नई दिल्ली: भारतीय घरों में सोने का बहुत बड़ा भंडार है। यह दुनिया के सबसे बड़े बिना इस्तेमाल किए गए वित्तीय संसाधनों में से एक है। इस सोने के भंडार में महिलाओं का बहुत बड़ा योगदान है। सीए नितिन कौशिक ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर इसे लेकर एक पोस्ट किया है। उन्होंने बताया कि भारतीय महिलाओं के पास दुनिया का लगभग 11% सोना है। यह लगभग 25,000 टन है।
कौशिक ने बताया कि यह सोना अमेरिका, जर्मनी, इटली, फ्रांस और रूस के कुल सोने के भंडार से भी ज्यादा है। उन्होंने भारत की निजी सोने की संपत्ति के विशाल पैमाने पर रोशनी डाली है। अमेरिका के पास 8,133 टन, जर्मनी के पास 3,355 टन और भारत के पास आधिकारिक तौर पर सिर्फ 800 टन सोना है। कौशिक ने सवाल किया कि भारतीय घर सिर्फ धन पहनते नहीं हैं, वे दुनिया के सबसे बड़े बिना इस्तेमाल किए गए वित्तीय संसाधनों को जमा करते हैं। क्या यह सोना कभी लॉकरों से निकलकर अर्थव्यवस्था में आएगा?
2.4 ट्रिलियन डॉलर हो सकती है कीमत
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) और विशेषज्ञों का अनुमान है कि भारतीय घरों और मंदिरों के पास लगभग 25,000 टन सोना है। इसकी कीमत अभी के हिसाब से 2.3-2.4 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा है। यह पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था से लगभग छह गुना ज्यादा है। यह कई विकसित देशों की जीडीपी से भी बड़ा है। सोने की कीमतें बढ़ने के बाद भी भारतीय परिवारों ने इसे बेचने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलू बाजार में सोने की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर हैं। फिर भी लोग सोना नहीं बेच रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि सोने की कीमत और बढ़ेगी।
झटकों से बचाता है सोना
विश्लेषकों का कहना है कि सोने का आकर्षण सिर्फ संस्कृति और परंपरा से जुड़ा नहीं है। आज दुनिया में महंगाई, व्यापार युद्ध और भू-राजनीतिक झगड़े चल रहे हैं। ऐसे में सोना अनिश्चितता से बचने का अच्छा तरीका है। सोना एक सुरक्षित ठिकाना है। जब बाजार में उथल-पुथल होती है तो निवेशक सोने की तरफ भागते हैं। इससे पता चलता है कि दुनिया में कितनी चिंता है। यह महंगाई से भी बचाता है। कागजी मुद्रा के उलट सोना दशकों तक अपनी कीमत बनाए रखता है। यह परिवारों को पैसे के झटकों से बचाता है। भारत में सोना लोन लेने के लिए भी इस्तेमाल होता है। परिवार अपनी ज्वेलरी को गिरवी रखकर पैसे निकाल सकते हैं। मुंबई के एक बुलियन व्यापारी ने कहा कि भारत में सोना सिर्फ सजावटी धन नहीं है। यह एक वित्तीय सुरक्षा जाल है।
नहीं कम हो रहा है आकर्षण
सरकारें लोगों के घरों में रखे सोने को इस्तेमाल करने के लिए कई योजनाएं लेकर आई हैं। जैसे सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड और गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम। लेकिन, लोगों ने इनमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई। विशेषज्ञों का कहना है कि लोगों का सोने से भावनात्मक लगाव है। उन्हें संस्थानों पर भरोसा नहीं है और कीमतों को लेकर भी चिंताएं हैं। इसलिए लोग इन स्कीमों में हिस्सा नहीं ले रहे हैं।
नीति निर्माताओं का मानना है कि अगर इस सोने के भंडार का थोड़ा सा भी हिस्सा औपचारिक वित्तीय साधनों में आ जाए तो भारत का सोने का आयात कम हो सकता है। इससे चालू खाता घाटे पर दबाव कम होगा। साथ ही, बेकार पड़ा धन उत्पादक निवेश में लग सकता है। दुनिया में अनिश्चितता बढ़ रही है और सोने की कीमतें ऐतिहासिक ऊंचाई पर हैं। फिर भी भारत का सोने के प्रति आकर्षण कम नहीं हो रहा है।
कौशिक ने बताया कि यह सोना अमेरिका, जर्मनी, इटली, फ्रांस और रूस के कुल सोने के भंडार से भी ज्यादा है। उन्होंने भारत की निजी सोने की संपत्ति के विशाल पैमाने पर रोशनी डाली है। अमेरिका के पास 8,133 टन, जर्मनी के पास 3,355 टन और भारत के पास आधिकारिक तौर पर सिर्फ 800 टन सोना है। कौशिक ने सवाल किया कि भारतीय घर सिर्फ धन पहनते नहीं हैं, वे दुनिया के सबसे बड़े बिना इस्तेमाल किए गए वित्तीय संसाधनों को जमा करते हैं। क्या यह सोना कभी लॉकरों से निकलकर अर्थव्यवस्था में आएगा?
