New Delhi, 30 सितंबर . Pakistan के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने स्वीकार किया है कि वाशिंगटन की तुलना में बीजिंग के साथ इस्लामाबाद की निकटता अधिक है. आसिफ का ये बयान तब आया है जब सब जानते हैं कि वाशिंगटन और बीजिंग के बीच रिश्ते नासाज रहे हैं और दोनों के बीच टकराव की स्थिति बनी रहती है. यह बात ऐसे समय में कही गई है, जब उनके नेता व्हाइट हाउस के साथ नजदीकियों की मुनादी कर रहे हैं.
New Delhi, 30 सितंबर . Pakistan के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने स्वीकार किया है कि वाशिंगटन की तुलना में बीजिंग के साथ इस्लामाबाद की निकटता अधिक है. आसिफ का ये बयान तब आया है जब सब जानते हैं कि वाशिंगटन और बीजिंग के बीच रिश्ते नासाज रहे हैं और दोनों के बीच टकराव की स्थिति बनी रहती है. यह बात ऐसे समय में कही गई है, जब उनके नेता व्हाइट हाउस के साथ नजदीकियों की मुनादी कर रहे हैं.
ब्रिटिश-अमेरिकी पत्रकार मेहदी हसन से बातचीत में मंत्री ने स्वीकार किया कि ‘अमेरिका जैसे अन्य स्रोतों के प्रति विश्वास की कमी’ के कारण उनका देश ‘चीन के साथ रक्षा सहयोग बढ़ा रहा है.’
यह साक्षात्कार हाल ही में तब हुआ जब वह संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) सत्र में भाग लेने के लिए न्यूयॉर्क में थे. विडंबना यह है कि Prime Minister शहबाज शरीफ ने यूएनजीए में अपने संबोधन के बाद लगभग उसी समय वाशिंगटन में अमेरिकी President डोनाल्ड ट्रंप के साथ बैठक की.
आसिफ ने इंटरव्यू में अपने देश के ‘हाइब्रिड मॉडल’ का जिक्र किया था. उन्होंने कहा था कि Pakistan में सेना और नागरिक Government मिलकर सत्ता चलाती है. दुनिया भर में शहबाज शरीफ और जनरल असीम मुनीर की ट्रंप से मुलाकात को लेकर सवाल उठ रहे थे. इसके बचाव में ही हाइब्रिड मॉडल की दलील दी गई थी. दरअसल, Pakistan की दो नामचीन शख्सियतें 25 सितंबर को व्हाइट हाउस की बैठक में मौजूद थीं. 80 मिनट की इस बैठक में शरीफ के साथ जनरल असीम मुनीर भी थे, जिनके लिए दोनों को लगभग 30 मिनट तक इंतजार करना पड़ा, जबकि ट्रंप अन्य कार्यक्रमों में व्यस्त थे.
रक्षा मंत्री के तौर पर, आसिफ का 1950 के दशक से चीन के साथ Pakistan के “समय की कसौटी पर खरे उतरे रिश्तों” और बीजिंग के “हथियारों व अन्य चीजों” का एक बेहद विश्वसनीय प्रोवाइडर होने पर जोर देना, कुछ प्रासंगिक सवाल खड़े करता है.
उनका यह बयान कि “रणनीतिक भविष्य दोनों (अमेरिका और चीन) के साथ नहीं हो सकता” कई सवाल खड़े करता है. क्या Pakistan वाकई बिना किसी एजेंडे के अमेरिका के साथ दोस्ती बढ़ा रहा है? या व्हाइट हाउस ने इनके आकाओं को कोई अनजान काम सौंपने के लिए बुलाया है?
बहरहाल, गंभीर आर्थिक अस्थिरता और कबायली इलाकों में विद्रोह का सामना करने के साथ-साथ, Pakistan अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतिद्वंद्विता से उपजे कूटनीतिक तनाव में भी फंसा हुआ है.
देश की बदहाल स्थिति के चलते शरीफ प्रशासन, अपने कई पूर्ववर्तियों की तरह, सुरक्षा जैसे मुद्दों पर वाशिंगटन के साथ घनिष्ठ संबंध चाहता है. साथ ही, उसने चीन के साथ साझेदारी में भी नए सिरे से कदम बढ़ाए हैं. इसके साथ उसकी सीमा का एक हिस्सा भी साझा करता है.
पश्चिमी ताकतों के खिलाफ कभी मुखर रहे आसिफ ऐसा करते हुए, अपने देश को बार-बार मिले अमेरिकी समर्थन को नजरअंदाज कर रहे हैं. इसमें 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान सातवें बेड़े का भेजा जाना भी शामिल है. तब India और तत्कालीन सोवियत संघ द्वारा की गई कुछ त्वरित सैन्य-कूटनीतिक गतिविधियों के कारण Pakistan खाली हाथ रह गया था और उसे मुंह की खानी पड़ी थी.
उन्होंने इस तथ्य को भी नजरअंदाज कर दिया है कि चीन ने बुनियादी ढांचे के विकास में Pakistan की मदद कर रहे अपने नागरिकों की हत्या पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. बीजिंग ने एक प्रमुख सड़क संपर्क परियोजना के वित्तपोषण से भी पीछे हटने के संकेत दिए हैं.
2023 में दिए गए एक साक्षात्कार में भी, आसिफ ने बताया था कि पहले अफगान युद्ध (सोवियत कब्जे के खिलाफ) के बाद अमेरिका ने उनके देश को छोड़ दिया था. उन्होंने कहा, “हमें बेसहारा छोड़ दिया गया था और अमेरिका वापस चला गया था. फिर लगभग तीन साल पहले, जब तालिबान अफगानिस्तान में सत्ता में आया, तो फिर से यही स्थिति पैदा हो गई. हम अफगानिस्तान में जो कुछ हुआ उसका खामियाजा भुगत रहे हैं,”
Pakistan की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है, जहां पश्चिमी देशों ने विश्व सहायता संगठनों के जरिए उसकी मदद की है. दूसरी ओर, चीन भारी निवेश कर रहा है, जिससे ऐसी स्थिति पैदा हो रही है कि इस्लामाबाद कर्ज के जाल में फंस रहा है.
जैसा कि आसिफ ने पहले कहा था, “हमारे पास बस एक भौगोलिक स्थिति है, जो रणनीतिक है, जो, मैं कहूंगा, सभी अच्छी चीजों को आकर्षित नहीं करती; यह कभी-कभी कुछ ऐसी चीजों को आकर्षित करती है जो हमें और भी कमजोर बना देती हैं.”
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केआर/
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