सोमनाथ मुखर्जी: तीन घटनाओं पर गौर कीजिए, जो दिखने में अलग लग सकती हैं। पहली घटना जुलाई के मध्य की है - एक कार्यक्रम में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, ‘अब यह नहीं चलेगा कि आप भारतीयों को नौकरी पर रखिए, चीन में फैक्ट्री लगाइए और मुनाफा आयरलैंड में जमा कीजिए।’ इसके बाद भारत से अमेरिका होने वाले निर्यात पर 25% टैरिफ लगा दिया गया। फिर ट्रंप ने यह कहते हुए 25% टैरिफ और लगा दिया कि भारत, रूस से तेल खरीद रहा है।
घटनाओं में संबंध: अगली घटना यह हुई कि माइक्रोसॉफ्ट ने भारत में रूस के स्वामित्व वाली तेल रिफाइनरी Nayara Energy को कुछ समय के लिए अपनी सेवाएं देना बंद कर दिया। इसी तरह, अमेरिकी कंपनी GE से इंजन की आपूर्ति में देरी के कारण भारत का महत्वपूर्ण लड़ाकू विमान कार्यक्रम LCA और पिछड़ गया। ये तीनों घटनाएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। इनको बांधने वाली डोर है नई जियो-इकॉनमिक्स।
मुक्त व्यापार: भले ही मुक्त व्यापार आगे भी चलता रहेगा, लेकिन इसका हर एक हिस्सा अब हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है, और किया भी जाएगा। ऐसा रूप पहले 1973 में इस्राइल-अरब युद्ध के जवाब में OPEC के गठन के बाद देखा गया था। हालांकि OPEC की ताकत एकतरफा थी। अब व्यापार के लिए हर तरह के माध्यम का उपयोग किया जाएगा - चाहे आर्थिक हो या राजनीतिक।
नए हथियार: आज अमेरिका अपने विशाल उपभोक्ता बाजार का उपयोग टैरिफ लगाने और राजनीतिक लक्ष्यों को साधने के लिए कर रहा है। इसके जवाब में चीन ने रेयर अर्थ मिनरल्स पर अपने एकाधिकार को हथियार बना लिया है। इन दुर्लभ धातुओं की कमी से जब अमेरिका के महत्वपूर्ण उद्योग प्रभावित होना शुरू हुए, तो उसका रुख चीन के प्रति नरम पड़ता गया।
भारत की स्थिति: व्यापार और जीवन को आधार देने वाली प्रमुख तकनीक पर एकाधिकार हो चुका है - सॉफ्टवेयर तकनीक पर अमेरिका का और मैन्युफैक्चरिंग में चीन का। इस कठिन वैश्विक परिस्थिति में भारत जल्द ही तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा, लेकिन उसकी इकॉनमी का साइज अमेरिका और चीन से काफी कम है। भारत किसी अलायंस का हिस्सा नहीं और व्यावहारिक रूप से ऐसा करना संभव भी नहीं है।
बड़े प्रॉजेक्ट्स पर ध्यान: मैन्युफैक्चरिंग बनाम सर्विस सेक्टर की बहस अब बेमानी हो गई है। यह सोच भी अब बेमानी है कि बड़े पैमाने पर नौकरियां देने के लिए मैन्युफैक्चरिंग जरूरी है। असल में, यह एक रणनीतिक जरूरत है। भारत को ऐसा इकोसिस्टम चाहिए, जो देश में ही हवाई इंजन बनाने जैसे बड़े प्रॉजेक्ट्स को संभाल सके।
