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अलौली सीट पर मुद्दों की भरमार, दिलचस्प मुकाबले के आसार

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खगड़िया जिले की अलौली विधानसभा सीट बिहार की राजनीति में एक विशिष्ट स्थान रखती है। 1962 में गठित यह सुरक्षित सीट न केवल जातीय समीकरणों के कारण, बल्कि अपने सामाजिक और भौगोलिक मुद्दों के चलते भी लगातार चर्चा में रही है।

हां की चुनावी कहानी उतार-चढ़ाव से भरी रही है, जिसने इसे एक राजनीतिक प्रयोगशाला बना दिया है।

अलौली सीट पर कांग्रेस ने 1962, 1967, 1972 और 1980 में जीत दर्ज की। इसके बाद समाजवादी विचारधारा के दलों ने यहां 11 बार कब्जा जमाया। जनता दल, राजद, जदयू और लोजपा ने दो-दो बार, जबकि संयुक्त समाजवादी पार्टी, जनता पार्टी और लोकदल ने एक-एक बार जीत हासिल की। 2020 में राजद के रामवृक्ष सदा ने जदयू की साधना देवी को मात्र 2,773 वोटों से हराया था, जबकि 2015 में महागठबंधन ने लोजपा के पशुपति पारस को पराजित किया था।

वोटों का बिखराव और नए समीकरण

2020 के चुनाव में चिराग पासवान की अगुवाई में लोजपा के एनडीए से अलग होने के कारण वोटों का बिखराव हुआ, जिसका सीधा लाभ राजद को मिला। इस सीट पर कुल मतदाता संख्या 2,52,891 थी, जो अब बढ़कर 2,67,640 हो गई है। अनुसूचित जाति के मतदाता 25.39% और मुस्लिम मतदाता 7.6% हैं, जो चुनावी परिणामों को निर्णायक रूप से प्रभावित करते हैं।

अलौली में सबसे बड़ी जातीय आबादी सदा (मुसहर) समुदाय की है, जिसकी संख्या लगभग 65,000 है। यह समुदाय अनुसूचित जाति में आता है और चुनावी जीत-हार में अहम भूमिका निभाता है। यादव समुदाय की संख्या करीब 45,000 है, जो सामाजिक और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली है। मुस्लिम मतदाता 15,000 हैं, जो अल्पसंख्यक वोटों का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

जातियों का आंकड़ा है खास

कोयरी और कुर्मी समाज की संयुक्त संख्या 35,000 है, जो संगठित और शिक्षित होने के कारण राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माने जाते हैं। पासवान समुदाय की संख्या 10,000, राम समुदाय की 6,000 और मल्लाह समुदाय की 12,000 है। अगड़ी जातियों की संख्या 8,000 और अन्य पिछड़ा वर्ग व सामान्य समुदायों की संख्या लगभग 70,000 है। यह जातीय विविधता किसी भी दल को एकतरफा समर्थन की संभावना से दूर रखती है।

दलित राजनीति की ऐतिहासिक शुरुआत

अलौली की सियासी जमीन ने देश के दिग्गज दलित नेता रामविलास पासवान को 1969 में पहली बार बिहार विधानसभा में पहुंचाया। उन्होंने संयुक्त समाजवादी पार्टी के टिकट पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मिश्री सदा को हराकर राजनीतिक सुर्खियां बटोरी थीं।

विकास की चुनौतियां

अलौली एक सुदूर ग्रामीण क्षेत्र है, जहां आज भी सड़क, बिजली और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी है। बाढ़ और कटाव की वजह से आधी से ज्यादा कृषि योग्य भूमि जलमग्न रहती है। रोजगार के अभाव में युवाओं का पलायन एक गंभीर समस्या बन चुका है।

अबकी बार मुकाबला होगा दिलचस्प

इस क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती है बुनियादी ढांचे का अभाव और बार-बार आने वाली प्राकृतिक आपदाएं। बाढ़ और कटाव से निपटने के लिए दीर्घकालिक योजनाओं की आवश्यकता है। साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों को बढ़ाकर पलायन को रोका जा सकता है। जातीय विविधता, सामाजिक मुद्दे और विकास की मांगों के बीच अलौली विधानसभा सीट पर 2025 का चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाला है। कोई भी दल यहां एकतरफा जीत का दावा नहीं कर सकता, जिससे मुकाबला और भी रोमांचक हो गया है।

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