नई दिल्लीः दिल्ली हाई कोर्ट ने 51 वर्षीय एक सीनियर एडवोकेट को निचली अदालत से मिली अग्रिम जमानत को निरस्त कर दिया है। उन पर उनकी ही 27 वर्षीय जूनियर लॉ असोसिएट ने रेप और धमकाने का मामला दर्ज कराया था। कोर्ट ने आरोपी वकील को एक हफ्ते के भीतर ट्रायल कोर्ट के सामने आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया है।
हाई कोर्ट ने दिए जांच के आदेश
साथ ही, हाई कोर्ट ने उन दो जजों के खिलाफ प्रशासनिक जांच शुरू करने का भी आदेश दिया है जिन पर शिकायतकर्ता पर समझौता करने का दबाव डालने का आरोप है। जस्टिस अमित महाजन ने 7 नवंबर को सुनाए गए फैसले में कहा कि मामले में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है और जांच अभी जारी है।
वकील कर सकता है ये कोशिश
कोर्ट ने कहा कि मुकदमा शुरू होने से पहले ही अभियोजन पक्ष को प्रभावित करने के कई प्रयास सामने आए हैं। आरोपी वकील की प्रभावशाली स्थिति और उसके आचरण को देखते हुए इस बात की प्रबल संभावना है कि यदि उसे खुले में रहने दिया गया तो वह गवाहों को प्रभावित करने या साक्ष्यों से छेड़छाड़ करने की दिल्ली हाई कोर्ट कोशिश कर सकता है। इसलिए, अग्रिम जमानत आदेश को रद्द करना जरूरी है।
तीन महीने से जमानत पर है आरोपी
हाई कोर्ट ने कहा कि आरोपी पिछले तीन महीने से जमानत पर है, इसलिए उसे एक सप्ताह का समय दिया जाता है ताकि वह संबंधित ट्रायल कोर्ट के समक्ष सरेंडर कर सके। साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि समझौते का दबाव बनाने में शामिल बताए जा रहे दो जजों के आचरण की जांच जरूरी है।
उन लोगों के खिलाफ हो उचित कार्रवाई
आदेश में कहा गया कि शिकायतकर्ता के संपर्क में रहे न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ प्रशासनिक जांच कर कानून के अनुसार उचित कार्रवाई की जाए। यह मामला साकेत कोर्ट के एक सत्र जज द्वारा 16 जुलाई को दिए गए आदेश से जुड़ा है। शिकायतकर्ता ने उस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
क्या है मामला
यह मामला 25 जून को नेब सराय थाने में दर्ज एफआईआर पर आधारित है। आरोप है कि सीनियर एडवोकेट ने कई बार उसका यौन उत्पीड़न किया और उसे मामला वापस लेने के लिए दो जजों की मदद से दबाव डलवाया
हाई कोर्ट ने दिए जांच के आदेश
साथ ही, हाई कोर्ट ने उन दो जजों के खिलाफ प्रशासनिक जांच शुरू करने का भी आदेश दिया है जिन पर शिकायतकर्ता पर समझौता करने का दबाव डालने का आरोप है। जस्टिस अमित महाजन ने 7 नवंबर को सुनाए गए फैसले में कहा कि मामले में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है और जांच अभी जारी है।
वकील कर सकता है ये कोशिश
कोर्ट ने कहा कि मुकदमा शुरू होने से पहले ही अभियोजन पक्ष को प्रभावित करने के कई प्रयास सामने आए हैं। आरोपी वकील की प्रभावशाली स्थिति और उसके आचरण को देखते हुए इस बात की प्रबल संभावना है कि यदि उसे खुले में रहने दिया गया तो वह गवाहों को प्रभावित करने या साक्ष्यों से छेड़छाड़ करने की दिल्ली हाई कोर्ट कोशिश कर सकता है। इसलिए, अग्रिम जमानत आदेश को रद्द करना जरूरी है।
तीन महीने से जमानत पर है आरोपी
हाई कोर्ट ने कहा कि आरोपी पिछले तीन महीने से जमानत पर है, इसलिए उसे एक सप्ताह का समय दिया जाता है ताकि वह संबंधित ट्रायल कोर्ट के समक्ष सरेंडर कर सके। साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि समझौते का दबाव बनाने में शामिल बताए जा रहे दो जजों के आचरण की जांच जरूरी है।
उन लोगों के खिलाफ हो उचित कार्रवाई
आदेश में कहा गया कि शिकायतकर्ता के संपर्क में रहे न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ प्रशासनिक जांच कर कानून के अनुसार उचित कार्रवाई की जाए। यह मामला साकेत कोर्ट के एक सत्र जज द्वारा 16 जुलाई को दिए गए आदेश से जुड़ा है। शिकायतकर्ता ने उस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
क्या है मामला
यह मामला 25 जून को नेब सराय थाने में दर्ज एफआईआर पर आधारित है। आरोप है कि सीनियर एडवोकेट ने कई बार उसका यौन उत्पीड़न किया और उसे मामला वापस लेने के लिए दो जजों की मदद से दबाव डलवाया
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