भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स का चलन तेजी से बढ़ रहा है. बढ़ती फ्यूल कीमतें, सरकार की सब्सिडी और पर्यावरण को लेकर लोगों की जागरूकता ने ईवी को एक मजबूत ऑप्शन बना दिया है. लेकिन जब कोई ग्राहक ईवी खरीदता है, तो उसके सामने एक बड़ी चिंता खड़ी हो जाती है- इंश्योरेंस की कीमत.
अक्सर लोग कहते हैं, “अरे! कार तो सस्ती है या सब्सिडी के बाद ठीक-ठाक दाम में मिल गई,लेकिन इंश्योरेंस तो पेट्रोल -डीजल कार से कहीं ज्यादा है !” ये सवाल बिल्कुल जायज है. आइए जानते हैं कि आखिर ईवी का इंश्योरेंस महंगा क्यों होता है और इसके पीछे कौन-कौन से कारण काम करते हैं.
पेट्रोल कार का इंश्योरेंस कितने का होता है?
कितने का होता है पेट्रोल कार का इंश्योरेंसकार इंश्योरेंस की कीमत इंजन की क्षमता, कार के मॉडल और कार के इस्तेमाल जैसे कई कारकों पर निर्भर करती है, इसलिए इसकी कोई एक निश्चित राशि नहीं है. थर्ड-पार्टी इंश्योरेंस की शुरुआत 2,000 रुपए से हो सकती है, जबकि कॉम्प्रिहेंसिव पॉलिसी की लागत 10,000 से 20,000 रुपए या इससे भी अधिक हो सकती है.
ईवी का इंश्योरेंस कार के किलोवाट (kW) क्षमता के आधार पर तय होता है
कितने का होता है इलेक्ट्रिक कार का इंश्योरेंसका इंश्योरेंस आपकी कार के किलोवाट (kW) क्षमता के आधार पर तय होता है, जिसमें ₹1,780 से ₹6,712 प्रति वर्ष या लंबी अवधि के लिए और भी अधिक (उदाहरण के लिए, ₹5,543 से ₹20,907 तक) का खर्च आ सकता है. इसके अलावा, कार का मेक और मॉडल भी इंश्योरेंस पर निर्भर करता है.
ईवी की जान होती है उसकी बैटरी
बैटरी की कीमत सबसे बड़ा कारणकिसी भी ईवी की जान होती है उसकी बैटरी. आज की तारीख में एक की बैटरी उसकी कुल कीमत का लगभग 30 प्रतिशत से 40 प्रतिशत हिस्सा होती है. अगर बैटरी को किसी हादसे में नुकसान पहुंचता है तो उसकी रिप्लेसमेंट कॉस्ट लाखों रुपए तक जा सकती है.
आपको एक उदाहरण के तौर पर बताए तो, अगर किसी ईवी की बैटरी बदलनी पड़ी तो ये खर्च 4 से 6 लाख रुपए तक हो सकता है, जबकि पेट्रोल कार में इंजन रिपेयरिंग इतनी महंगी नहीं पड़ती है. यही वजह है कि इंश्योरेंस कंपनियां रिस्क ज्यादा मानती हैं और प्रीमियम बढ़ा देती हैं.
ईवी की रिपेयरिंग कॉस्ट और बढ़ जाती है
ईवी अभी भारत में नई टेक्नॉलजी है. पेट्रोल -डीजल कारों की तरह इनके पार्ट्स हर जगह आसानी से नहीं मिलते.
अगर किसी इलेक्ट्रिक कार का फेंडर, कंट्रोल मॉड्यूल या बैटरी पैक खराब हो जाए, तो पार्ट्स मंगाने और रिपेयर कराने में ज्यादा खर्च आता है.
वहीं, डीलरशिप और सर्विस सेंटर्स भी सीमित हैं, जिससे रिपेयरिंग कॉस्ट और बढ़ जाती है.
इस अतिरिक्त खर्च को कवर करने के लिए कंपनियां प्रीमियम महंगा कर देती है.
हाई-टेक फीचर्स, हाई कॉस्ट रिपेयरईवी में ज्यादातर एडवांस्ड फीचर्स आते हैं- जैसे कि ADAS (Advanced Driver Assistance Systems), स्मार्ट कनेक्टिविटी, डिजिटल डिस्प्ले, ऑटोमैटिक ब्रेकिंग सिस्टम.
