New Delhi, 13 अगस्त . 14 अगस्त 1947 की तारीख भारत के इतिहास में एक गहरे जख्म की तरह है. इस दिन 200 वर्षों की गुलामी से मुक्ति की खुशी तो लोगों को मिली, लेकिन बंटवारे का ऐसा दर्द भी मिला, जिससे भारत और पाकिस्तान के रूप में दो देशों का जन्म हुआ.
देश के बंटवारे की कीमत थी लाखों लोगों का विस्थापन, हिंसा और अपनों को खोने का दुख. इस बंटवारे की वजह से घर-बार तो छूटे और साथ ही अनगिनत जिंदगियां भी तबाह हो गईं. यह विभीषिका केवल भौगोलिक सीमाओं का बंटवारा नहीं थी, बल्कि दिलों और भावनाओं का भी टूटना था.
इस दर्द को याद करने और उन बलिदानों को सम्मान देने के लिए हर साल 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ की शुरुआत की गई.
केंद्र की मोदी सरकार ने 2021 में ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ की शुरुआत की थी. इस दिन का उद्देश्य 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान हुए दुख, यातना और बलिदान को याद करना है.
दरअसल, 1947 में ब्रिटिश भारत का विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ था, जिसके परिणामस्वरूप भारत और पाकिस्तान दो स्वतंत्र राष्ट्र बने. मुस्लिम लीग ने ‘दो-राष्ट्र सिद्धांत’ का प्रचार किया, जिसके तहत हिंदू और मुस्लिम समुदायों को अलग राष्ट्र माना गया. इस विचार का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और कई अन्य संगठनों ने विरोध किया. इसके बावजूद वे देश का बंटवारा होने से नहीं रोक पाए.
20 फरवरी 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने घोषणा की थी कि 30 जून 1948 तक सत्ता भारतीयों को सौंपी जाएगी, लेकिन लॉर्ड माउंटबेटन ने इसे 14/15 अगस्त 1947 को लागू कर दिया. दोनों देशों के बंटवारे की सीमाओं को तय करने का जिम्मा सर सिरिल रैडक्लिफ को सौंपा गया था, जिन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा निर्धारित की.
इस बंटवारे में मुस्लिम लीग की भूमिका अहम रही. मुस्लिम लीग ने विभाजन की मांग को मजबूत किया और 9 जून 1947 को उनकी बैठक में यह प्रस्ताव लगभग सर्वसम्मति से पारित हुआ.
बताया जाता है कि विभाजन के दौरान लगभग 10 से 20 मिलियन लोग धार्मिक आधार पर विस्थापित हुए. वहीं, बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे हुए.
अनुमानित तौर पर 2 लाख से 20 लाख लोगों की बंटवारे के कारण जान गई. हालात यह थे कि बंटवारे के दौरान महिलाओं को अपहरण, बलात्कार और जबरन धर्म परिवर्तन का भी सामना करना पड़ा.
इतना ही नहीं, भारत के बंटवारे के दौरान जिंदा लोगों के बजाए अधिकतर ट्रेनें अपने गंतव्य तक लाशों और घायलों से भरी पहुंचती थीं.
‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ न केवल इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक को याद करने का अवसर है, बल्कि यह दिन सिखाता है कि नफरत और विभाजन की मांग करने का रास्ता केवल विनाश की ओर ले जाता है.
–
एफएम/एबीएम
You may also like
Indore: रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों की नई प्लेटफॉर्म व्यवस्था लागू, यात्रा करने से पहले हो जाएं अपडेट, नहीं तो होना पड़ेगा परेशान...
योगी की माता प्रसाद पांडेय को नसीहत, इस उम्र में दुश्मनी छोड़ भोजन कराइए, ब्रजेश पाठक ही काम आएंगे
श्री कृष्ण जन्माष्टमी शनिवार को: सजे देवालय— चारदीवारी आने वाले हैं बांके बिहारी
ऑपरेशन सिंदूर की सफलता से देश में जश्न का माहौल : नीरजा
पटवार सीधी भर्ती परीक्षा 17 अगस्त को: जयपुर में सवा लाख से अधिक अभ्यर्थी परीक्षा में होंगे शामिल