वॉशिंगटन: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से ईरान की चाबहार बंदरगाह प्रोजेक्ट पर भारत के लिए लगाए गए प्रतिबंध लागू हो गए हैं। ईरान के खिलाफ दबाव बनाने की बात कहते हुए ट्रंप प्रशासन ने 16 सितंबर को 2018 में चाबहार बंदरगाह के संबंध में भारत को दी गई प्रतिबंधों से छूट वापस ली थी। इसके बाद सोमवार, 30 सितंबर को ये लागू हो गए हैं। चाबहार पोर्ट पर प्रतिबंध भारत के लिए चिंता का सबब है क्योंकि रणनीतिक तौर पर यह महत्वपूर्ण बंदरगाह है।
अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह का संचालन करने या ईरान स्वतंत्रता एवं प्रसार-रोधी अधिनियम (आईएफसीए) में शामिल होने पर प्रतिबंध लागू किए हैं। ये प्रतिबंध सोमवार से प्रभाव में आ गए हैं। इससे चाबहार परियोजना में शामिल भारतीय संस्थाओं को आपूर्तिकर्ता और फाइनेंसर खोजने में मुश्किल होगी। टैरिफ समेत कई मुद्दों पर भारत-अमेरिका संबंध फिलहाल तनावपूर्ण हैं। ऐसे में चाबहार का घटनाक्रम दोनों देशों के संबंधों को और बिगड़ सकते हैं।
ट्रंप का क्या है प्लानट्रंप प्रशासन का कहना है कि इन प्रतिबंधों का मकसद चाबहार परियोजना को आपूर्ति और फंड से वंचित करना है। अमेरिकी प्रतिबंधों के तहत सरकारी स्वामित्व वाली इंडिया पोर्ट ग्लोबल लिमिटेड सहित भारतीय और विदेशी कंपनियों के पास चाबहार से बाहर निकलने के लिए 45 दिन का समय होगा। ऐसा ना करने पर अमेरिका स्थित उनकी सभी संपत्तिया जब्त कर ली जाएंगी और अमेरिकी लेनदेन पर रोक लग जाएगी।
कानूनी फर्म डेंटन्स के जोशुआ क्रेटमैन ने समाचार एजेंसी को बताया कि प्रतिबंधित सूची में किसी भारतीय फर्म को शामिल करने से एक तरह का व्यापक प्रभाव पैदा हो सकता है क्योंकि बैंक और अन्य कंपनियां नामित व्यवसाय के साथ लेन-देन नहीं कर पाएंगी। क्रेटमैन ने कहा, 'अगर वह प्रतिबंधित संस्था वैश्विक स्तर पर काम करती है। उसे प्रमुख बैंकों या डॉलर क्लियरेंस तक पहुंच की जरूरत है, यह चिंता का कारण है।
भारत पर असरभारत के लिए ईरान का चाबहार पोर्ट खास रणनीतिक महत्व रखता है। पिछले एक दशक में भारत ने अफगानिस्तान और पश्चिम एशिया से संपर्क के लिए चाबहार में 500 से 600 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। चाबहार पोर्ट ना सिर्फ भारत को कई देशों तक सीधे पहुंच देता है, साथ ही साथ पाकिस्तान के ग्वादर का मुकाबला भी भारत यहां से कर सकता है। ट्रंप के प्रतिबंधों से भारत का पूरा प्लान जोखिम में पड़ गया हैं।
एक्सपर्ट का कहना है कि भारत को फिलहाल इन प्रतिबंधों से सीधेतौर पर नुकसान होता दिख रहा है। हालांकि ये प्रतिबंध अमेरिका के लिए आत्मघाती साबित हो सकते है। ये भारत को चीन-रूस ब्लॉक की वैकल्पिक बैंकिंग और वित्तपोषण नेटवर्क की ओर धकेल सकता है। भारत अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर निर्भरता कम करने और पश्चिमी-नियंत्रित वित्तीय नेटवर्क से अलग होने के लिए कदम उठा सकता है।
अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह का संचालन करने या ईरान स्वतंत्रता एवं प्रसार-रोधी अधिनियम (आईएफसीए) में शामिल होने पर प्रतिबंध लागू किए हैं। ये प्रतिबंध सोमवार से प्रभाव में आ गए हैं। इससे चाबहार परियोजना में शामिल भारतीय संस्थाओं को आपूर्तिकर्ता और फाइनेंसर खोजने में मुश्किल होगी। टैरिफ समेत कई मुद्दों पर भारत-अमेरिका संबंध फिलहाल तनावपूर्ण हैं। ऐसे में चाबहार का घटनाक्रम दोनों देशों के संबंधों को और बिगड़ सकते हैं।
ट्रंप का क्या है प्लानट्रंप प्रशासन का कहना है कि इन प्रतिबंधों का मकसद चाबहार परियोजना को आपूर्ति और फंड से वंचित करना है। अमेरिकी प्रतिबंधों के तहत सरकारी स्वामित्व वाली इंडिया पोर्ट ग्लोबल लिमिटेड सहित भारतीय और विदेशी कंपनियों के पास चाबहार से बाहर निकलने के लिए 45 दिन का समय होगा। ऐसा ना करने पर अमेरिका स्थित उनकी सभी संपत्तिया जब्त कर ली जाएंगी और अमेरिकी लेनदेन पर रोक लग जाएगी।
कानूनी फर्म डेंटन्स के जोशुआ क्रेटमैन ने समाचार एजेंसी को बताया कि प्रतिबंधित सूची में किसी भारतीय फर्म को शामिल करने से एक तरह का व्यापक प्रभाव पैदा हो सकता है क्योंकि बैंक और अन्य कंपनियां नामित व्यवसाय के साथ लेन-देन नहीं कर पाएंगी। क्रेटमैन ने कहा, 'अगर वह प्रतिबंधित संस्था वैश्विक स्तर पर काम करती है। उसे प्रमुख बैंकों या डॉलर क्लियरेंस तक पहुंच की जरूरत है, यह चिंता का कारण है।
भारत पर असरभारत के लिए ईरान का चाबहार पोर्ट खास रणनीतिक महत्व रखता है। पिछले एक दशक में भारत ने अफगानिस्तान और पश्चिम एशिया से संपर्क के लिए चाबहार में 500 से 600 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। चाबहार पोर्ट ना सिर्फ भारत को कई देशों तक सीधे पहुंच देता है, साथ ही साथ पाकिस्तान के ग्वादर का मुकाबला भी भारत यहां से कर सकता है। ट्रंप के प्रतिबंधों से भारत का पूरा प्लान जोखिम में पड़ गया हैं।
एक्सपर्ट का कहना है कि भारत को फिलहाल इन प्रतिबंधों से सीधेतौर पर नुकसान होता दिख रहा है। हालांकि ये प्रतिबंध अमेरिका के लिए आत्मघाती साबित हो सकते है। ये भारत को चीन-रूस ब्लॉक की वैकल्पिक बैंकिंग और वित्तपोषण नेटवर्क की ओर धकेल सकता है। भारत अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर निर्भरता कम करने और पश्चिमी-नियंत्रित वित्तीय नेटवर्क से अलग होने के लिए कदम उठा सकता है।
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