नई दिल्ली: अमेरिका ने रूस की तेल कंपनियों रोसनेफ्ट (Rosneft) और लुकोइल (Lukoil) पर जो प्रतिबंध लगाए हैं, उनसे भारत अब रूसी कच्चा तेल खरीदना कम कर सकता है। अमेरिका का कहना है कि इस तेल से मिले पैसे से रूस, यूक्रेन में युद्ध लड़ रहा है। लेकिन अमेरिका अभी भारत पर और भी दबाव बनाने की सोच रहा है। ब्लूमबर्ग के अनुसार चीन के साथ व्यापारिक मसलों को सुलझाने के बाद अमेरिका अब भारत के ऊर्जा बाजार में भी अपनी पैठ बनाना चाहता है।
भारत अमेरिका से चाहता है कि वह अपने यहां आयात होने वाले सामानों पर लगने वाले 50% टैक्स को कम कर दे। इसके बदले में अमेरिका भारत के ऊर्जा बाजार में अपनी जगह बनाना चाहता है। कुछ मांगें ऐसी हैं जिन्हें भारत आसानी से मान सकता है। जैसे भारत की सरकारी तेल कंपनियां अब मिडिल ईस्ट के देशों से एलपीजी (लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस) खरीदने की बजाय अमेरिका से ज्यादा एलपीजी खरीदना चाहती हैं। भारत इस व्यापारिक समझौते को पक्का करने के लिए अमेरिका से एलपीजी पर लगने वाले टैक्स को पूरी तरह खत्म करने को भी तैयार है।
लेकिन मामला यहां हो जाएगा मुश्किललेकिन जब अमेरिकी बातचीत करने वाले भारत के बायोएनर्जी बाजार को खोलने की कोशिश करेंगे, तो मामला थोड़ा मुश्किल हो जाएगा। भारत हर साल पेट्रोल में 10 अरब लीटर इथेनॉल मिलाता है। यह इथेनॉल अमेरिका के मिडवेस्ट में उगाई जाने वाली मक्के की फसल का एक बड़ा हिस्सा इस्तेमाल कर सकता है। अमेरिका में ज्यादातर बायोइथेनॉल मक्के से ही बनता है।
जैसे-जैसे भारत में गाड़ियों की संख्या बढ़ेगी साल 2050 तक इथेनॉल की यह मांग दोगुनी होने की उम्मीद है। ऐसे में अमेरिका यह नहीं चाहता कि इतने बड़े बाजार में उसकी पहुंच न हो। अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि ने अपनी साल 2025 की रिपोर्ट में कहा है कि इथेनॉल को पेट्रोल में मिलाने के बड़े लक्ष्यों के बावजूद भारत ईंधन के तौर पर इथेनॉल के आयात पर रोक लगाता है।
मजबूत स्थिति में पहुंचा अमेरिकाट्रंप के ट्रेड वॉर ने अमेरिका को बातचीत में एक मजबूत स्थिति में ला दिया है। अब जब चीन और अमेरिका दुर्लभ खनिजों के निर्यात और बंदरगाह शुल्क जैसे मसलों पर अपने मतभेद सुलझाते दिख रहे हैं, तो भारत और ब्राजील ही दो बड़े उभरते हुए देश हैं जिन पर सबसे ज्यादा टैरिफ का बोझ है। भारत से कपड़े, घर की सजावट का सामान, झींगा, रत्न और गहने जैसे श्रम-आधारित निर्यात अमेरिका जैसे अपने सबसे बड़े बाजार में लगभग बंद हो गए हैं।
क्या चाहता है भारत?भारत की इच्छा है कि अमेरिका भी जवाबी तौर पर 20% या उससे कम का टैरिफ लगाए और यह समझौता जल्द से जल्द हो जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो भारतीय निर्यातक दक्षिण पूर्व एशिया के अपने प्रतिद्वंद्वियों से और पिछड़ जाएंगे।
मोदी के सामने कई चुनौतियांप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बायोफ्यूल (जैविक ईंधन) के मामले में कोई भी रियायत देने से हिचकिचाएंगे। क्योंकि उन्हें इस मामले में दो तरह से विरोध का सामना करना पड़ सकता है:
