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भाजपा के गढ़ में कांग्रेस का फेर बदल: राहुल गांधी का गुजरात मिशन

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राष्ट्रीय राजनीति की बिसात पर गुजरात की अहमियत हमेशा बड़ी रही है। वे राज्य जहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जैसे राष्ट्रीय नेता राजनीति की शुरुआत कर चुके हैं, भाजपा की राजनीतिक मजबूत दुर्ग है। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने चुनावी मौसम से लगभग दो साल पहले ही इस दुर्ग को चीरने की कवायद तेज कर दी है। लगातार गुजरात दौरे, स्थानीय नेताओं के साथ बैठकों की फेहरिस्त, संगठन‑पुनर्रचना और बूथ‑स्तर तक शिकायतों व मांगों पर ध्यान—यह सब बताता है कि कांग्रेस इस राज्य को सिर्फ एक चुनावी रण नहीं बल्कि प्रतीकात्मक मोर्चा मान रही है।

रणनीतिक कारण: गुजरात क्यों है केंद्र बिंदु

चुनावी विरासत और प्रतिकूल आधार
भाजपा ने गुजरात में 1995 से शासन किया है और वहां संगठन‑ढाँचा गहरा है। कांग्रेस के लिए यह चुनौती है कि वह अपनी उपस्थिति को सिर्फ विरोध तक सीमित न रखे, बल्कि संगठनात्मक मजबूती और स्थानीय कनेक्शन पुनः स्थापित करे। गुजरात को जीत लेना कांग्रेस के लिए प्रतीकात्मक विजय होगी, जो बीजेपी के साख पर प्रमुख प्रहार कर सकती है।

आर्ट ऑफ़ ग्राउंड एक्टिविटी
कांग्रेस ने तय किया है कि गुजरात में केवल बड़े शहरों या घोषणाओं पर निर्भर नहीं रहेगा, बल्कि जिलों‑तालुकों‑वार्ड‑बूथों तक संगठन को पुनर्जीवित करेगा। राहुल गांधी ने ब्लॉक‑और जिला‑स्तरीय नेताओं से मिलना शुरू कर दिया है और स्थानीय समस्याओं को सामने लाने का आह्वान किया है। बूथ स्तर की ताकत ही चुनावों में निर्णायक होती है।

कलात्मक बदलाव और नेतृत्व की मालिश
कांग्रेस में भी बदलाव की हवा है—जहाँ नए चेहरों को अवसर दिए जा रहे हैं, ज़िम्मेदारियों का बंटवारा हो रहा है और पार्टी संगठन की भूमिका, जवाबदेही एवं सक्रियता पर जोर हो रहा है। लगातार राहुल गांधी के गुजरात दौरे इसी बदलाव का हिस्सा हैं।

स्थानीय मुद्दों पर राजनीति की बुनावट
बेरोज़गारी, किसान परेशानियाँ, युवा निराशा, परिवहन, शिक्षा, आदिवासी‑वनवासी सवाल, महिला सुरक्षा जैसे स्थानीय मुद्दे भाजपा की साख को चुनौती दे सकते हैं। राहुल गांधी इन मुद्दों को उठाते हैं, स्थानीय जनता से मिलते हैं, मंचों पर आवाज़ देते हैं। गुजरात में ये मुद्दे भाजपा के ‘स्थायित्व’ की चुनौतियाँ बन सकते हैं।

चुनावी टाइमलाइन: 2027 की तैयारी
असेंबली चुनाव 2027 अभी दूर हैं, मगर राजनीतिक संगठन और तैयारी समय रहते शुरू होना चाहिए। राहुल गांधी कांग्रेस संगठन को समय रहते गतिमान करना चाहते हैं, ताकि दो‑तीन सालों में हुआ काम प्रभाव दिखाए। ये दौरे एक तरह की “अग्रिम तैयारी” हैं ताकि चुनावी मोर्चे पर पार्टी को कमजोर न कहा जाए।

चुनौतियाँ और संभावना

भितरी समस्या: पार्टी में घुसपैठ और विश्वास संकट
कांग्रेस की चिंताएँ हैं कि कुछ स्थानीय कर्मी भाजपा के प्रभाव में हो सकते हैं या संगठन से जुड़े नहीं दिखते। इनका पता लगाना और निकालना या पुनर्स्थापित करना पड़ेगा।

मानसिकता परिवर्तन और नेता‑मैत्री
सिर्फ दौरे या बैठकों से काम नहीं चलेगा। स्थानीय नेता, संपर्क कार्यालय, जनता से संवाद का स्थायीत्व और विश्वसनीयता की ज़रूरत है। विकल्प बनाए जाने चाहिए जो लोगों के लिए सहज हों।

प्रतिद्वंद्वी की दबाव रणनीति
भाजपा का संगठन और सियासी मशीन गुजरात में मज़बूत है। कांग्रेस को सिर्फ विरोध ही नहीं बल्कि एक सकारात्मक योजना एवं विजन प्रस्तुत करना होगा, जिससे जनता को लगे कि विकल्प संभव है।

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