कृषि क्षेत्र में अपनी कुशलता और पद्मश्री पुरस्कारों के लिए मशहूर बाराबंकी को अफीम की खेती का गढ़ माना जाता है। 'काले सोने' (अफीम) की खेती में इस जिले की अलग पहचान है। इस साल हरख ब्लॉक का करीमाबाद गांव प्रदेश में सबसे ज्यादा अफीम उत्पादन करने वाला गांव बनकर उभरा है।
इस गांव के कुल 149 किसानों को अफीम की खेती के लिए लाइसेंस मिला है, जिसमें 84 किसानों को लैंसिंग और 65 को सीपीएस (कंसेंट्रेटेड पोस्ता स्ट्रॉ) विधि के लिए लाइसेंस मिला है। गांव के प्रधान हर्षित पटेल ने बताया कि गांव में अफीम की खेती 1970 में शुरू हुई थी और तब से लगातार बढ़ रही है, जिसमें उनका खुद का परिवार भी शामिल है।
अफीम की खेती बाराबंकी, अयोध्या, लखनऊ, रायबरेली, मऊ और गाजीपुर समेत कई जिलों में होती है। हर किसान को 10 'एरी' (1000 वर्ग मीटर) जमीन का लाइसेंस मिलता है। इस वर्ष 3080 किसानों को लाइसेंस प्राप्त हुए, जिनमें से 629 को लैंसिंग की अनुमति दी गई तथा शेष 2454 को सीपीएस विधि के लिए लाइसेंस प्राप्त हुआ, जिसमें केवल पोस्त की फली एकत्र करने की अनुमति है।
करीमाबाद के किसानों, जिनमें विनोद वर्मा, नरेंद्र वर्मा, सुरेंद्र वर्मा और शिव कुमार शामिल हैं, ने इस वर्ष अच्छी फसल वृद्धि की सूचना दी, लेकिन प्रतिकूल मौसम की स्थिति ने उत्पादन को प्रभावित किया और नुकसान पहुंचाया।
नवंबर में बुवाई की गई, और फसल 100-दिवसीय चक्र, मार्च तक तैयार हो गई। 10 'एरी' से लगभग 6 किलोग्राम अफीम की अनुमानित उपज की उम्मीद है। करीमाबाद ने इस वर्ष सबसे अधिक अफीम की आपूर्ति की, जिसमें जिले के 263 लाइसेंस प्राप्त किसानों से लगभग 1574 किलोग्राम अफीम एकत्र की गई।
विशेषज्ञों की देखरेख में हरख शहर में पोस्त की फली एकत्र करने का काम चल रहा है। जिला अफीम अधिकारी करुण बिलग्रामी के अनुसार, सीपीएस विधि से किसानों का नुकसान कम होने की उम्मीद है।
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