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इतने बड़े तपस्वी होकर भी परशुराम` जी ने क्यों काटा अपनी मां का गला? यहां पढ़िए पूरी कथा…

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भगवान परशुराम ने सदा ही धर्म के लिए अपना परशु उठाया, उनके क्रोध से देवी-देवता थर-थर कांपते थे। पर क्या आप जानते हैं कि भगवान परशुराम जी ने अपनी ही मां रेणुका का गला काट दिया था, वो भी अपने पिता ऋषि जमदग्नि के आदेश पर।

यह कथा बहुत मार्मिक और धार्मिक शिक्षाओं से जुड़ी हुई है। जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।

भगवान परशुराम पराक्रम के प्रतीक माने जाते हैं. वह अपने माता-पिता के परम भक्त थे। उनकी मां रेणुका अत्यंत पवित्र, पतिव्रता और तेजस्विनी थीं। एक दिन वे नदी से पानी भरने गईं, तभी उन्होंने एक राजा और रानी को प्रेम भाव में देखा, जिससे उनके मन में क्षणभर के लिए मोह भाव उत्पन्न हो गया। ऋषि जमदग्नि को यह ज्ञात हो गया, क्योंकि वे तपस्वी और त्रिकालज्ञ थे। इस “मानसिक विचलन” को उन्होंने पाप माना और अपने पुत्रों को आदेश दिया कि वे अपनी मां का सिर काट दें।

पहले चारों पुत्रों (व्यासु, विश्ववासु, शुतसन और वसु) ने मना कर दिया, तो ऋषि ने उन्हें श्राप दे दिया। परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा मानकर अपनी मां का सिर काट दिया। ऋषि जमदग्नि अपने पुत्र परशुराम से प्रसन्न हुए और कहा कि जो वर मांगना हो, मांग लो। तब परशुराम ने कहा था- ‘मुझे मेरी मां को पुनर्जीवित करने का वर दीजिए और मेरे भाइयों को भी उनके पुराने स्वरूप में लौटा दीजिए।’ ऋषि ने यह वरदान दे दिया और रेणुका माता पुनः जीवित हो गईं।

हालांकि परशुराम जी ने अपने पिता की आज्ञा मानी थी, लेकिन मां का गला काटने के अपराध का उन्हें अत्यंत पश्चाताप हुआ। मान्यता है कि भगवान परशुराम जी ने पश्चाताप स्वरूप उत्तर भारत में स्थित “महादेव मंदिर” या “पशुपतिनाथ मंदिर” (कुछ मान्यताओं में नेपाल का पशुपतिनाथ) जाकर घोर तपस्या की थी। इसके अलावा, भारत के कई स्थानों पर “परशुराम कुण्ड” और “परशुराम तपस्थल” मौजूद हैं, जहां वे प्रायश्चित के लिए गए थे, जैसे:परशुराम कुंड (अरुणाचल प्रदेश), जनपाव (मध्यप्रदेश) और रेणुका तीर्थ (हिमाचल प्रदेश)।

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