दिवाली पर ताश और जुआ
दिवाली का महत्व: हर साल कार्तिक मास की अमावस्या को मनाए जाने वाले दिवाली के त्योहार का आयोजन इस वर्ष 20 अक्टूबर को होगा। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की विशेष पूजा की जाती है, जिससे घर में समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है।
दिवाली के अवसर पर कई परिवारों में ताश और जुआ खेलने की परंपरा भी है। आइए, जानते हैं कि क्या इस दिन जुआ खेलना उचित है या नहीं।
जुए की परंपरा का इतिहासभारत में प्राचीन काल से जुआ खेलने की परंपरा रही है। पहले इसे चौसर और चौपड़ के रूप में खेला जाता था, लेकिन अब ताश के माध्यम से खेला जाता है। दिवाली पर जुआ खेलने की परंपरा भगवान शिव और माता पार्वती के जुए खेलने की कथा से जुड़ी हुई है।
कथा का सारांशकिसी कथा के अनुसार, दिवाली के दिन भगवान शिव और माता पार्वती ने जुआ खेला था, जिसमें भगवान शिव को हार का सामना करना पड़ा। इसी कारण से यह परंपरा दिवाली से जुड़ गई है। हालांकि, इस संबंध में कोई ठोस प्रमाण नहीं है। महाभारत काल में भी जुआ खेला गया था, जिसमें कौरवों ने पांडवों को धोखे से हराया था।
क्या जुआ खेलना उचित है?जुए को एक सामाजिक बुराई माना जाता है, जो कई बार लोगों को परेशानियों में डाल देती है। वर्तमान में, कानून जुआ खेलने की अनुमति नहीं देता। इसलिए, दिवाली जैसे शुभ अवसर पर जुआ खेलना उचित नहीं है। इस दिन ताश या जुआ खेलने से बचना चाहिए, क्योंकि कई बार यह शगुन का खेल दुर्गुण में बदल सकता है।
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