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घर में नहीं दाने अम्मा चली भुनाने... तुर्की के एर्दोगन ने UN में फिर कश्मीर पर किया बकवास, कैसे जनता को बनाते हैं बेवकूफ? जानें

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न्यूयॉर्क/अंकारा: पाकिस्तान प्रेम में तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन ने एक बार फिर से कश्मीर का मुद्दा उठाया है। उन्होंने कश्मीर समस्या का समाधान यूनाइटेड नेशंस के तहत करने की मांग की है। इसके अलावा उन्होंने अप्रैल-मई महीने में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष का भी जिक्र किया। लेकिन एर्दोगन अपने घर की दुर्दशा नहीं बताए। कश्मीर पर बोलने वाले राष्ट्रपति एर्दोगन का हम सच से सामना करवाने जा रहे हैं। हम आपको बताते हैं कि कैसे एर्दोगन, भारत और पाकिस्तान के बीच आकर अपनी घरेलू समस्या से बचना चाह रहे हैं।



तुर्की की अर्थव्यवस्था पिछले कई सालों से बुरे हाल में है। तुर्की की करेंसी लिरा की वैल्यू डॉलर के मुकाबले लगातार गिर रही है और अगस्त 2024 में महंगाई दर 60% से ऊपर पहुंच गई थी। वहीं सितंबर 2025 में वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक महंगाई दर करीब 40 प्रतिशत से ज्यादा है। तुर्की में आम जनजीवन के जरूरी सामान, दवाइयां और बिजली के बिल इतने ज्यादा महंगे हो गये हैं कि आम जनता के लिए रोजमर्रा की जिंदगी जीना दूभर हो गया है। तुर्की की एक और बहुत बड़ी दिक्कत बेरोजगारी है। एर्दोगन मुस्लिम दुनिया का खलीफा बनना चाहते हैं, लेकिन बेरोजगारों को रोजगार नहीं दे पा रहे हैं।



तुर्की में बेरोजगारी को लेकर प्रदर्शन

तुर्की के बड़े शहरों, जैसे इस्तांबुल और अंकारा में पिछले दिनों लोगों ने सड़कों पर उतरकर सरकार की नीतियों के खिलाफ भारी विरोध-प्रदर्शन किए हैं। विपक्षी दल भी एर्दोगन पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने अपने लंबे शासनकाल में देश की तमाम संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर किया है और उनके शासनकाल में देश का आर्थिक प्रबंधन पूरी तरह नाकाम रहा है। ऐसे माहौल में जनता की नाराज़गी से बचने के लिए एर्दोगन लगातार वैश्विक मंचों पर संवेदनशील मुस्लिम मुद्दे उठाकर अपना राजनीतिक आधार बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं। ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स की रिपोर्ट के मुताबिक तुर्की में आवास, बिजली, पानी, गैस की दरों में 60% से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। सरकारी आंकड़ों में तु्र्की में बेरोजगारी दर 9 प्रतिशत बताई गई है, जबकि कंट्री इकोनॉमी की रिपोर्ट के मुताबिक तुर्की में बेरोजगारी दर 17 प्रतिशत से ज्यादा है। इसके अलावा तुर्की के होटलों में खाना पिछले दो सालों में 4 से 5 गुना बढ़ चुके हैं।



इसी रणनीति के तहत एर्दोगन ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच से कश्मीर का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि कश्मीर समस्या का समाधान UN प्रस्तावों और डायलॉग के आधार पर होना चाहिए और तुर्की, कश्मीरियों के साथ है। उन्होंने कहा कि "आतंकवाद-रोधी सहयोग पर भारत और पाकिस्तान के बीच सहयोग जरूरी है।" उन्होंने कहा, "कश्मीर के मुद्दे का समाधान संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के आधार पर, कश्मीर में हमारे भाइयों और बहनों के सर्वोत्तम हित में, बातचीत के जरिए होना चाहिए, ऐसी हमारी आशा है।" यह बयान हूबहू पाकिस्तान की लाइन है, जो दशकों से कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उछालने की कोशिश करता रहा है। यह पहली बार नहीं है, जब एर्दोगन ने कश्मीर पर बोला है। इससे पहले फरवरी 2020 में भी पाकिस्तान दौरे के दौरान भी उन्होंने संसद में यही कहा था और खुद को कश्मीरियों का साथी बताया था। आपको बता दें कि तुर्की की घरेलू राजनीति में इस्लाम को आधार बनाकर एर्दोगन काफी लंबे समय से शासन कर रहे हैं। उनके शासनकाल में तुर्की में इस्लामिक कट्टरपंथ काफी ज्यादा हावी हो गया है। एर्दोगन लगातार कश्मीर और फिलीस्तीन की बातें करते रहते हैं और अपने वोटबैंक को साधने की कोशिश करते रहते हैं।



एर्दोगन के बयान पर भारत की कड़ी प्रतिक्रिया

भारत ने राष्ट्रपति एर्दोगन के कश्मीर पर बयानबाजी पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने साफ कहा है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और किसी अन्य देश को उस पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है। भारत ने उल्टा सवाल उठाया कि एर्दोगन को पाकिस्तान की आतंकी नीतियों पर बोलना चाहिए था, जो कश्मीर में हिंसा और अस्थिरता को बढ़ावा देती हैं। एर्दोगन जब भी घरेलू मोर्चे पर फंसते हैं, तब तब वो कश्मीर और फिलीस्तीन जैसे मुद्दे को उछालते रहते हैं, जैसे इन दिनों इजरायल को लेकर जहर उगलते रहते हैं, ताकि घरेलू जनता को बाहरी बहस में उलझा कर रखा जाए।

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