पेरिस: भारतीय वायुसेना ने रक्षा मंत्रालय को 114 "मेड इन इंडिया" राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद का प्रस्ताव दिया है। अगर रक्षा मंत्रालय इस प्रस्ताव को स्वीकार लेता है तो इससे भारत की हवाई क्षमता में अभूतपूर्व वृद्धि होगी। इसके साथ ही फ्रांस, भारत का सबसे बड़ा रक्षा साझेदार भी बन जाएगा। अभी तक भारत का सबसे बड़ा रक्षा साझेदार रूस है और फ्रांस दूसरे स्थान पर है। ऐसे में भारत के राफेल डील को रूस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि रूस लंबे समय से भारत को सुखोई Su-57 स्टील्थ लड़ाकू विमान का ऑफर दे रहा है। हालांकि, भारत की तरफ से Su-57 की खरीद को लेकर कुछ भी नहीं कहा गया है।
कितनी होगी 114 राफेल की कीमत
यूरेशियन टाइम्स के अनुसार, 114 राफेल के सौदे की अनुमानित कीमत 2 लाख करोड़ रुपये या लगभग 23.8 अरब डॉलर होगी। इन विमानों में 60% स्वदेशी सामग्री का इस्तेमाल भी होगा और इन्हें 'मेक इन इंडिया' पहल के तहत भारत में ही बनाया जाएगा। इसके लिए फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट एविएशन भारत में अपने एक पार्टनर की पहचान करेगी और उसके साथ मिलकर राफेल का निर्माण करेगी। हालांकि, इस प्रस्ताव पर अभी काफी काम किया जाना बाकी है।
राफेल के लिए अभी लंबा इंतजार
यह प्रस्ताव अभी रक्षा मंत्रालय के पास पहुंचा है। इसके बाद भारतीय वायुसेना के प्रस्ताव को रक्षा खरीद बोर्ड (DPB), रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) और अंत में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। सभी मंजूरियां प्राप्त होने के बाद डसॉल्ट एविएशन को 114 राफेल विमानों का ऑर्डर दिया जाएगा। ऐसा माना जा रहा है कि भारत इस बार भी राफेल डील के लिए 'सरकार से सरकार' खरीद प्रक्रिया को ही अपनाएगा।
रूसी Su-57E के लिए बड़ा झटका
रूस ने भारत को अपने अत्याधुनिक Su-57E स्टील्थ विमान की पेशकश की है। रूस ने इस साल की शुरुआत में Su-57E के स्थानीय उत्पादन, Su-30MKI के आधुनिकीकरण और भारत के अपने पांचवीं पीढ़ी के उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान (AMCA) कार्यक्रम में सहायता की पेशकश की है। भारत का AMCA प्रोग्राम पहले से ही देरी का सामना कर रहा है। ऐसे में रूस ने भारत को बड़ा ऑफर दिया है। लेकिन, राफेल को लेकर वायुसेना के प्रस्ताव को रूसी Su-57E के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
भारत का सबसे बड़ा रक्षा सहयोगी बनेगा फ्रांस?
अगर भारत 114 राफेल की खरीद को मंजूरी देता है और यह डील फाइनल हो जाती है तो फ्रांस सबसे बड़ा रक्षा साझेदार बन जाएगा। फ्रांस पहले से ही भारत के शीर्ष रक्षा आपूर्तिकर्ताओं में से एक है।सिपरी की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, 2020-2024 के दौरान फ्रांस (33%) भारत का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता था, जो रूस से थोड़ा ही पीछे था। इस अवधि में रूस ने भारत के 36% हथियारों की आपूर्ति की थी।
कितनी होगी 114 राफेल की कीमत
यूरेशियन टाइम्स के अनुसार, 114 राफेल के सौदे की अनुमानित कीमत 2 लाख करोड़ रुपये या लगभग 23.8 अरब डॉलर होगी। इन विमानों में 60% स्वदेशी सामग्री का इस्तेमाल भी होगा और इन्हें 'मेक इन इंडिया' पहल के तहत भारत में ही बनाया जाएगा। इसके लिए फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट एविएशन भारत में अपने एक पार्टनर की पहचान करेगी और उसके साथ मिलकर राफेल का निर्माण करेगी। हालांकि, इस प्रस्ताव पर अभी काफी काम किया जाना बाकी है।
राफेल के लिए अभी लंबा इंतजार
यह प्रस्ताव अभी रक्षा मंत्रालय के पास पहुंचा है। इसके बाद भारतीय वायुसेना के प्रस्ताव को रक्षा खरीद बोर्ड (DPB), रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) और अंत में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। सभी मंजूरियां प्राप्त होने के बाद डसॉल्ट एविएशन को 114 राफेल विमानों का ऑर्डर दिया जाएगा। ऐसा माना जा रहा है कि भारत इस बार भी राफेल डील के लिए 'सरकार से सरकार' खरीद प्रक्रिया को ही अपनाएगा।
रूसी Su-57E के लिए बड़ा झटका
रूस ने भारत को अपने अत्याधुनिक Su-57E स्टील्थ विमान की पेशकश की है। रूस ने इस साल की शुरुआत में Su-57E के स्थानीय उत्पादन, Su-30MKI के आधुनिकीकरण और भारत के अपने पांचवीं पीढ़ी के उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान (AMCA) कार्यक्रम में सहायता की पेशकश की है। भारत का AMCA प्रोग्राम पहले से ही देरी का सामना कर रहा है। ऐसे में रूस ने भारत को बड़ा ऑफर दिया है। लेकिन, राफेल को लेकर वायुसेना के प्रस्ताव को रूसी Su-57E के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
भारत का सबसे बड़ा रक्षा सहयोगी बनेगा फ्रांस?
अगर भारत 114 राफेल की खरीद को मंजूरी देता है और यह डील फाइनल हो जाती है तो फ्रांस सबसे बड़ा रक्षा साझेदार बन जाएगा। फ्रांस पहले से ही भारत के शीर्ष रक्षा आपूर्तिकर्ताओं में से एक है।सिपरी की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, 2020-2024 के दौरान फ्रांस (33%) भारत का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता था, जो रूस से थोड़ा ही पीछे था। इस अवधि में रूस ने भारत के 36% हथियारों की आपूर्ति की थी।
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