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क्या टकराव है, सरजी! विपक्ष और चुनाव आयोग का झगड़ा पहले जैसा क्यों नहीं है?

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संजय कुमार



हाल के महीनों में, विपक्षी गठबंधन INDIA और चुनाव आयोग के बीच एक खींचतान चल रही है। यह विवाद दुर्भाग्यपूर्ण है। INDIA गठबंधन में आम आदमी पार्टी शामिल नहीं है। भारत में पहले भी सत्ताधारी पार्टियों और विपक्ष के बीच खूब टकराव हुए हैं। इमरजेंसी के खिलाफ आंदोलन भी बहुत लंबा और जोरदार था। लेकिन, चुनाव आयोग और विपक्ष के बीच ऐसी सीधी लड़ाई पहले कभी नहीं देखी गई। पहले भी चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाए गए हैं। लेकिन, अभी जो आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं, वो बेहद गंभीर हैं। विपक्ष चुनाव आयोग पर 'वोट चोरी' के आरोप लगा रहा है। वहीं, चुनाव आयोग का कहना है कि ये आरोप निराधार हैं और इससे संस्था की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचता है।




चुनाव आयोग के खिलाफ विपक्ष का हल्ला बोल

फिलहाल इस स्थिति के लिए दोनों ही पक्ष जिम्मेदार हैं। लेकिन, चुनाव आयोग को ज्यादा ध्यान देना चाहिए था। अगर चुनाव आयोग थोड़ा नरम रवैया अपनाता, तो शायद बात इतनी नहीं बढ़ती। विपक्ष ने जो सवाल उठाए, खासकर राहुल गांधी ने, चुनाव आयोग ने उनका ठीक से जवाब नहीं दिया। इससे बातचीत का रास्ता ही बंद हो गया। अगर चुनाव आयोग थोड़ा खुलकर बात करता, तो शायद मामला इतना नहीं बिगड़ता।



क्यों बढ़ा ये विवाद

यह विवाद हाल के हफ्तों में और बढ़ गया है। इसकी शुरुआत महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद हुई थी। राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि चुनाव में फर्जी मतदाताओं को जोड़कर और वोटिंग पर्सेंट बढ़ाकर धांधली की गई। उनका कहना था कि खास सीटों पर ऐसा किया गया। विपक्ष ने ये भी आरोप लगाए कि 2024 के लोकसभा चुनाव और 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बीच वोटर लिस्ट में अचानक 8 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई। ये बढ़ोतरी सिर्फ पांच महीनों में हुई। मुख्यमंत्री की सीट पर भी ऐसा हुआ। कुछ बूथों पर तो 20-50 फीसदी तक की बढ़ोतरी देखी गई।



चुनाव आयोग का क्या है कहना

चुनाव आयोग ने इन आरोपों को निराधार और पूरी तरह से बेतुका बताया। इलेक्शन कमीशन का कहना था कि इन बातों का जवाब पहले ही 24 दिसंबर 2024 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को दिया जा चुका है। ये जवाब EC की वेबसाइट पर भी मौजूद है। चुनाव आयोग ने ये भी कहा कि ऐसे आरोप कानून का अपमान हैं। चुनाव आयोग सिर्फ आरोपों को खारिज करने के बजाय, दोनों चुनावों की वोटर लिस्ट जारी कर सकता था, ताकि कोई भी उन्हें देख सके।



ECI क्यों नहीं मान रहा विपक्ष की डिमांड

चुनाव आयोग ने सीसीटीवी फुटेज भी जारी करने से मना कर दिया। उनका कहना है कि उसे वोटरों की गोपनीयता का ध्यान रखना है। चुनाव आयोग ने CCTV रिकॉर्डिंग को एक साल के बजाय 45 दिनों तक रखने के फैसले को भी सही बताया। उनका कहना है कि चुनाव के नतीजे आने के बाद चुनाव याचिका दाखिल करने की समय सीमा 45 दिन ही होती है। लेकिन, अभी जो विवाद चल रहा है, उसे देखते हुए ये बदलाव ठीक नहीं लगा। अगर बूथ लेवल की फुटेज देना मुश्किल था, तो ECI कम से कम एक साल तक रिकॉर्डिंग रखने का नियम तो जारी रख सकता था। या फिर, लोगों को भरोसा दिलाने के लिए इसे दोबारा लागू कर सकता था।



