प्रत्यक्ष देवता सूर्य नारायण की उपासना करने से व्यक्ति को दीर्घायु, तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति, घर-परिवार में सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है एवं असाध्य रोगों से भी मुक्ति मिलती है। छठ पर्व की परंपरा केवल आस्था या पूजा का प्रतीक नहीं है, इसके पीछे एक गहन वैज्ञानिक आधार निहित है। षष्ठी तिथि विशेष खगोलीय आधार है, इस दिन सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य दिनों की अपेक्षा अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती हैं। इस खगोलीय स्थिति के संभावित दुष्प्रभावों से जीव-जगत की रक्षा करने की क्षमता इसी परंपरा में निहित है।
जब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक पहुंचता है, तो वह सबसे पहले वायुमंडल के आयन मंडल से होकर गुजरता है। वहां उपस्थित ऑक्सीजन तत्त्व पराबैंगनी किरणों की सहायता से ओजोन का निर्माण करता है। यही ओजोन परत सूर्य की पराबैंगनी किरणों के अधिकांश भाग को अवशोषित कर पृथ्वी को उनके हानिकारक प्रभावों से बचाती है। केवल अल्प मात्रा में ही ये किरणें पृथ्वी की सतह तक पहुंच पाती हैं, जो मानव शरीर के लिए सहनीय होती हैं। यही सीमित मात्रा जीवन के लिए लाभदायक मानी जाती है, क्योंकि यह शरीर में विटामिन-डी के निर्माण में सहायक होती है और साथ ही रोगाणुओं का नाश भी करती है।
छठ पर्व के समय विशेष खगोलीय स्थिति बनती है, इस वर्ष छठ पूजा के दौरान देवगुरु बृहस्पति अपनी उच्च राशि में बैठकर सौभाग्य का सृजन कर रहे हैं। जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा लगभग एक ही रेखा पर स्थित होते हैं, इस अवस्था में सूर्य की पराबैंगनी किरणें चंद्र सतह से परावर्तित होकर और वायुमंडलीय परतों से अपवर्तित होती हुई पृथ्वी पर सामान्य से अधिक मात्रा में लौट आती हैं। विशेष रूप से सूर्योदय और सूर्यास्त के समय इन किरणों की सघनता बढ़ जाती है।
छठ व्रत की परंपरा में इन खगोलीय और जैविक प्रभावों से समन्वय स्थापित करने की अद्भुत व्यवस्था है। व्रती व्यक्ति जल में खड़े होकर सूर्यास्त और सूर्योदय के समय अर्घ्य अर्पित करता है, जिससे शरीर पर नियंत्रित मात्रा में सूर्य प्रकाश और पराबैंगनी किरणों का प्रभाव पड़ता है, यह शरीर की ऊर्जा, रोग-प्रतिरोधक क्षमता और मानसिक संतुलन को प्रबल करता है। छठ पर्व प्रकृति, विज्ञान और मानव स्वास्थ्य के गहरे सामंजस्य का उत्कृष्ट उदाहरण है।
जब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक पहुंचता है, तो वह सबसे पहले वायुमंडल के आयन मंडल से होकर गुजरता है। वहां उपस्थित ऑक्सीजन तत्त्व पराबैंगनी किरणों की सहायता से ओजोन का निर्माण करता है। यही ओजोन परत सूर्य की पराबैंगनी किरणों के अधिकांश भाग को अवशोषित कर पृथ्वी को उनके हानिकारक प्रभावों से बचाती है। केवल अल्प मात्रा में ही ये किरणें पृथ्वी की सतह तक पहुंच पाती हैं, जो मानव शरीर के लिए सहनीय होती हैं। यही सीमित मात्रा जीवन के लिए लाभदायक मानी जाती है, क्योंकि यह शरीर में विटामिन-डी के निर्माण में सहायक होती है और साथ ही रोगाणुओं का नाश भी करती है।
छठ पर्व के समय विशेष खगोलीय स्थिति बनती है, इस वर्ष छठ पूजा के दौरान देवगुरु बृहस्पति अपनी उच्च राशि में बैठकर सौभाग्य का सृजन कर रहे हैं। जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा लगभग एक ही रेखा पर स्थित होते हैं, इस अवस्था में सूर्य की पराबैंगनी किरणें चंद्र सतह से परावर्तित होकर और वायुमंडलीय परतों से अपवर्तित होती हुई पृथ्वी पर सामान्य से अधिक मात्रा में लौट आती हैं। विशेष रूप से सूर्योदय और सूर्यास्त के समय इन किरणों की सघनता बढ़ जाती है।
छठ व्रत की परंपरा में इन खगोलीय और जैविक प्रभावों से समन्वय स्थापित करने की अद्भुत व्यवस्था है। व्रती व्यक्ति जल में खड़े होकर सूर्यास्त और सूर्योदय के समय अर्घ्य अर्पित करता है, जिससे शरीर पर नियंत्रित मात्रा में सूर्य प्रकाश और पराबैंगनी किरणों का प्रभाव पड़ता है, यह शरीर की ऊर्जा, रोग-प्रतिरोधक क्षमता और मानसिक संतुलन को प्रबल करता है। छठ पर्व प्रकृति, विज्ञान और मानव स्वास्थ्य के गहरे सामंजस्य का उत्कृष्ट उदाहरण है।
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