पटना: बिहार में विधानसभा चुनाव के दूसरे और अंतिम चरण में 11 नवंबर को 123 सीटों पर मतदान होगा। चुनाव में मुख्य मुकाबला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और महागठबंधन के बीच है। महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अलावा दूसरी बड़ी पार्टी कांग्रेस है। इस बार कांग्रेस बिहार के चुनाव को लेकर काफी महत्वाकांक्षी दिखती रही है लेकिन जैसे हालात बने उसमें उसकी आकांक्षाएं पूरी होने की संभावना कम ही नजर आ रही हैं। कांग्रेस का 2020 के चुनाव में प्रदर्शन बहुत निराशाजनक रहा था।
विधानसभा चुनाव के ऐलान से पहले बिहार में वोटर लिस्ट के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) में कथित धांधली और 'वोट चोरी' के आरोपों को लेकर सितंबर में निकाली गई वोटर अधिकार यात्रा का नेतृत्व करते हुए राहुल गांधी चमक रहे थे। वे और उनके साथ उनकी पार्टी कांग्रेस भी सुर्खियों में थी। लग रहा था कि कांग्रेस दशकों बाद बिहार की सत्ता में लौटने के लिए तैयार है। लेकिन चुनाव के ऐलान के साथ महागठबंधन में सीटों के बंटवारे और नेतृत्व को लेकर चली भिड़ंत में आरजेडी ने अपना वर्चस्व बना लिया और कांग्रेस फिर किनारे लग गई।
भंवर में फंसी कांग्रेस कांग्रेस 2020 में 70 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ी थी और सिर्फ 19 सीटें ही जीत सकी थी। इस बार उसकी सीटें कम हो गई हैं। कांग्रेस को पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार 9 सीटें कम मिली हैं। वह 61 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इन 61 सीटों में से 9 सीटों पर कांग्रेस के अलावा महागठबंधन के सहयोगी दल आरजेडी, सीपीआई और वीआईपी भी मौजूद हैं, यानी फ्रेंडली फाइट हो रही है। कांग्रेस अब जिन 52 सीटें से आस लगाए है, उनमें से भी 23 सीटें ऐसी हैं जिन पर महागठबंधन पिछले सात चुनावों में कभी नहीं जीता है। शेष 29 विधानसभा सीटों में से 15 सीटें ऐसी हैं जिन पर पिछले सात चुनावों में महागठबंधन मात्र एक बार ही विजयी हो सकी। ऐसे में क्या कांग्रेस अपने पिछले चुनाव के प्रदर्शन से आगे निकल सकेगी?
बिहार में कांग्रेस 35 साल पहले 1990 में अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन को फिर से हासिल करने के लिए नई राह तलाश रही है। हालांकि 1990 की बिहार की राजनीतिक स्थितियां और आज की स्थितियों में जमीन आसमान का अंतर आ चुका है। तब बिहार ही नहीं देश भर में कांग्रेस का भारी जनाधार था। आज कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी होकर भी एक ऐसी पार्टी बन चुकी है जिसे किसी भी राज्य में सत्ता पाने के लिए स्थानीय क्षेत्रीय दलों से हाथ मिलाना अपरिहार्य हो गया है। पिछली सदी के नौवें दशक के साथ दलों के गठबंधन की राजनीति का उदय हुआ, क्षेत्रीय दलों की ताकत बढ़ी और कांग्रेस जैसी देश में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस विलुप्त होती गई। अब क्षेत्रीय दल कांग्रेस को अपने सामने बौनी साबित कर देते हैं और वह कुछ नहीं कर पाती।
सत्ता पक्ष पर आरोपों की धार कुंद हुईबिहार में इस बार भी आरजेडी और वीआईपी जैसी क्षेत्रीय पार्टियां महागठबंधन के सीट बंटवारे में कांग्रेस को बौना साबित करने में सफल होती दिखीं। एक तरफ तो उसे पहले से कम सीटें दी गईं और ऊपर से ऐसी सीटें दे दी गईं जिनमें महागठबंधन के जीत की संभावनाएं पहले से ही कम हैं।
बिहार का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए ‘करो या मरो’ की लड़ाई है। दो माह पहले इस लड़ाई में उसकी जिजीविषा दिखाई दे रही थी। वोटर अधिकार यात्रा के दौरान राहुल गांधी उत्साहित थे। उन्होंने कथित वोट चोरी को लेकर चुनाव आयोग और एनडीए का नेतृत्व कर रही बीजेपी पर काफी हमले किए। उनके उग्र विरोध का बिहार में असर भी देखा गया। लेकिन वे एसआईआर में धांधली के आरोप पर ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं दे सके जो सत्ताधारी दल या चुनाव आयोग को नुकसान पहुंचा सके। उन्होंने वोट चोरी के जो आरोप लगाए वे भी कर्नाटक या हरियाणा के चुनावों के हैं। इन आरोपों से बिहार के मतदाता को सीधे कनेक्ट नहीं किया जा सका।