विपक्षी सांसदों ने निकाला मार्च

विपक्ष ने फुटेज की मांग उठाई तो चुनाव आयोग ने कहा कि एक लाख पोलिंग स्टेशनों की रिकॉर्डिंग देखने में एक लाख दिन लगेंगे। यानी 273 साल। और इससे कोई कानूनी नतीजा भी नहीं निकलेगा। लेकिन, इलेक्शन कमीशन अगर फुटेज जारी कर देता, तो शायद पारदर्शिता ज्यादा दिखती। जब INDIA गठबंधन के 300 सांसद चुनाव आयोग के ऑफिस तक मार्च करके गए, तो इलेक्शन कमीशन ने उनसे मिलने से मना कर दिया।



चुनाव आयोग मिलने को राजी नहीं हुआECI का कहना था कि ऑफिस में जगह नहीं है, और पहले सिर्फ 30 सांसदों के मिलने की बात हुई थी। लेकिन, उस वक्त की गंभीरता को देखते हुए चुनाव आयोग को थोड़ा और ध्यान देना चाहिए था। EC को सांसदों से मिल लेना चाहिए था। चुनाव आयोग ने जो जवाब दिया, वो एक कमजोर बहाना लग रहा था।



बिहार SIR पर भी हंगामा

बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के बाद वोटर लिस्ट से 65 लाख वोटरों के नाम हटा दिए गए थे। विपक्ष ने इन वोटरों के नाम मांगे। चुनाव आयोग ये कह सकता था कि लिस्ट अभी पूरी तरह से तैयार नहीं है। और फाइनल लिस्ट बनने के बाद इसे जारी कर दिया जाएगा। लेकिन, EC ने हमेशा की तरह नियमों का हवाला दिया। अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद EC को लिस्ट जारी करनी होगी।



राहुल गांधी ने लगाया वोट चोरी का आरोप

राहुल गांधी ने कर्नाटक के महादेवपुरा में 'वोटर लिस्ट की गड़बड़ी' का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वोटर लिस्ट में एक ही नाम कई बार है, गलत पते हैं और एक ही जगह पर बहुत सारे लोगों का रजिस्ट्रेशन हुआ है। EC इस पर जांच का भरोसा दे सकता था। लेकिन, चुनाव आयोग ने रूल 20(3)(b) का हवाला दिया। इलेक्शन कमीशन ने कहा कि राहुल गांधी को शपथ पत्र और सबूत देने होंगे।



क्या चुनाव आयोग स्थिति को संभाल नहीं सका?

राहुल गांधी ने मशीन से पढ़ी जा सकने वाली वोटर लिस्ट मांगी थी। EC ने ये मांग भी ठुकरा दी। चुनाव आयोग ने 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया। EC ने ये भी कहा कि ऐसी लिस्ट पार्टियों और ऑनलाइन पहले से ही मौजूद है। राहुल गांधी ने लिखित में शिकायत भी नहीं की है। इस तरह की बातों से विपक्ष और चुनाव आयोग के बीच पहले से ही खराब चल रही बातचीत और भी बिगड़ गई। चुनाव आयोग का काम वोटों की रक्षा करना है। लेकिन, सबसे बड़ा खतरा ये नहीं है कि उस पर कितने आरोप लग रहे हैं। सबसे बड़ा खतरा ये है कि कहीं लोगों का भरोसा न उठ जाए, जब चुनाव आयोग आरोपों पर ध्यान देने को तैयार न हो।





(लेखक सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज में प्रोफेसर हैं। ये व्यक्त किए गए विचार उनके व्यक्तिगत हैं।)



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