New Delhi, 21 अगस्त . ‘बर्न आउट’ और ‘स्ट्रेस मैनेजमेंट’ जैसे शब्द अब आम हो चले हैं. छोटी-छोटी बात पर तनाव लेना या उत्तेजित होना हमारे जीवन में नॉर्मल माना जाने लगा है. यहां तक कि बच्चे भी पैनिक अटैक जैसी स्थिति से गुजर रहे हैं. ऐसी स्थिति को लेकर हमारी प्राचीन चिकित्सा पद्धति, यानी आयुर्वेद, बिलकुल स्पष्ट निर्देश देता है. कहता है अपने ‘ओजस’ को कमजोर न होने दें.
आयुर्वेद में इसे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिकता के संगम के तौर पर देखा गया है. ओजस शरीर में एक मात्रात्मक तरल पदार्थ है, जो समग्र स्वास्थ्य, ऊर्जा और जीवंतता के लिए उत्तरदायी है.
चरक के अनुसार, ओजस वो है जो हृदय में निवास करता है और मुख्यतः श्वेत, पीत और लाल रंग का होता है. यदि ओजस नष्ट हो जाए, तो मनुष्य भी नष्ट हो जाएगा. मनुष्य के शरीर में पहली बार ओजस उत्पन्न होता है, उसका रंग घी जैसा, स्वाद शहद जैसा और गंध भुने हुए धान (लज) जैसा होता है.
जैसे मधुमक्खियां फलों और फूलों से शहद एकत्र करती हैं, वैसे ही मनुष्य के कर्मों, गुणों, आदतों और आहार द्वारा शरीर में ओजस एकत्र होता है. (संदर्भ: चरक संहिता सूत्रस्थान 17/76)
चरक संहिता में ये भी कहा गया है कि ओजस हृदय में स्थित होता है और वहीं से पूरे शरीर का संचालन करता है.
साधारण भाषा में कहें तो ये ‘गहरा जीवन भंडार’ है जो आपकी भीतर की “एनर्जी, रोग-प्रतिरोधक शक्ति और मानसिक स्थिरता का बैंक अकाउंट” है और जैसे हम अपनी अमूल्य निधि को यूं ही नहीं गंवाते, सोच समझकर खर्च करते हैं, ठीक वैसे ही ओजस के साथ करना चाहिए. इसे सहेज कर रखने से जीवन आसान बनता है.
अगली बार कोई परेशान करने वाला मेल आए, ट्रैफिक में फंसे होने पर बहुत गुस्सा आए, तो समझ लीजिएगा ओजस कमजोर हो रहा है और इसे लिफ्ट कराने की जरूरत है!
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केआर/
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