वॉशिंगटन: राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को एक बार फिर से न्यूक्लियर रेस में उतार दिया है। डोनाल्ड ट्रंप ने हैरान करने वाला बदलाव करते हुए घोषणा की है कि अमेरिका 'तत्काल' परमाणु हथियारों का परीक्षण शुरू करेगा। इस तरह से अमेरिका ने साल 1992 में परमाणु हथियारों के टेस्ट पर जो रोक लगाई थी, वो अब खत्म हो गई है। डोनाल्ड ट्रंप ने ये घोषणा दक्षिण कोरिया के बुसान में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ उनकी निर्धारित बैठक से कुछ मिनट पहले की है, जिसका निश्चित तौर पर रणनीतिक और प्रतीकात्मक महत्व है।
डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि यह फैसला रूस और चीन के बढ़ते परमाणु कार्यक्रमों के साथ तालमेल बनाए रखने की आवश्यकता की वजह से है। उन्होंने दोनों देशों पर अपनी परीक्षण क्षमताओं को बढ़ाने का आरोप लगाया, जबकि इस दौरान अमेरिका को "स्थिर" बताया।
ट्रंप ने अमेरिका को परमाणु रेस में उतारा
Truth सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि "अमेरिका के पास किसी भी अन्य देश की तुलना में ज्यादा परमाणु हथियार हैं। रूस दूसरे स्थान पर है और चीन काफी दूर तीसरे स्थान पर है, लेकिन पांच साल में यह बराबरी पर पहुंच जाएगा।" उन्होंने आगे कहा, "दूसरे देशों के परीक्षण कार्यक्रमों को देखते हुए, मैंने डिपार्टमेंट ऑफ वॉर (अमेरिकी रक्षा मंत्रालय) को निर्देश दिया है कि वह हमारे परमाणु हथियारों का भी समान स्तर पर परीक्षण शुरू करे। यह प्रक्रिया तुरंत शुरू होगी।" इसके अलावा उन्होंने ये भी कहा कि उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में अमेरिका के परमाणु शस्त्रागार के "पूर्ण अपडेशन और रिनोवेशन" करवाया। उन्होंने कहा, "इतनी भयानक विनाशक शक्ति के कारण मैं यह नहीं करना चाहता था, लेकिन मेरे पास कोई और विकल्प नहीं था।"
अमेरिका का बड़ा नीतिगत बदलाव
डोनाल्ड ट्रंप के इस घोषणा के बाद करीब 30 सालों के बाद फिर से अमेरिका जिंदा परमाणु बम का परीक्षण करेगा। 1992 से, अमेरिका अपने शस्त्रागार की सुरक्षा और विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए कंप्यूटर सिमुलेशन और सबक्रिटिकल टेस्ट पर निर्भर रहा है, जबकि उसने परमाणु विस्फोटों पर स्वैच्छिक रोक लगा रखी है। ट्रंप ने ये घोषणा उस वक्त की है, जब कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि चीन और रूस काफी तेजी से परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ा रहे हैं। इसी महीने, राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रूस के पोसाइडन परमाणु-संचालित सुपर टॉरपीडो के सफल परीक्षण की घोषणा की, जिसके बाद 21 अक्टूबर को बुरेवेस्टनिक परमाणु क्रूज मिसाइल का परीक्षण और उसके बाद स्ट्रैटजिक फोर्स के साथ भी रूस ने अलग टेस्ट किया था। वहीं, अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि चीन काफी तेजी से परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ा रहा है और पांच सालों में वो अमेरिका के बराबर पहुंच सकता है।
डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि यह फैसला रूस और चीन के बढ़ते परमाणु कार्यक्रमों के साथ तालमेल बनाए रखने की आवश्यकता की वजह से है। उन्होंने दोनों देशों पर अपनी परीक्षण क्षमताओं को बढ़ाने का आरोप लगाया, जबकि इस दौरान अमेरिका को "स्थिर" बताया।
ट्रंप ने अमेरिका को परमाणु रेस में उतारा
Truth सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि "अमेरिका के पास किसी भी अन्य देश की तुलना में ज्यादा परमाणु हथियार हैं। रूस दूसरे स्थान पर है और चीन काफी दूर तीसरे स्थान पर है, लेकिन पांच साल में यह बराबरी पर पहुंच जाएगा।" उन्होंने आगे कहा, "दूसरे देशों के परीक्षण कार्यक्रमों को देखते हुए, मैंने डिपार्टमेंट ऑफ वॉर (अमेरिकी रक्षा मंत्रालय) को निर्देश दिया है कि वह हमारे परमाणु हथियारों का भी समान स्तर पर परीक्षण शुरू करे। यह प्रक्रिया तुरंत शुरू होगी।" इसके अलावा उन्होंने ये भी कहा कि उन्होंने अपने पहले कार्यकाल में अमेरिका के परमाणु शस्त्रागार के "पूर्ण अपडेशन और रिनोवेशन" करवाया। उन्होंने कहा, "इतनी भयानक विनाशक शक्ति के कारण मैं यह नहीं करना चाहता था, लेकिन मेरे पास कोई और विकल्प नहीं था।"
अमेरिका का बड़ा नीतिगत बदलाव
डोनाल्ड ट्रंप के इस घोषणा के बाद करीब 30 सालों के बाद फिर से अमेरिका जिंदा परमाणु बम का परीक्षण करेगा। 1992 से, अमेरिका अपने शस्त्रागार की सुरक्षा और विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए कंप्यूटर सिमुलेशन और सबक्रिटिकल टेस्ट पर निर्भर रहा है, जबकि उसने परमाणु विस्फोटों पर स्वैच्छिक रोक लगा रखी है। ट्रंप ने ये घोषणा उस वक्त की है, जब कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि चीन और रूस काफी तेजी से परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ा रहे हैं। इसी महीने, राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रूस के पोसाइडन परमाणु-संचालित सुपर टॉरपीडो के सफल परीक्षण की घोषणा की, जिसके बाद 21 अक्टूबर को बुरेवेस्टनिक परमाणु क्रूज मिसाइल का परीक्षण और उसके बाद स्ट्रैटजिक फोर्स के साथ भी रूस ने अलग टेस्ट किया था। वहीं, अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि चीन काफी तेजी से परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ा रहा है और पांच सालों में वो अमेरिका के बराबर पहुंच सकता है।
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