नई दिल्ली: हफ्ते के पहले दिन यानी सोमवार को शेयर मार्केट में गिरावट देखने को मिल रही है. इसके साथ ही, आईटी सेक्टर में भी गिरावट देखने को मिल रही है. आईटी सेक्टर की बड़ी-बड़ी कंपनियों के स्टॉक सोमवार को लाल निशान पर ट्रेड कर रहे है. इनमें टाटा टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, इंफोसिस, विप्रो, एचसीएलटेक, महिंद्रा जैसी कई बड़ी कंपनियों के स्टॉक शामिल है, जिनमें गिरावट देखी जा रही है. इस गिरावट का कारण यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को एच-1बी वीज़ा की वन टाइम फीस को बढ़ाकर 1 लाख डॉलर यानी 88 लाख रुपये कर दिया है.
निफ्टी आईटी हुआ धड़ामसोमवार को टेक महिंद्रा के स्टॉक में 4 प्रतिशत की गिरावट देखी गई, जिससे स्टॉक ने 1453 रुपये के अपने इंट्राडे लो लेवल को टच किया. इंफोसिस में भी 3 प्रतिशत से ज़्यादा की गिरावट देखी गई, जिससे स्टॉक ने 1482 रुपये के अपने इंट्राडे लो लेवल को टच किया. वहीं टीसीसएस में भी 2 प्रतिशत से ज़्यादा की गिरावट देखी गई, जिससे स्टॉक ने 3065 रुपये के अपने इंट्राडे लो लेवल को टच किया.
विप्रो में भी 2 प्रतिशत से ज़्यादा की गिरावट देखी गई, एमफैसिस में भी 4 प्रतिशत से ज़्यादा की गिरावट देखी गई, परसिस्टेंस सिस्टम में भी 4 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट देखी गई. इसके साथ ही, ख़बर लिखे जाने तक भी निफ्टी आईटी 2.64 प्रतिशत की गिरावट के साथ 35,609 के लेवल पर ट्रेड कर रहा था.
व्हाइट हाउस ने दिया स्पष्टीकरणव्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया कि नए H-1B वीज़ा के लिए $100,000 का शुल्क केवल नए आवेदनों पर लिया जाएगा. यह वार्षिक शुल्क नहीं है, और जिन लोगों के पास पहले से H-1B वीज़ा है, उन्हें इसे रिन्यू करने या अमेरिका वापस आने पर अतिरिक्त भुगतान नहीं करना होगा.
एसबीआई सिक्योरिटीज के फंडामेंटल रिसर्च प्रमुख सनी अग्रवाल ने इकोनॉमिक टाइम्स को दिए अपने बयान में कहा कि इससे नकारात्मक प्रभाव कम होता है, लेकिन अभी भी कुछ अनिश्चितता बनी हुई है क्योंकि यह साफ नहीं है कि क्या कंपनियाँ अपने ग्राहकों से यह अतिरिक्त लागत वसूल पाएंगी.
क्या कह रहें हैं एक्सपर्ट्स?विश्लेषकों का मानना है कि लंबे समय में, यह फ़ैसला भारत के 250 अरब डॉलर के आईटी आउटसोर्सिंग इंडस्ट्री में चल रही बड़ी समस्याओं को उजागर करता है, जिन्हें ठीक करना आसान नहीं है.
असित सी मेहता के इंस्टीट्यूशनल रिसर्च हेड सिद्धार्थ भामरे ने कहा कि कंपनियाँ ज़्यादा नौकरियाँ भारत में ट्रांसफर करके या अपनी कीमतें बढ़ाकर इसका जवाब दे सकती हैं. हालाँकि, उन्होंने यह भी कहा कि मीडियम से लॉन्ग टर्म में, इस बदलाव से आईटी इंडस्ट्री को नुकसान होगा.
ज़्यादा शुल्क भारतीय तकनीकी कर्मचारियों को अमेरिका भेजने की लागत का हिसाब बदल देता है. टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो जैसी बड़ी कंपनियाँ इस अतिरिक्त लागत को ज़्यादा आसानी से संभाल सकती हैं, लेकिन छोटी और मध्यम आकार की कंपनियाँ, जो नए एच-1बी वीज़ा पर ज़्यादा निर्भर हैं, उनके मुनाफ़े में कमी आ सकती है.
अग्रवाल ने बताया कि अमेरिका में कर्मचारियों को नियुक्त करने के बजाय भारत से कर्मचारियों को भेजने का लागत लाभ बहुत कम हो जाएगा. इस वजह से, कंपनियों को इन बदलावों से निपटने के लिए अपनी भर्ती योजनाओं और मूल्य निर्धारण रणनीतियों में बदलाव करना होगा.
उन्होंने आगे कहा कि अगर नया शुल्क उन लोगों पर भी लागू किया जाता है जिनके पास पहले से ही एच-1बी वीज़ा है, तो इसका बहुत बड़ा नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जिससे मुनाफ़ा 1-4% तक कम हो जाएगा. हालाँकि, उन्हें लगता है कि ऐसा होने की संभावना कम है.
