घाटे में चल रही इस टेलीकॉम कंपनी को नए विचारों के साथ आगे ले जाएगा.
यह प्रस्ताव, वोडाफोन आइडिया के एजीआर बकाया पर संभावित राहत के साथ, कंपनी को जीवित रखने के लिए सरकार की कोशिशों को दिखाता है.
एक दूसरे अधिकारी ने कहा कि हालांकि निवेशक का चयन अभी नहीं हुआ है, लेकिन कुछ इच्छुक खरीदारों की पहचान कर ली गई है और जल्द ही उन लोगों से बातचीत आगे बढ़ने की संभावना है.
फिलहाल, वोडाफोन आइडिया में सरकार की हिस्सेदारी 48.99% है क्योंकि सरकार ने कंपनी के कुछ बकाया को इक्विटी में बदल दिया है. आदित्य बिरला ग्रुप (एबीजी) के पास 9.50% और वोडाफोन (यूके) के पास 16.07% की हिस्सेदारी है.
वोडाफोन आइडिया को इस वित्तीय वर्ष के आखिर तक तत्काल वित्तीय मदद की आवश्यकता है, क्योंकि उसे सरकार को एजीआर बकाया के रूप में हजारों करोड़ रुपये चुकाने शुरू करने होंगे.
अधिकारियों ने बताया कि वे वोडाफोन आइडिया को व्यापक राहत देने के साथ-साथ निवेशक की तलाश पर भी विचार कर रहे हैं. बिजनेस से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि जब तक कंपनी को एजीआर बकाया पर कुछ राहत नहीं मिलती, तब तक निवेशक आकर्षित करना मुश्किल होगा.
इन कोशिशों को करते हुए सरकार की मंशा साफ है कि वह कंपनी को बचाना चाहती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि अगर कंपनी बंद हो जाती है, तो सबसे ज़्यादा नुकसान सरकार को होगा क्योंकि वह इसकी सबसे बड़ी शेयरधारक है और ज़्यादातर बकाया राशि सरकार की ही है.
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