लेखक: सुधांशु रंजनब्रिटिश राजनेता तथा लेखक आर्थर पान्सनबी (Arthur Ponsonby) ने अपनी पुस्तक ‘फॉल्सहुड इन वॉर-टाइम’ (1928) में लिखा है, ‘जब युद्ध की घोषणा होती है तो सत्य पहला शिकार होता है।’ पान्सनबी ने प्रथम विश्व युद्ध के दरम्यान फैलाए गए झूठ के बारे में लिखा है। पाक सेना पर लतीफासच है कि युद्ध केवल हवा, समुद्र या जमीन पर ही नहीं लड़े जाते, मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी लड़े जाते हैं। फिर भी युद्ध में केवल झूठ ही झूठ बोले जाएं, ऐसा भी नहीं होता। परंतु पाकिस्तान यही करता रहा है अपने जन्म काल से। अभी उसके अनेक आतंकवादी ढांचे, एयरबेस, आदि ध्वस्त हो गए। लेकिन पाकिस्तान के नागरिक जीत का जश्न मना रहे हैं क्योंकि पाकिस्तानी सेना ने ऐसा ही प्रचार किया है। पाकिस्तानी सेना के बारे में पाकिस्तान में ही एक लतीफा बड़ा लोकप्रिय है कि पाकिस्तानी सेना कोई चुनाव हारती नहीं और कोई जंग जीतती नहीं। दावे के बाद खंडनपाकिस्तानी संसद में एक सदस्य ने भारतीय लड़ाकू विमान गिराए जाने का प्रमाण पूछा तो रक्षा मंत्री ने जवाब दिया कि सोशल मीडिया से उन्हें पता चला। दावा किया गया कि भारतीय रफाल को मार गिराया गया है और पायलट गिरफ्तार कर लिया गया है। बाद में पाकिस्तानी सेना ने स्वयं खंडन किया कि भारतीय पायलट उनकी गिरफ्त में नहीं है। नफरत पर टिकी बुनियाद वैसे भी यदि पाकिस्तान युद्ध जीत रहा होता तो युद्धविराम के लिए वह अमेरिका के सामने गुहार नहीं लगाता। उसके झूठ एक-एक कर गुब्बारे की तरह फूट रहे हैं। पाकिस्तान की बुनियाद ही नफ़रत और झूठ पर है। मोहम्मद अली जिन्ना पहले हिंदुओं के खिलाफ मुसलमानों के दिलों में नफ़रत भरने में सफल रहे। फिर पाकिस्तान बनने के बाद झूठ का सिलसिला शुरू हुआ जो मुसलसल चल रहा है। कबाइलियों की आड़ मेंजब देश का विभाजन हुआ तो दो मुल्क बने और कश्मीर स्वतंत्र हो गया। उसने पाकिस्तान के साथ ‘स्टैंड स्टिल समझौता’ किया। 16 अक्टूबर 1947 को समझौते को तोड़ते हुए पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला कर दिया। उसकी ओर से कहा गया कि यह हमला अफरीदी कबाइलियों द्वारा किया गया है। किंतु बाद में खुलासा हुआ कि उनमें पाकिस्तानी सैनिक बड़ी संख्या में थे। नेतृत्व मेजर-जनरल अकबर खान जनरल तारिक के छद्म नाम से कर रहे थे। इसका पूरा ब्यौरा बाद में स्वयं अकबर खान ने अपनी पुस्तक ‘रेडर्ज इन कश्मीर: स्टोरी ऑव द कश्मीर वॉर 1947-48’ में दिया है। पूरी कार्ययोजना बनीआजादी के तुरंत बाद खान कश्मीर के मुर्री गए जहां सरदार इब्राहिम नाम के आदमी से उनकी मुलाकात हुई। यही व्यक्ति आगे चलकर आजाद कश्मीर (पाक अधिकृत कश्मीर) का सदर बना। वह कश्मीर को भारत से अलग करने के लिए बड़े जतन से लगा था। उसने मांग की कि उसे हथियार मुहैया कराए जाएं। कुछ दिनों बाद मुस्लिम लीग का नेता मियां इफ्तिखारुद्दीन लाहौर से मुर्री पहुंचा। उसने जनरल अकबर खान से विलय के लिए एक कार्ययोजना बनाने को कहा जिसे लेकर उसे लाहौर जाना है। पाकिस्तानी सेना ने कबाइलियों को शस्त्र और गोला-बारूद उपलब्ध कराए। जिन्ना ने दिया हुक्मइस बीच 26 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय के समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। पाकिस्तान को जब 27 अक्टूबर को इसका पता चला तो वह स्तब्ध रह गया। उसी दिन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने वरीय सैन्य अधिकारियों और मुख्यमंत्रियों की एक बैठक बुलाई, जिसमें अकबर खान भी मौजूद थे। उन्होंने सुझाव दिया कि जम्मू को पूरी तरह नेस्तनाबूद कर देना चाहिए ताकि भारत को जोड़ने वाली एकमात्र सड़क बंद हो जाए और सेना की आवाजाही और रसद, असलहे आदि की सप्लाई बंद हो जाए। उसी रात क़ायदे आज़म ने खुद ही जम्मू पर हमला करने का हुक्म दिया। 29 अक्टूबर को खान पत्रकार अली अख्तर मिर्जा के साथ श्रीनगर गए, सेना के अधिकारियों से मिले और कई पुलों को उड़वा दिया। पुस्तक में और भी जानकारियां दी गई हैं। जारी रहा भ्रामक प्रचार1965 के युद्ध में भी पाकिस्तान झूठे प्रचार करता रहा जबकि सचाई यह है कि भारतीय सेना इच्छोगिल कनाल पार कर गई थी। यानी वह लाहौर के दरवाजे पर खड़ी थी। 1971 में भी वह भ्रामक प्रचार करता रहा कि उसने भारत के इतने हवाई अड्डे ध्वस्त कर दिए। लेकिन इसकी परिणति 93000 पाक सैनिकों के आत्मसमर्पण में हुई। झूठ की खेतीयुद्ध के समय झूठ फैलाए जाते हैं और सच दबाए जाते हैं। जापान पर परमाणु बम गिराने के लिए अमेरिका ने इस तथ्य को छुपाया कि वह आत्मसमर्पण करने को तैयार था। अमेरिकी सैन्य अधिकारी एडमिरल विलियम लीही ने बाद में अपने संस्मरण में इसका खुलासा किया। ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे। लेकिन पाकिस्तान इस मायने में अपवाद है कि वहां 1947 से लगातार केवल झूठ की खेती हो रही है। (लेखक वरिष्ठ टीवी पत्रकार हैं)
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