राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर गर्मा-गर्मी देखने को मिली है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) के संयोजक और नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल द्वारा राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी) के पुनर्गठन और हाल ही में हुई एसआई (उप निरीक्षक) भर्ती को रद्द करने की मांग को लेकर जयपुर में किए गए धरना-प्रदर्शन ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। इस विरोध के जवाब में राज्य सरकार में मंत्री केके विश्नोई ने बेनीवाल पर तीखा हमला बोला है।
मंत्री केके विश्नोई ने बेनीवाल के विरोध को "राजनीतिक नौटंकी" बताते हुए कहा कि, "आज राजस्थान की राजनीति में हनुमान बेनीवाल से अधिक अविश्वसनीय नेता कोई और नहीं हैं। इन्होंने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में केवल पाला बदलने का ही काम किया है।" विश्नोई ने यह भी आरोप लगाया कि बेनीवाल की हर मांग का मकसद केवल जनभावनाओं को भड़काकर राजनीतिक लाभ उठाना होता है, न कि वास्तव में जनता की समस्याओं का समाधान करना।
हनुमान बेनीवाल ने अपने धरने के दौरान आरपीएससी में भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर गहन जांच की मांग की और आयोग के संपूर्ण पुनर्गठन की बात कही। उन्होंने हाल ही में हुई एसआई भर्ती परीक्षा में गड़बड़ियों का आरोप लगाते हुए कहा कि इससे हजारों युवाओं के भविष्य पर संकट मंडरा रहा है। उनके अनुसार, जब तक पारदर्शी व्यवस्था नहीं बनेगी, तब तक नौकरियों में भ्रष्टाचार बंद नहीं होगा।
धरने में बड़ी संख्या में छात्र, बेरोजगार युवक-युवतियाँ, और पार्टी समर्थक शामिल हुए। बेनीवाल ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने उनकी मांगों पर त्वरित और ठोस निर्णय नहीं लिया, तो राज्यभर में आंदोलन तेज किया जाएगा।
दूसरी ओर, केके विश्नोई ने यह भी कहा कि सरकार आरपीएससी को बेहतर और पारदर्शी बनाने के लिए पहले से ही ठोस कदम उठा रही है। उन्होंने विपक्ष पर केवल "राजनीतिक स्टंट" करने का आरोप लगाते हुए कहा कि जनता अब इन हथकंडों को समझ चुकी है।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यह विवाद आगामी पंचायत और विधानसभा चुनावों की तैयारी का एक हिस्सा भी हो सकता है। एक ओर जहां बेनीवाल खुद को युवाओं और बेरोजगारों का नेता साबित करने में जुटे हैं, वहीं कांग्रेस सरकार उन पर राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने का आरोप लगा रही है।
इस घटनाक्रम ने न सिर्फ आरपीएससी जैसे संवैधानिक संस्थान को केंद्र में ला दिया है, बल्कि राज्य की राजनीतिक दिशा को भी नया मोड़ दे दिया है। आने वाले समय में इस मुद्दे पर क्या राजनीतिक समीकरण बनते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा।
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