गोल्ड और रियल एस्टेट
वर्तमान में निवेश के लिए कई विकल्प उपलब्ध हैं, लेकिन गोल्ड और रियल एस्टेट पर चर्चा अधिक होती है। ये दोनों पारंपरिक निवेश के रूप में जाने जाते हैं। गोल्ड को तुरंत खरीदा और बेचा जा सकता है, जिससे निवेश पोर्टफोलियो में स्थिरता आती है। वहीं, रियल एस्टेट लंबी अवधि में बेहतर रिटर्न प्रदान करता है, लेकिन इसमें प्रॉपर्टी खरीदने और बेचने में समय और दस्तावेज़ीकरण की आवश्यकता होती है। सवाल यह है कि इनमें से कौन सा विकल्प अधिक लाभकारी है? आइए, हम इस लेख में दोनों निवेश विकल्पों का विस्तार से विश्लेषण करते हैं।
गोल्ड में निवेश के लाभगोल्ड की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह शेयर बाजार की अस्थिरता के समय में सुरक्षा प्रदान करता है। छोटे निवेश से भी गोल्ड में निवेश करना संभव है। आवश्यकता पड़ने पर इसे आसानी से नकद में बदला जा सकता है। SGB जैसे विकल्पों के आने से गोल्ड को सुरक्षित रखने की समस्या समाप्त हो गई है। गोल्ड ETF में भी डीमैट अकाउंट के माध्यम से निवेश किया जा सकता है।
गोल्ड से नियमित आय का अभावगोल्ड का एक नकारात्मक पहलू यह है कि यह नियमित आय उत्पन्न नहीं करता। रिटर्न केवल तब मिलता है जब इसकी कीमतें बढ़ती हैं। भौतिक गोल्ड को सुरक्षित रखना आवश्यक होता है। गोल्ड ETF में निवेश पर मामूली शुल्क लगता है, जबकि SGB में निवेश करने पर पैसे कुछ वर्षों के लिए लॉक रहते हैं।
रियल एस्टेट से दो प्रकार की आयप्रॉपर्टी से दो स्रोतों से लाभ होता है: किराया और समय के साथ बढ़ती प्रॉपर्टी की कीमत। यदि आप 8-10 वर्षों तक प्रॉपर्टी को रखते हैं, तो अच्छा रिटर्न मिलने की संभावना होती है। होम लोन की सुविधा से घर खरीदना आसान हो गया है। कुछ वर्षों बाद बढ़ता किराया EMI का एक बड़ा हिस्सा खुद-ब-खुद कवर कर लेता है। लोन चुकता होने पर प्रॉपर्टी पूरी तरह से आपके नाम हो जाती है।
रियल एस्टेट में लिक्विडिटी की कमीप्रॉपर्टी को तुरंत नकद में बदलना कठिन होता है। बेचने में समय लग सकता है और कीमत स्थानीय बाजार के अनुसार निर्धारित होती है। इसके अलावा, मेंटेनेंस, सोसायटी चार्ज, मरम्मत और प्रॉपर्टी टैक्स जैसे खर्च भी शामिल होते हैं।
किसमें निवेश करना बेहतर है?यदि आपकी प्राथमिकता लिक्विडिटी है, तो गोल्ड एक बेहतर विकल्प है। लंबी अवधि के रिटर्न और संपत्ति निर्माण के लिए रियल एस्टेट उपयुक्त है। होम लोन लेने पर EMI का नियमित भुगतान करना होता है, जबकि गोल्ड में ऐसी कोई बाध्यता नहीं होती। विशेषज्ञों का मानना है कि शुरुआती कुछ वर्षों में EMI का बोझ होता है, लेकिन समय के साथ बढ़ता किराया इसे संतुलित कर देता है।
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