नारी के संकल्प में अद्भुत शक्ति होती है, भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित हरतालिका तीज जैसे व्रतों में स्त्रियां अपनी दैवीय शक्ति जागृत कर दांपत्य सुख, पति की दीर्घायु और जीवन में मंगलमयता का आशीर्वाद पाती हैं। यह तीन स्तरीय साधना शरीर, मन और आत्मा को एकरूपता प्रदान करती है।
तीज शब्द तृतीया तिथि से निकला है, यह शुभ तिथि स्त्रियों के लिए तीन-स्तरीय साधना है, जिसमें निर्जल व्रत द्वारा शरीर का संयम, कामना का त्याग कर मन का अनुशासन और प्रेम-भक्ति द्वारा आत्मकल्याण किया जाता है। हरतालिका तीज के दिन धर्मशास्त्रों में वर्णित पूरे विधि-विधान से व्रत-पूजन कर जब एक स्त्री अपने भीतर की सुप्त शक्ति को जागृत करती है तो वह सिंदूर की रेखा से आगे बढ़कर सौभाग्य की देवी स्वरूपा हो जाती है।
नारी के संकल्प से बंध जाता है ब्रह्मांड
स्त्रियां इस दिन व्रत आदि के माध्यम से अपने भीतर की दैवीय शक्ति को जाग्रत करती हैं। जब नारी अन्तर्मन में शुभ संकल्प करती है, तो ब्रह्मांड भी उसकी शक्ति के आगे नतमस्तक हो जाता है। एक स्त्री के संकल्प में अपार शक्ति निहित है, वह यमराज से भी अपने पति के प्राणों की रक्षा करने में सक्षम है, बस इस कलिकाल में उस शक्ति को जागृत करने की आवश्यकता है।
अगणित जन्मों के पापों से मुक्ति
हरतालिका तीज के संदर्भ में कथानक है कि एक बार माता पार्वती ने शिवजी से पूछा, ‘हे नाथ! कौन-सा व्रत ऐसा है जो स्त्री के लिए शीघ्र फलदायी हो और जिससे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हो?’ तब भगवान शिव ने कहा, ‘हे पार्वती! जिस व्रत को तुमने पहले जन्म में मेरे लिए किया था, वह हरितालिका तीज व्रत ही था, वही सबसे श्रेष्ठ है। इसे तुम पुनः करो और अन्य स्त्रियों को भी उपदेश दो, क्योंकि यह व्रत स्वयं आदिशक्ति द्वारा प्रतिपादित और मेरे द्वारा अनुमोदित है।’ हरतालिका व्रत से स्त्री को अगणित जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है।
चेतना का विस्तार
जहां अन्य व्रत पुण्य देते हैं, यह व्रत पुण्य के साथ चेतना का विस्तार करता है। व्रत के माध्यम से व्यर्थ विचार, क्रोध, ईर्ष्या और अशुद्धियों का त्याग स्वतः हो जाता है। हरतालिका तीज का व्रत कठोर होता है जिसमें जल तक ग्रहण नहीं किया जाता, यह उपवास शरीर की परीक्षा के साथ स्त्रियों के मन और आत्मा की शक्ति को जागृत करने का सशक्त माध्यम है।
तीज शब्द तृतीया तिथि से निकला है, यह शुभ तिथि स्त्रियों के लिए तीन-स्तरीय साधना है, जिसमें निर्जल व्रत द्वारा शरीर का संयम, कामना का त्याग कर मन का अनुशासन और प्रेम-भक्ति द्वारा आत्मकल्याण किया जाता है। हरतालिका तीज के दिन धर्मशास्त्रों में वर्णित पूरे विधि-विधान से व्रत-पूजन कर जब एक स्त्री अपने भीतर की सुप्त शक्ति को जागृत करती है तो वह सिंदूर की रेखा से आगे बढ़कर सौभाग्य की देवी स्वरूपा हो जाती है।
नारी के संकल्प से बंध जाता है ब्रह्मांड
स्त्रियां इस दिन व्रत आदि के माध्यम से अपने भीतर की दैवीय शक्ति को जाग्रत करती हैं। जब नारी अन्तर्मन में शुभ संकल्प करती है, तो ब्रह्मांड भी उसकी शक्ति के आगे नतमस्तक हो जाता है। एक स्त्री के संकल्प में अपार शक्ति निहित है, वह यमराज से भी अपने पति के प्राणों की रक्षा करने में सक्षम है, बस इस कलिकाल में उस शक्ति को जागृत करने की आवश्यकता है।
अगणित जन्मों के पापों से मुक्ति
हरतालिका तीज के संदर्भ में कथानक है कि एक बार माता पार्वती ने शिवजी से पूछा, ‘हे नाथ! कौन-सा व्रत ऐसा है जो स्त्री के लिए शीघ्र फलदायी हो और जिससे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हो?’ तब भगवान शिव ने कहा, ‘हे पार्वती! जिस व्रत को तुमने पहले जन्म में मेरे लिए किया था, वह हरितालिका तीज व्रत ही था, वही सबसे श्रेष्ठ है। इसे तुम पुनः करो और अन्य स्त्रियों को भी उपदेश दो, क्योंकि यह व्रत स्वयं आदिशक्ति द्वारा प्रतिपादित और मेरे द्वारा अनुमोदित है।’ हरतालिका व्रत से स्त्री को अगणित जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है।
चेतना का विस्तार
जहां अन्य व्रत पुण्य देते हैं, यह व्रत पुण्य के साथ चेतना का विस्तार करता है। व्रत के माध्यम से व्यर्थ विचार, क्रोध, ईर्ष्या और अशुद्धियों का त्याग स्वतः हो जाता है। हरतालिका तीज का व्रत कठोर होता है जिसमें जल तक ग्रहण नहीं किया जाता, यह उपवास शरीर की परीक्षा के साथ स्त्रियों के मन और आत्मा की शक्ति को जागृत करने का सशक्त माध्यम है।
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