अजीम मिर्जा, बहराइच: सन 2014 से चल रही भरतापुर गांव के विस्थापन की मांग रविवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश के बाद पूरी होती दिखाई दे रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लगभग 22 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की और अधिकारियों को निर्देश दिया कि एक माह के अन्दर जमीन ढूंढ कर सभी को विस्थापित किया जाए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि वन विभाग के नियमों के कारण भरतापुर के निवासियों का विकास नहीं हो पा रहा था। किसी के पास पक्का मकान नहीं है, इसलिए सभी को मुख्यमंत्री आवास और शौचालय दिया जाएगा। उन्होंने अधिकारियों को निर्देशित करते हुए कहा कि जो भूमि चिह्नित की जाए, वहां आंगनबाड़ी केंद्र, स्वास्थ्य केंद्र और स्कूल आदि की व्यवस्था की जाए।
हर वक्त खतरा रहता है
भरतापुर निवासी शांति देवी ने एनबीटी ऑनलाइन को बताया कि हम लोग जिस जगह रहते हैं, वहां हाथी, गैंडे और बाघ के हमले का हर वक्त डर लगा रहता है, क्योंकि हम लोग दो तरफ से घने जंगल और एक तरफ से नदी से घिरे ग्राम में रहते हैं। हम लोग चाहते हैं कि जल्द से जल्द हमारा विस्थापन जाए, क्योंकि हम लोग नरक में रह रहे हैं।
118 परिवार गांव में रहते हैं
बता दें कि इस गांव में 118 परिवार के लगभग ढाई सौ लोग रहते हैं। प्रत्येक परिवारों को 15 लाख रुपये की धनराशि सरकार की तरफ से दी जाएगी और जिनके पास अपनी भूमि है, उनको भूमि का अतिरिक्त पैसा दिया जाएगा।
कुछ लोग नहीं होना चाहते हैं विस्थापित
प्रशासन सन 2014 से इनको विस्थापित करने की जद्दोजहद कर रहा है, इसीलिए सरकार ने सन 2014 में एक बस में 68 लोगों को मध्य प्रदेश के सीहोर भेजा था, क्योंकि सीहोर के निवासी भी इसी तरह पहले जंगल में रहते थे। इन 68 लोगों से भरी बस को उस वक्त के समाज कल्याण मंत्री बंसी धर बौध ने हरी झंडी दिखा कर रवाना किया था, लेकिन इन लोगों के विस्थापन में कठिनाई इसलिए भी आ रही थी कि इन परिवारों में से कुछ लोग यहां से हटना नहीं चाहते थे। कुछ लोगों ने नाम न छापने कि शर्त पर बताया कि भरतापुर से वह लोग नहीं जाना चाहते हैं, जो अवैध रूप से शराब बनाते हैं और मछली पकड़ते हैं।
10 किलोमीटर जंगल से होकर गांव पहुंचते हैं लोग
आम आदमी को भरतापुर पहुंचने के लिए 10 किलोमीटर जंगल से होकर गुजरना पड़ता है, जिस जंगल में सभी खतरनाक जानवर निवास करते हैं। वहीं, अधिकारियों को भी पहले डेढ़ किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है, फिर नदी पार करनी पड़ती है। उसके बाद एसएसबी की गाड़ियों से गांव तक पहुंचा जाता है। लिहाजा इतनी दुरुह जगह पर रहने वाले लोगों में मुख्यमंत्री की घोषणा से खुशी की लहर दौड़ गई है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि वन विभाग के नियमों के कारण भरतापुर के निवासियों का विकास नहीं हो पा रहा था। किसी के पास पक्का मकान नहीं है, इसलिए सभी को मुख्यमंत्री आवास और शौचालय दिया जाएगा। उन्होंने अधिकारियों को निर्देशित करते हुए कहा कि जो भूमि चिह्नित की जाए, वहां आंगनबाड़ी केंद्र, स्वास्थ्य केंद्र और स्कूल आदि की व्यवस्था की जाए।
हर वक्त खतरा रहता है
भरतापुर निवासी शांति देवी ने एनबीटी ऑनलाइन को बताया कि हम लोग जिस जगह रहते हैं, वहां हाथी, गैंडे और बाघ के हमले का हर वक्त डर लगा रहता है, क्योंकि हम लोग दो तरफ से घने जंगल और एक तरफ से नदी से घिरे ग्राम में रहते हैं। हम लोग चाहते हैं कि जल्द से जल्द हमारा विस्थापन जाए, क्योंकि हम लोग नरक में रह रहे हैं।
118 परिवार गांव में रहते हैं
बता दें कि इस गांव में 118 परिवार के लगभग ढाई सौ लोग रहते हैं। प्रत्येक परिवारों को 15 लाख रुपये की धनराशि सरकार की तरफ से दी जाएगी और जिनके पास अपनी भूमि है, उनको भूमि का अतिरिक्त पैसा दिया जाएगा।
कुछ लोग नहीं होना चाहते हैं विस्थापित
प्रशासन सन 2014 से इनको विस्थापित करने की जद्दोजहद कर रहा है, इसीलिए सरकार ने सन 2014 में एक बस में 68 लोगों को मध्य प्रदेश के सीहोर भेजा था, क्योंकि सीहोर के निवासी भी इसी तरह पहले जंगल में रहते थे। इन 68 लोगों से भरी बस को उस वक्त के समाज कल्याण मंत्री बंसी धर बौध ने हरी झंडी दिखा कर रवाना किया था, लेकिन इन लोगों के विस्थापन में कठिनाई इसलिए भी आ रही थी कि इन परिवारों में से कुछ लोग यहां से हटना नहीं चाहते थे। कुछ लोगों ने नाम न छापने कि शर्त पर बताया कि भरतापुर से वह लोग नहीं जाना चाहते हैं, जो अवैध रूप से शराब बनाते हैं और मछली पकड़ते हैं।
10 किलोमीटर जंगल से होकर गांव पहुंचते हैं लोग
आम आदमी को भरतापुर पहुंचने के लिए 10 किलोमीटर जंगल से होकर गुजरना पड़ता है, जिस जंगल में सभी खतरनाक जानवर निवास करते हैं। वहीं, अधिकारियों को भी पहले डेढ़ किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है, फिर नदी पार करनी पड़ती है। उसके बाद एसएसबी की गाड़ियों से गांव तक पहुंचा जाता है। लिहाजा इतनी दुरुह जगह पर रहने वाले लोगों में मुख्यमंत्री की घोषणा से खुशी की लहर दौड़ गई है।
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