2.4 ट्रिलियन डॉलर हो सकती है कीमत
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) और विशेषज्ञों का अनुमान है कि भारतीय घरों और मंदिरों के पास लगभग 25,000 टन सोना है। इसकी कीमत अभी के हिसाब से 2.3-2.4 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा है। यह पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था से लगभग छह गुना ज्यादा है। यह कई विकसित देशों की जीडीपी से भी बड़ा है। सोने की कीमतें बढ़ने के बाद भी भारतीय परिवारों ने इसे बेचने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलू बाजार में सोने की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर हैं। फिर भी लोग सोना नहीं बेच रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि सोने की कीमत और बढ़ेगी।
झटकों से बचाता है सोना
विश्लेषकों का कहना है कि सोने का आकर्षण सिर्फ संस्कृति और परंपरा से जुड़ा नहीं है। आज दुनिया में महंगाई, व्यापार युद्ध और भू-राजनीतिक झगड़े चल रहे हैं। ऐसे में सोना अनिश्चितता से बचने का अच्छा तरीका है। सोना एक सुरक्षित ठिकाना है। जब बाजार में उथल-पुथल होती है तो निवेशक सोने की तरफ भागते हैं। इससे पता चलता है कि दुनिया में कितनी चिंता है। यह महंगाई से भी बचाता है। कागजी मुद्रा के उलट सोना दशकों तक अपनी कीमत बनाए रखता है। यह परिवारों को पैसे के झटकों से बचाता है। भारत में सोना लोन लेने के लिए भी इस्तेमाल होता है। परिवार अपनी ज्वेलरी को गिरवी रखकर पैसे निकाल सकते हैं। मुंबई के एक बुलियन व्यापारी ने कहा कि भारत में सोना सिर्फ सजावटी धन नहीं है। यह एक वित्तीय सुरक्षा जाल है।
नहीं कम हो रहा है आकर्षण
सरकारें लोगों के घरों में रखे सोने को इस्तेमाल करने के लिए कई योजनाएं लेकर आई हैं। जैसे सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड और गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम। लेकिन, लोगों ने इनमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई। विशेषज्ञों का कहना है कि लोगों का सोने से भावनात्मक लगाव है। उन्हें संस्थानों पर भरोसा नहीं है और कीमतों को लेकर भी चिंताएं हैं। इसलिए लोग इन स्कीमों में हिस्सा नहीं ले रहे हैं।
नीति निर्माताओं का मानना है कि अगर इस सोने के भंडार का थोड़ा सा भी हिस्सा औपचारिक वित्तीय साधनों में आ जाए तो भारत का सोने का आयात कम हो सकता है। इससे चालू खाता घाटे पर दबाव कम होगा। साथ ही, बेकार पड़ा धन उत्पादक निवेश में लग सकता है। दुनिया में अनिश्चितता बढ़ रही है और सोने की कीमतें ऐतिहासिक ऊंचाई पर हैं। फिर भी भारत का सोने के प्रति आकर्षण कम नहीं हो रहा है।
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