हालात से हारते नजर आ रहे राहुल गांधी वोटर अधिकार यात्रा के बाद चुनाव का ऐलान हुआ और राहुल गांधी बिहार से गायब हो गए। जब उनका आंदोलन गति पकड़ चुका था, जनता में उसकी अच्छी प्रतिक्रिया हो रही थी, तब विरोध की आग को जलाए रखने के बजाय वे विदेश यात्रा पर चले गए। इसी बीच महागठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर रस्साकशी शुरू हो गई। सीटों के लिए संघर्ष सिर्फ महागठबंधन के दलों के बीच ही नहीं, कांग्रेस के नेताओं के बीच भी हुआ। राजनीति के दिग्गज खिलाड़ी लालू यादव ने अपना खेल खेला और बिहार में महागठबंधन में 'बड़ा भाई' बनने की कोशिश कर रही कांग्रेस को पीछे धकेल दिया। इन स्थितियों में भी यदि कांग्रेस पहले से अच्छा प्रदर्शन करती है तो यह उसके भविष्य के लिए अच्छा संकेत हो सकता है।
अंतिम चरण की वोटिंग 11 नवंबर कोबिहार में दूसरे चरण के चुनाव में 20 जिलों की 122 सीटों पर वोटिंग 11 नवंबर को होगी। इस चरण में महागठबंधन में आरजेडी सबसे ज़्यादा 71 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस के उम्मीदवार 37 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी 7, सीपीआई-एमएल 7, सीपीआई 4 और सीपीएम एक सीट पर चुनाव लड़ रही है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम 21 सीटों पर और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी 120 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
सत्ता पक्ष एनडीए में सबसे ज़्यादा बीजेपी 53 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। जेडीयू 44 सीटों पर, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) 15 सीटों पर, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम) 6 सीटों पर और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएम 4 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
विधानसभा चुनाव के ऐलान से पहले बिहार में वोटर लिस्ट के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) में कथित धांधली और 'वोट चोरी' के आरोपों को लेकर सितंबर में निकाली गई वोटर अधिकार यात्रा का नेतृत्व करते हुए राहुल गांधी चमक रहे थे। वे और उनके साथ उनकी पार्टी कांग्रेस भी सुर्खियों में थी। लग रहा था कि कांग्रेस दशकों बाद बिहार की सत्ता में लौटने के लिए तैयार है। लेकिन चुनाव के ऐलान के साथ महागठबंधन में सीटों के बंटवारे और नेतृत्व को लेकर चली भिड़ंत में आरजेडी ने अपना वर्चस्व बना लिया और कांग्रेस फिर किनारे लग गई।
भंवर में फंसी कांग्रेस कांग्रेस 2020 में 70 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ी थी और सिर्फ 19 सीटें ही जीत सकी थी। इस बार उसकी सीटें कम हो गई हैं। कांग्रेस को पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार 9 सीटें कम मिली हैं। वह 61 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इन 61 सीटों में से 9 सीटों पर कांग्रेस के अलावा महागठबंधन के सहयोगी दल आरजेडी, सीपीआई और वीआईपी भी मौजूद हैं, यानी फ्रेंडली फाइट हो रही है। कांग्रेस अब जिन 52 सीटें से आस लगाए है, उनमें से भी 23 सीटें ऐसी हैं जिन पर महागठबंधन पिछले सात चुनावों में कभी नहीं जीता है। शेष 29 विधानसभा सीटों में से 15 सीटें ऐसी हैं जिन पर पिछले सात चुनावों में महागठबंधन मात्र एक बार ही विजयी हो सकी। ऐसे में क्या कांग्रेस अपने पिछले चुनाव के प्रदर्शन से आगे निकल सकेगी?