ये फीचर्स कार को मॉडर्न और सेफ तो बनाते हैं, लेकिन इनकी रिपेयरिंग बेहद महंगी होती है.
अगर किसी छोटे से एक्सीडेंट में भी सेंसर खराब हो जाएं, तो बिल हजारों में नहीं बल्कि लाखों तक जा सकता है.
जिसके कारण इंश्योरेंस कंपनियों को ये रिस्क ध्यान में रखना पड़ता है.
EV को रिपेयर करने के लिए स्पेशल ट्रेनिंग और टूल्स चाहिए होते हैं
एक्सीडेंट का डर और बैटरी फायर रिस्कपिछले कुछ सालों में हमने ईवी बैटरी में आग लगने की घटनाएं सुनी हैं. हालांकि कंपनियां लगातार बैटरी सेफ्टी पर काम कर रही हैं, लेकिन फिर भी इंश्योरेंस प्रोवाइडर के लिए ये एक बड़ा रिस्क है.
बैटरी फेल्योर या आग लगने जैसी घटनाओं में पूरी गाड़ी बदलनी पड़ सकती है.
वहीं, EV को रिपेयर करने के लिए स्पेशल ट्रेनिंग और टूल्स चाहिए होते हैं, जो आसानी से हर जगह उपलब्ध नहीं हैं.
इसलिए रिस्क फैक्टर बढ़ने के साथ इंश्योरेंस की लागत भी बढ़ जाती है.
रीसेल वैल्यू को लेकर अनिश्चिततापेट्रोल और डीजल कारों की सेकंड -हैंड मार्केट वैल्यू आसानी से तय हो जाती है. लेकिन ईवी के मामले में अभी भी ये क्लियर नहीं है कि 5 से 6 साल बाद उनकी रीसेल वैल्यू कितनी होगी.
खासकर बैटरी की लाइफ पर सवाल हमेशा रहते हैं.
अगर बैटरी की परफॉर्मेंस गिर गई, तो गाड़ी की वैल्यू काफी घट सकती है.
इसलिए इंश्योरेंस कंपनियां खुद को सुरक्षित रखने के लिए प्रीमियम ज्यादा रखती हैं.
कंपनियां कार की ऑन-रोड प्राइस के हिसाब से प्रीमियम तय करती हैं
EVs की शुरुआती कीमत ज्यादा होनाभले ही सरकार सब्सिडी देती है, लेकिन फिर भी ईवी की शुरुआती कीमत पेट्रोल-डीजल कारों से ज्यादा होती है.
महंगी कार का मतलब है महंगा इंश्योरेंस.
कंपनियां कार की ऑन-रोड प्राइस के हिसाब से प्रीमियम तय करती हैं और EVs की कीमत ज्यादा है, तो प्रीमियम भी स्वाभाविक रूप से बढ़ जाता है.
जैसे-जैसे ईवी का मार्केट बढ़ेगा, प्रीमियम धीरे-धीरे कम होगा
इंश्योरेंस कंपनियों का रिस्क अवॉइडेंसभारत में ईवी अभी भी नया मार्केट है. इंश्योरेंस कंपनियों के पास इनके परफॉर्मेंस, मेंटेनेंस कॉस्ट और लॉन्ग-टर्म डैमेज डेटा बहुत सीमित है.
जब कंपनियों के पास क्लियर डाटा नहीं होता, तो वो रिस्क कवर करने के लिए प्रीमियम बढ़ा देती है. ये उनकी एक तरह से सुरक्षा कवच की तरह काम करता है.
लेकिन राहत भी है!ये सही है कि ईवी का इंश्योरेंस महंगा होता है, लेकिन अच्छी खबर ये है कि जैसे-जैसे ईवी का मार्केट बढ़ेगा, प्रीमियम धीरे-धीरे कम होगा.
सरकार भी ग्रीन मोबिलिटी को बढ़ावा देने के लिए इंश्योरेंस पर टैक्स रियायत देने पर विचार कर रही है.
साथ ही, बैटरी टेक्नॉलजी सस्ती और सुरक्षित होगी, जिससे रिपेयरिंग कॉस्ट घटेगी.
आने वाले सालों में जैसे ही EV का नेटवर्क और डिमांड बढ़ेगी, वैसे ही इंश्योरेंस किफायती होता जाएगा.
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