आत्मनिर्भरता की जरूरत: आज एक अमेरिकी टेक कंपनी यूरोपीय प्रतिबंधों के जवाब में एक रूसी कंपनी को अपनी अहम सेवाएं देना बंद कर रही है। कल को अगर ऐसा ही कुछ भारत के साथ होता है, तो उसे कैसे रोका जाएगा? अगर देश का डेटा देश में ही नहीं रखा गया, तो कोई भी विदेशी कंपनी या सरकार जब चाहे उसकी जानकारी देना बंद कर देगी। ऐसे में आत्मनिर्भरता को जमीनी हकीकत बनाने की जरूरत है। डेटा, एक्सेस और आईटी इंफ्रा जैसे सेक्टर को बेहतर पॉलिसी बनाकर संभाला जा सकता है। इनका इस्तेमाल व्यापार समझौतों में भी दबाव बनाने के लिए कर सकते हैं। वहीं, एयरो इंजन, क्वांटम कंप्यूटिंग, पांचवीं-छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान जैसे क्षेत्रों में भारत के पास डिजाइन, डिवेलपमेंट और मैन्युफैक्चरिंग की घरेलू क्षमता जरूरी है।
प्राइवेट सेक्टर की कमी: नीति और टैक्स छूट से प्राइवेट सेक्टर को निवेश के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिशें ज्यादा सफल नहीं रही हैं। अत्याधुनिक क्षेत्रों में विशेषज्ञ लोगों की कमी है। साथ ही, भारत की प्राइवेट कंपनियां जोखिम भरे प्रॉजेक्ट्स में निवेश करने से कतराती हैं। ऐसे में जिम्मेदारी सरकार पर आ जाती है।
प्रॉजेक्ट ATV : भारत के पास पहले से एक सफल उदाहरण है, प्रॉजेक्ट Advanced Technology Vessel। चार दशकों तक सीधे PMO के तहत यह बेहद गोपनीय प्रोग्राम चलाया गया। इस परियोजना का मकसद था परमाणु पनडुब्बी बनाना। डिजाइन से लेकर डिवेलपमेंट और असेंबली तक, सारा कोऑर्डिनेशन एक जगह से हुआ। पनडुब्बी का ढांचा निजी कंपनी L&T ने तैयार किया और शिप बिल्डिंग सेंटर (SBC) में सारे पार्ट्स को जोड़ा गया।
सरकार पर जिम्मेदारी: महत्वपूर्ण टेक्नॉलजी और प्रॉडक्ट्स को पूरा करने के लिए ATV जैसे मॉडल की जरूरत होगी। कुछ चुनौतियां हैं, जैसे - पब्लिक सेक्टर का वर्क कल्चर, टैलंट को अच्छी सैलरी न दे पाने की दिक्कत आदि। इन दिक्कतों से निपटने के लिए हर संभव कदम उठाने होंगे, लेकिन ऐसा सिर्फ सरकार ही कर सकती है।
(लेखक एसेट और वेल्थ मैनेजमेंट कंपनी में CIO हैं)
घटनाओं में संबंध: अगली घटना यह हुई कि माइक्रोसॉफ्ट ने भारत में रूस के स्वामित्व वाली तेल रिफाइनरी Nayara Energy को कुछ समय के लिए अपनी सेवाएं देना बंद कर दिया। इसी तरह, अमेरिकी कंपनी GE से इंजन की आपूर्ति में देरी के कारण भारत का महत्वपूर्ण लड़ाकू विमान कार्यक्रम LCA और पिछड़ गया। ये तीनों घटनाएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। इनको बांधने वाली डोर है नई जियो-इकॉनमिक्स।
मुक्त व्यापार: भले ही मुक्त व्यापार आगे भी चलता रहेगा, लेकिन इसका हर एक हिस्सा अब हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है, और किया भी जाएगा। ऐसा रूप पहले 1973 में इस्राइल-अरब युद्ध के जवाब में OPEC के गठन के बाद देखा गया था। हालांकि OPEC की ताकत एकतरफा थी। अब व्यापार के लिए हर तरह के माध्यम का उपयोग किया जाएगा - चाहे आर्थिक हो या राजनीतिक।
नए हथियार: आज अमेरिका अपने विशाल उपभोक्ता बाजार का उपयोग टैरिफ लगाने और राजनीतिक लक्ष्यों को साधने के लिए कर रहा है। इसके जवाब में चीन ने रेयर अर्थ मिनरल्स पर अपने एकाधिकार को हथियार बना लिया है। इन दुर्लभ धातुओं की कमी से जब अमेरिका के महत्वपूर्ण उद्योग प्रभावित होना शुरू हुए, तो उसका रुख चीन के प्रति नरम पड़ता गया।
