जब उपराष्ट्रपति चुनावों की सरगर्मी चरम पर है, गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को लेकर एक राजनीतिक विरोधाभास खड़ा कर दिया है। शाह ने आरोप लगाया कि सुदर्शन रेड्डी ने सुप्रीम कोर्ट के ‘सलवा जुडूम’ फैसले के माध्यम से नक्सलवाद को बढ़ावा देने वाला काम किया, और उन्हें वामपंथी विचारों का समर्थनकर्ता बताया।
सलवा जुडूम क्या था — संक्षेप में
सलवा जुडूम एक हथियारबंद मिलिशिया था जिसे 2005 से 2011 तक छत्तीसगढ़ में राज्य‑प्रायोजित नागरिक मोर्चे के रूप में काम करने के लिए स्थापित किया गया था। इसमें स्थानीय आदिवासी युवाओं को विशेष पुलिस अधिकारी (SPO) बनाया गया और माओवादी गतिविधियों का मुकाबला किया गया था।
लेकिन इस आन्दोलन पर मानवाधिकार उल्लंघन, बाल सैनिकों की भर्ती, जबरन विस्थापन और हिंसा जैसे आरोप लगे।
साल 2011 में, सुप्रीम कोर्ट की बेंच (न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी और एस.एस. निज्जर की) ने इसे असंवैधानिक करार देते हुए इसे खत्म करने का आदेश दिया और इसमें शामिल सभी हथियारों को वापस लेने को कहा।
अमित शाह का आरोप: “सुदर्शन रेड्डी ने नक्सलवाद को बढ़ावा दिया”
22 अगस्त को कोची में आयोजित मनोरा न्यूज़ कॉन्क्लेव में अमित शाह ने तीखी प्रतिक्रिया दी:
“अगर सुदर्शन रेड्डी ने वह फैसला नहीं दिया होता, तो देश में नक्सली उग्रवाद 2020 से पहले ही समाप्त हो सकता था। वे वामपंथी विचारधारा से प्रेरित हैं”—उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने उन्हें वामपंथी दबाव के तहत उम्मीदवार बनवाया है।
विपक्ष और न्यायिक विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
इस बयान पर पूर्व न्यायाधिकरणों ने तीखा विरोध दर्ज कराया। सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के कई पूर्व न्यायाधीशों ने अमित शाह की टिप्पणी को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का गलत विवरण बताते हुए “अफसोसजनक” करार दिया। उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसे नामांकीकरण से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर विपरीत असर (chilling effect) पड़ता है।
दूसरी ओर, छत्तीसगढ़ के डिप्टी चीफ मिनिस्टर विजय शर्मा ने कहा कि बस्तर के लोग आज भी उस फैसले को याद करते हैं क्योंकि इसके बाद वहाँ नक्सली हिंसा बढ़ी। लोगों ने आश्चर्य जताया कि कैसे कोई ऐसा व्यक्ति जो नक्सल विरोधी चेतना को कमजोर करने वाला फैसला दे चुका था, देश के दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद का उम्मीदवार बन सकता है।
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