1. गाड़ी मालिकों का विरोधएक तो गाड़ी चलाने वाले लोग सरकार के इथेनॉल मिलाने के सख्त नियमों से खुश नहीं हैं। पुरानी गाड़ियों के मालिक, जिन्हें 80:20 (80% पेट्रोल और 20% इथेनॉल) के मिश्रण के लिए डिजाइन नहीं किया गया था, वे इंजन की कम क्षमता और बढ़ते रखरखाव के खर्चों की शिकायत कर रहे हैं। हालांकि सरकार ने जनता को आश्वासन दिया है कि प्रदर्शन पर इसका असर बहुत कम और ठीक करने लायक है।
2. किसानों का विरोधअसली विरोध ग्रामीण इलाकों से आएगा। भारत के बायोफ्यूल कार्यक्रम का एक मकसद किसानों के लिए आय का एक अतिरिक्त स्रोत पैदा करना भी है। अनुमानों के मुताबिक गन्ने के रस, शीरे, मक्का, धान की पराली, कपास के डंठल और बांस जैसी चीज़ों को इथेनॉल बनाने वालों को बेचकर किसानों को करीब 1.18 लाख करोड़ रुपये का फायदा हुआ है। अब जब भारतीय किसानों ने ऊर्जा उत्पादक के तौर पर थोड़ी सफलता का स्वाद चखा है, तो वे विदेशी प्रतिस्पर्धा के आगे अपनी कमाई नहीं छोड़ना चाहेंगे। वे ऐसे किसी भी व्यापार समझौते का विरोध कर सकते हैं।
क्या मोदी उठाएंगे जोखिम?11 साल से ज्यादा समय से मोदी भारत की राजनीति पर हावी रहे हैं। उनकी आर्थिक नीतियों और कार्यक्रमों का ज्यादा विरोध नहीं हुआ है- सिवाय किसानों के। किसानों ने ही उन्हें एक नहीं, बल्कि दो बार कानून वापस लेने पर मजबूर किया है। साल 2027 तक उत्तर भारत के प्रमुख अनाज उगाने वाले राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में वे ट्रंप के साथ ऐसा व्यापार समझौता करके किसानों को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाएंगे।
भारत अमेरिका से चाहता है कि वह अपने यहां आयात होने वाले सामानों पर लगने वाले 50% टैक्स को कम कर दे। इसके बदले में अमेरिका भारत के ऊर्जा बाजार में अपनी जगह बनाना चाहता है। कुछ मांगें ऐसी हैं जिन्हें भारत आसानी से मान सकता है। जैसे भारत की सरकारी तेल कंपनियां अब मिडिल ईस्ट के देशों से एलपीजी (लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस) खरीदने की बजाय अमेरिका से ज्यादा एलपीजी खरीदना चाहती हैं। भारत इस व्यापारिक समझौते को पक्का करने के लिए अमेरिका से एलपीजी पर लगने वाले टैक्स को पूरी तरह खत्म करने को भी तैयार है।
लेकिन मामला यहां हो जाएगा मुश्किललेकिन जब अमेरिकी बातचीत करने वाले भारत के बायोएनर्जी बाजार को खोलने की कोशिश करेंगे, तो मामला थोड़ा मुश्किल हो जाएगा। भारत हर साल पेट्रोल में 10 अरब लीटर इथेनॉल मिलाता है। यह इथेनॉल अमेरिका के मिडवेस्ट में उगाई जाने वाली मक्के की फसल का एक बड़ा हिस्सा इस्तेमाल कर सकता है। अमेरिका में ज्यादातर बायोइथेनॉल मक्के से ही बनता है।
जैसे-जैसे भारत में गाड़ियों की संख्या बढ़ेगी साल 2050 तक इथेनॉल की यह मांग दोगुनी होने की उम्मीद है। ऐसे में अमेरिका यह नहीं चाहता कि इतने बड़े बाजार में उसकी पहुंच न हो। अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि ने अपनी साल 2025 की रिपोर्ट में कहा है कि इथेनॉल को पेट्रोल में मिलाने के बड़े लक्ष्यों के बावजूद भारत ईंधन के तौर पर इथेनॉल के आयात पर रोक लगाता है।