भारत की स्थिति: व्यापार और जीवन को आधार देने वाली प्रमुख तकनीक पर एकाधिकार हो चुका है - सॉफ्टवेयर तकनीक पर अमेरिका का और मैन्युफैक्चरिंग में चीन का। इस कठिन वैश्विक परिस्थिति में भारत जल्द ही तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा, लेकिन उसकी इकॉनमी का साइज अमेरिका और चीन से काफी कम है। भारत किसी अलायंस का हिस्सा नहीं और व्यावहारिक रूप से ऐसा करना संभव भी नहीं है।
बड़े प्रॉजेक्ट्स पर ध्यान: मैन्युफैक्चरिंग बनाम सर्विस सेक्टर की बहस अब बेमानी हो गई है। यह सोच भी अब बेमानी है कि बड़े पैमाने पर नौकरियां देने के लिए मैन्युफैक्चरिंग जरूरी है। असल में, यह एक रणनीतिक जरूरत है। भारत को ऐसा इकोसिस्टम चाहिए, जो देश में ही हवाई इंजन बनाने जैसे बड़े प्रॉजेक्ट्स को संभाल सके।
आत्मनिर्भरता की जरूरत: आज एक अमेरिकी टेक कंपनी यूरोपीय प्रतिबंधों के जवाब में एक रूसी कंपनी को अपनी अहम सेवाएं देना बंद कर रही है। कल को अगर ऐसा ही कुछ भारत के साथ होता है, तो उसे कैसे रोका जाएगा? अगर देश का डेटा देश में ही नहीं रखा गया, तो कोई भी विदेशी कंपनी या सरकार जब चाहे उसकी जानकारी देना बंद कर देगी। ऐसे में आत्मनिर्भरता को जमीनी हकीकत बनाने की जरूरत है। डेटा, एक्सेस और आईटी इंफ्रा जैसे सेक्टर को बेहतर पॉलिसी बनाकर संभाला जा सकता है। इनका इस्तेमाल व्यापार समझौतों में भी दबाव बनाने के लिए कर सकते हैं। वहीं, एयरो इंजन, क्वांटम कंप्यूटिंग, पांचवीं-छठी पीढ़ी के लड़ाकू विमान जैसे क्षेत्रों में भारत के पास डिजाइन, डिवेलपमेंट और मैन्युफैक्चरिंग की घरेलू क्षमता जरूरी है।
प्राइवेट सेक्टर की कमी: नीति और टैक्स छूट से प्राइवेट सेक्टर को निवेश के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिशें ज्यादा सफल नहीं रही हैं। अत्याधुनिक क्षेत्रों में विशेषज्ञ लोगों की कमी है। साथ ही, भारत की प्राइवेट कंपनियां जोखिम भरे प्रॉजेक्ट्स में निवेश करने से कतराती हैं। ऐसे में जिम्मेदारी सरकार पर आ जाती है।
प्रॉजेक्ट ATV : भारत के पास पहले से एक सफल उदाहरण है, प्रॉजेक्ट Advanced Technology Vessel। चार दशकों तक सीधे PMO के तहत यह बेहद गोपनीय प्रोग्राम चलाया गया। इस परियोजना का मकसद था परमाणु पनडुब्बी बनाना। डिजाइन से लेकर डिवेलपमेंट और असेंबली तक, सारा कोऑर्डिनेशन एक जगह से हुआ। पनडुब्बी का ढांचा निजी कंपनी L&T ने तैयार किया और शिप बिल्डिंग सेंटर (SBC) में सारे पार्ट्स को जोड़ा गया।
सरकार पर जिम्मेदारी: महत्वपूर्ण टेक्नॉलजी और प्रॉडक्ट्स को पूरा करने के लिए ATV जैसे मॉडल की जरूरत होगी। कुछ चुनौतियां हैं, जैसे - पब्लिक सेक्टर का वर्क कल्चर, टैलंट को अच्छी सैलरी न दे पाने की दिक्कत आदि। इन दिक्कतों से निपटने के लिए हर संभव कदम उठाने होंगे, लेकिन ऐसा सिर्फ सरकार ही कर सकती है।
(लेखक एसेट और वेल्थ मैनेजमेंट कंपनी में CIO हैं)
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