(ये एक्सपर्ट/ ब्रोकरेज के निजी सुझाव/ विचार हैं. ये इकोनॉमिक टाइम्स हिंदी के विचारों को नहीं दर्शाते हैं. किसी भी फंड/ शेयर में निवेश करने से पहले अपने फाइनेंशियल एडवाइजर की राय जरूर लें.)
निफ्टी आईटी हुआ धड़ामसोमवार को टेक महिंद्रा के स्टॉक में 4 प्रतिशत की गिरावट देखी गई, जिससे स्टॉक ने 1453 रुपये के अपने इंट्राडे लो लेवल को टच किया. इंफोसिस में भी 3 प्रतिशत से ज़्यादा की गिरावट देखी गई, जिससे स्टॉक ने 1482 रुपये के अपने इंट्राडे लो लेवल को टच किया. वहीं टीसीसएस में भी 2 प्रतिशत से ज़्यादा की गिरावट देखी गई, जिससे स्टॉक ने 3065 रुपये के अपने इंट्राडे लो लेवल को टच किया.
विप्रो में भी 2 प्रतिशत से ज़्यादा की गिरावट देखी गई, एमफैसिस में भी 4 प्रतिशत से ज़्यादा की गिरावट देखी गई, परसिस्टेंस सिस्टम में भी 4 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट देखी गई. इसके साथ ही, ख़बर लिखे जाने तक भी निफ्टी आईटी 2.64 प्रतिशत की गिरावट के साथ 35,609 के लेवल पर ट्रेड कर रहा था.
व्हाइट हाउस ने दिया स्पष्टीकरणव्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया कि नए H-1B वीज़ा के लिए $100,000 का शुल्क केवल नए आवेदनों पर लिया जाएगा. यह वार्षिक शुल्क नहीं है, और जिन लोगों के पास पहले से H-1B वीज़ा है, उन्हें इसे रिन्यू करने या अमेरिका वापस आने पर अतिरिक्त भुगतान नहीं करना होगा.
एसबीआई सिक्योरिटीज के फंडामेंटल रिसर्च प्रमुख सनी अग्रवाल ने इकोनॉमिक टाइम्स को दिए अपने बयान में कहा कि इससे नकारात्मक प्रभाव कम होता है, लेकिन अभी भी कुछ अनिश्चितता बनी हुई है क्योंकि यह साफ नहीं है कि क्या कंपनियाँ अपने ग्राहकों से यह अतिरिक्त लागत वसूल पाएंगी.
क्या कह रहें हैं एक्सपर्ट्स?विश्लेषकों का मानना है कि लंबे समय में, यह फ़ैसला भारत के 250 अरब डॉलर के आईटी आउटसोर्सिंग इंडस्ट्री में चल रही बड़ी समस्याओं को उजागर करता है, जिन्हें ठीक करना आसान नहीं है.
असित सी मेहता के इंस्टीट्यूशनल रिसर्च हेड सिद्धार्थ भामरे ने कहा कि कंपनियाँ ज़्यादा नौकरियाँ भारत में ट्रांसफर करके या अपनी कीमतें बढ़ाकर इसका जवाब दे सकती हैं. हालाँकि, उन्होंने यह भी कहा कि मीडियम से लॉन्ग टर्म में, इस बदलाव से आईटी इंडस्ट्री को नुकसान होगा.
ज़्यादा शुल्क भारतीय तकनीकी कर्मचारियों को अमेरिका भेजने की लागत का हिसाब बदल देता है. टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो जैसी बड़ी कंपनियाँ इस अतिरिक्त लागत को ज़्यादा आसानी से संभाल सकती हैं, लेकिन छोटी और मध्यम आकार की कंपनियाँ, जो नए एच-1बी वीज़ा पर ज़्यादा निर्भर हैं, उनके मुनाफ़े में कमी आ सकती है.
अग्रवाल ने बताया कि अमेरिका में कर्मचारियों को नियुक्त करने के बजाय भारत से कर्मचारियों को भेजने का लागत लाभ बहुत कम हो जाएगा. इस वजह से, कंपनियों को इन बदलावों से निपटने के लिए अपनी भर्ती योजनाओं और मूल्य निर्धारण रणनीतियों में बदलाव करना होगा.
उन्होंने आगे कहा कि अगर नया शुल्क उन लोगों पर भी लागू किया जाता है जिनके पास पहले से ही एच-1बी वीज़ा है, तो इसका बहुत बड़ा नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जिससे मुनाफ़ा 1-4% तक कम हो जाएगा. हालाँकि, उन्हें लगता है कि ऐसा होने की संभावना कम है.
(ये एक्सपर्ट/ ब्रोकरेज के निजी सुझाव/ विचार हैं. ये इकोनॉमिक टाइम्स हिंदी के विचारों को नहीं दर्शाते हैं. किसी भी फंड/ शेयर में निवेश करने से पहले अपने फाइनेंशियल एडवाइजर की राय जरूर लें.)
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