मजबूत स्थिति में पहुंचा अमेरिकाट्रंप के ट्रेड वॉर ने अमेरिका को बातचीत में एक मजबूत स्थिति में ला दिया है। अब जब चीन और अमेरिका दुर्लभ खनिजों के निर्यात और बंदरगाह शुल्क जैसे मसलों पर अपने मतभेद सुलझाते दिख रहे हैं, तो भारत और ब्राजील ही दो बड़े उभरते हुए देश हैं जिन पर सबसे ज्यादा टैरिफ का बोझ है। भारत से कपड़े, घर की सजावट का सामान, झींगा, रत्न और गहने जैसे श्रम-आधारित निर्यात अमेरिका जैसे अपने सबसे बड़े बाजार में लगभग बंद हो गए हैं।
क्या चाहता है भारत?भारत की इच्छा है कि अमेरिका भी जवाबी तौर पर 20% या उससे कम का टैरिफ लगाए और यह समझौता जल्द से जल्द हो जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो भारतीय निर्यातक दक्षिण पूर्व एशिया के अपने प्रतिद्वंद्वियों से और पिछड़ जाएंगे।
मोदी के सामने कई चुनौतियांप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बायोफ्यूल (जैविक ईंधन) के मामले में कोई भी रियायत देने से हिचकिचाएंगे। क्योंकि उन्हें इस मामले में दो तरह से विरोध का सामना करना पड़ सकता है:
1. गाड़ी मालिकों का विरोधएक तो गाड़ी चलाने वाले लोग सरकार के इथेनॉल मिलाने के सख्त नियमों से खुश नहीं हैं। पुरानी गाड़ियों के मालिक, जिन्हें 80:20 (80% पेट्रोल और 20% इथेनॉल) के मिश्रण के लिए डिजाइन नहीं किया गया था, वे इंजन की कम क्षमता और बढ़ते रखरखाव के खर्चों की शिकायत कर रहे हैं। हालांकि सरकार ने जनता को आश्वासन दिया है कि प्रदर्शन पर इसका असर बहुत कम और ठीक करने लायक है।
2. किसानों का विरोधअसली विरोध ग्रामीण इलाकों से आएगा। भारत के बायोफ्यूल कार्यक्रम का एक मकसद किसानों के लिए आय का एक अतिरिक्त स्रोत पैदा करना भी है। अनुमानों के मुताबिक गन्ने के रस, शीरे, मक्का, धान की पराली, कपास के डंठल और बांस जैसी चीज़ों को इथेनॉल बनाने वालों को बेचकर किसानों को करीब 1.18 लाख करोड़ रुपये का फायदा हुआ है। अब जब भारतीय किसानों ने ऊर्जा उत्पादक के तौर पर थोड़ी सफलता का स्वाद चखा है, तो वे विदेशी प्रतिस्पर्धा के आगे अपनी कमाई नहीं छोड़ना चाहेंगे। वे ऐसे किसी भी व्यापार समझौते का विरोध कर सकते हैं।
क्या मोदी उठाएंगे जोखिम?11 साल से ज्यादा समय से मोदी भारत की राजनीति पर हावी रहे हैं। उनकी आर्थिक नीतियों और कार्यक्रमों का ज्यादा विरोध नहीं हुआ है- सिवाय किसानों के। किसानों ने ही उन्हें एक नहीं, बल्कि दो बार कानून वापस लेने पर मजबूर किया है। साल 2027 तक उत्तर भारत के प्रमुख अनाज उगाने वाले राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में वे ट्रंप के साथ ऐसा व्यापार समझौता करके किसानों को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाएंगे।
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