गाँव के छोर पर बंसी काका रहते थे। उम्र ढल चुकी थी, मगर हिम्मत अब भी बैल जैसी थी। बेटे शहर का रुख कर चुके थे, खेत-खलिहान भी धीरे-धीरे बिक-बिक कर कम हो चले थे। अब उनके पास बस एक कच्चा मकान था, थोड़ा-सा आँगन और उनकी सबसे बड़ी साथी—बकरी लाली।
लाली उनके लिए सिर्फ़ जानवर नहीं थी, वह उनका परिवार थी। सुबह की शुरुआत उसकी मे-मे से होती और रात की तन्हाई उसकी साँसों की गर्माहट से कट जाती। बंसी काका उससे बातें करते तो लगता जैसे वह सब समझ रही हो।
इसी बीच गाँव में मेला लगा। जेब खाली थी, बेटों की तरफ़ से मनीऑर्डर आने में देर थी। पड़ोसी हरिया बोला—
“काका, लाली को बेच दो। सौ-पचास मिल जाएँगे। दवा-दारू आ जाएगी, घर में भी कुछ सामान आ जाएगा।”
बंसी काका चुप रह गए। अगले दिन सुबह लाली की रस्सी पकड़कर वह हाट की ओर निकल पड़े।
हाट के बीचोंबीच कसाई खड़ा था। उसकी नज़र लाली पर टिक गई।
“कितने की है?” उसने पूछा।
काका ने लाली की आँखों में देखा। उनमें डर था, जैसे कह रही हो—“काका, तुम भी मुझे छोड़ दोगे?”
काका की आँखें भर आईं। कसाई ने पैसे आगे बढ़ाए।
काका ने लाली की गर्दन पर हाथ फेरा, फिर कसाई की ओर देखा और पैसे उसके हाथ से झटक कर ज़मीन पर फेंक दिए।
“नहीं बेचनी मुझे। मैं भूखा रह लूंगा, पर इसकी सांसों का सौदा नहीं करूँगा।”
लाली उनके पैरों से लिपट गई। गाँव के लोग खड़े थे, कोई कुछ नहीं बोला, लेकिन सबकी आँखें भीग गईं।
उस दिन गाँव ने जाना—
दया केवल धर्म नहीं, बल्कि इंसानियत की असली पहचान है।
You may also like
ना अंडरवियर… ना` सलवार… सिर्फ फटा हुआ सूट पहनकर सड़क पर निकली यह एक्ट्रेस देखकर आप भी हो जाएंगे शर्मसार
आचार्य चाणक्य की नीतियाँ: महिलाओं के स्वभाव पर महत्वपूर्ण विचार
शरीर में अचानक` होने वाले परिवर्तनों का होता है ख़ास मतलब, जानिए कुछ ऐसे संकेत जो अचानक होते हैं
पंजाब बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए MP से उठे हाथ, अशोकनगर सिख समाज ने एकत्रित की राशि, प्रभावितों से मिलकर सौंपेंगे
AFG vs UAE: ट्राई सीरीज में आख़िरी ओवर के रोमांच में अफगानिस्तान ने यूएई को 4 रनों से हराया