पुरी, 14 सितंबर . पुरी के श्रीजगन्नाथ धाम में Sunday से षोडश दिनात्मक दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई. यह पूजा शारदीय नवरात्रि के साथ प्रारंभ होती है और दशहरे तक कुल 16 दिन तक चलती है. जगन्नाथ मंदिर परिसर में इस पूजा का विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है.
हर साल यह पूजा वैदिक परंपराओं और धार्मिक विधानों के अनुसार की जाती है, जिसमें देवी दुर्गा और भगवान जगन्नाथ को भैरवी-भैरव के युग्म रूप में पूजा जाता है.
इस अवसर पर गुरुकुल वेद पाठशाला के आचार्य पंडित सूर्य नारायण दास ने बताया, “आज एक परंपरा दिवस है, जो भारतीय संस्कृति और जगन्नाथ परंपरा का प्रतीक है. षोडश दिनात्मक पूजा शारदीय दुर्गा पूजा का अहम भाग है, जो आज से शुरू हो रही है. यहां देवी भगवती और स्वयं भगवान, जिनके नाम दुर्गा-माधव भी हैं, उनकी युग्म रूप में आराधना होती है. पुरी में देवी दुर्गा को ‘भैरवी’ माना जाता है और भगवान जगन्नाथ को ‘भैरव’. यह पूजन एक दिव्य युग्म पूजा है, जो केवल इस धाम में विशेष रीति से संपन्न होती है.”
पंडित दास ने कहा, “आज से सोलह दिन तक हर दिन सुबह पूजन, चंडीपाठ, भगवती सहस्त्रनाम और हवन का आयोजन किया जाएगा. यह सब पूर्ण रूप से वैदिक पद्धति से किया जाएगा. आज गजपति महाराज जी द्वारा पूजा की शुरुआत की गई है. कोई आचार्य चंडीपाठ करेगा, कोई हवन तो कोई सहस्त्रनाम का पाठ करेगा. इस बार 22 आचार्य यहां उपस्थित हैं और उन्हें वस्त्र, नारियल, दक्षिणा, यज्ञोपयोगी सामग्री सहित पूजा का कार्य सौंपा गया है.”
षोडश दिनात्मक पूजा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि पुरी की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान का हिस्सा है. इसमें देवी के कई रूपों की पूजा की जाती है, जिनमें बिमला, भगवती, मंगला, बाराही, हिंगुला, काली और गोपालुनी शामिल हैं. ये सभी देवी स्वरूप अलग-अलग मंदिरों में प्रतिष्ठित हैं और विशेष विधियों से पूजे जाते हैं.
यह पूजा समाज को उसकी प्राचीन धार्मिक परंपराओं से जोड़ती है और नई पीढ़ी को वेद, मंत्र और संस्कारों की महत्ता से परिचित कराती है.
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पीके/वीसी
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