बिहार में कांग्रेस 35 साल पहले 1990 में अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन को फिर से हासिल करने के लिए नई राह तलाश रही है। हालांकि 1990 की बिहार की राजनीतिक स्थितियां और आज की स्थितियों में जमीन आसमान का अंतर आ चुका है। तब बिहार ही नहीं देश भर में कांग्रेस का भारी जनाधार था। आज कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी होकर भी एक ऐसी पार्टी बन चुकी है जिसे किसी भी राज्य में सत्ता पाने के लिए स्थानीय क्षेत्रीय दलों से हाथ मिलाना अपरिहार्य हो गया है। पिछली सदी के नौवें दशक के साथ दलों के गठबंधन की राजनीति का उदय हुआ, क्षेत्रीय दलों की ताकत बढ़ी और कांग्रेस जैसी देश में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस विलुप्त होती गई। अब क्षेत्रीय दल कांग्रेस को अपने सामने बौनी साबित कर देते हैं और वह कुछ नहीं कर पाती।
सत्ता पक्ष पर आरोपों की धार कुंद हुईबिहार में इस बार भी आरजेडी और वीआईपी जैसी क्षेत्रीय पार्टियां महागठबंधन के सीट बंटवारे में कांग्रेस को बौना साबित करने में सफल होती दिखीं। एक तरफ तो उसे पहले से कम सीटें दी गईं और ऊपर से ऐसी सीटें दे दी गईं जिनमें महागठबंधन के जीत की संभावनाएं पहले से ही कम हैं।
बिहार का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए ‘करो या मरो’ की लड़ाई है। दो माह पहले इस लड़ाई में उसकी जिजीविषा दिखाई दे रही थी। वोटर अधिकार यात्रा के दौरान राहुल गांधी उत्साहित थे। उन्होंने कथित वोट चोरी को लेकर चुनाव आयोग और एनडीए का नेतृत्व कर रही बीजेपी पर काफी हमले किए। उनके उग्र विरोध का बिहार में असर भी देखा गया। लेकिन वे एसआईआर में धांधली के आरोप पर ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं दे सके जो सत्ताधारी दल या चुनाव आयोग को नुकसान पहुंचा सके। उन्होंने वोट चोरी के जो आरोप लगाए वे भी कर्नाटक या हरियाणा के चुनावों के हैं। इन आरोपों से बिहार के मतदाता को सीधे कनेक्ट नहीं किया जा सका।
हालात से हारते नजर आ रहे राहुल गांधी वोटर अधिकार यात्रा के बाद चुनाव का ऐलान हुआ और राहुल गांधी बिहार से गायब हो गए। जब उनका आंदोलन गति पकड़ चुका था, जनता में उसकी अच्छी प्रतिक्रिया हो रही थी, तब विरोध की आग को जलाए रखने के बजाय वे विदेश यात्रा पर चले गए। इसी बीच महागठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर रस्साकशी शुरू हो गई। सीटों के लिए संघर्ष सिर्फ महागठबंधन के दलों के बीच ही नहीं, कांग्रेस के नेताओं के बीच भी हुआ। राजनीति के दिग्गज खिलाड़ी लालू यादव ने अपना खेल खेला और बिहार में महागठबंधन में 'बड़ा भाई' बनने की कोशिश कर रही कांग्रेस को पीछे धकेल दिया। इन स्थितियों में भी यदि कांग्रेस पहले से अच्छा प्रदर्शन करती है तो यह उसके भविष्य के लिए अच्छा संकेत हो सकता है।
अंतिम चरण की वोटिंग 11 नवंबर कोबिहार में दूसरे चरण के चुनाव में 20 जिलों की 122 सीटों पर वोटिंग 11 नवंबर को होगी। इस चरण में महागठबंधन में आरजेडी सबसे ज़्यादा 71 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस के उम्मीदवार 37 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी 7, सीपीआई-एमएल 7, सीपीआई 4 और सीपीएम एक सीट पर चुनाव लड़ रही है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम 21 सीटों पर और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी 120 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
सत्ता पक्ष एनडीए में सबसे ज़्यादा बीजेपी 53 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। जेडीयू 44 सीटों पर, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) 15 सीटों पर, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम) 6 सीटों पर और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएम 4 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
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