बेंगलुरु, 4 अगस्त (Udaipur Kiran) । कर्नाटक राज्य में अनुसूचित जातियों के अंदरूनी आरक्षण को लेकर बने न्यायमूर्ति एचएन नागमोहनदास आयोग ने सोमवार को अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री सिद्धरामैया को सौंप दी है। आयोग की 1766 पृष्ठों वाली विस्तृत रिपोर्ट में छह महत्वपूर्ण सिफारिशें शामिल की गई हैं। इसके साथ
ही राज्य में लगभग 30 वर्ष से चल रहे अंदरूनी आरक्षण के संघर्ष अब सफल हाेने की कगार पर है।
दरअसल, उच्चतम न्यायालय ने 1 अगस्त 2024 को दविंदर सिंह मामले में ऐतिहासिक निर्णय देते हुए स्पष्ट किया था कि अनुसूचित जातियों के उपवर्गीकरण का अधिकार राज्य सरकारों को है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुरूप है। काेर्ट ने इसे सामाजिक न्याय का विस्तार करार देते हुए कहा था कि यह किसी समुदाय के आरक्षण अधिकारों को प्रभावित किए बिना किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद राज्य सरकार ने जनवरी 2025 में
न्यायमूर्ति एचएन नागमोहनदास के नेतृत्व में आयाेग गठन किया था। आयाेग ने 27 मार्च 2025 को अपनी अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए व्यापक और सटीक डेटा संग्रह की आवश्यकता बताई थी। इसके बाद राज्य सरकार ने तत्काल एक समग्र सर्वेक्षण का निर्णय लिया।
विशिष्ट जातियों के आरक्षण की कार्यान्वयन संबंधी अध्ययन के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश एचएन नागमोहन दास की समिति ने आज अपनी अध्ययन रिपोर्ट मुख्यमंत्री सिद्धारमैया काे साैंप दी है। इस रिपोर्ट में सर्वेक्षण के डेटा और विवरणों के साथ मिलाकर कुल लगभग 1766 पृष्ठों और 6 सिफारिशों को शामिल किया गया है। इस रिपाेर्ट काे सामाजिक न्याय के कार्यान्वयन में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जा रहा है।
तीन मानदंडों पर उपवर्गीकरण की सिफारिश
उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों के अनुसार आयोग ने सक्रिय रूप से आंकड़ों का विश्लेषण किया और शैक्षणिक पिछड़ापन, सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व की कमी और सामाजिक आधार को मुख्य मापदंड मानते हुए उपवर्गीकरण की सिफारिश की। यह रिपोर्ट सरकार को राज्य की अनुसूचित जातियों में सामाजिक रूप से अधिक वंचित वर्गों को आरक्षण का वास्तविक लाभ पहुंचाने में सहायता करेगी। रिपोर्ट के आधार पर जल्द ही नई आरक्षण व्यवस्था पर निर्णय लिया जा सकता है।
मई से जुलाई तक चले सर्वेक्षण में 1.07 करोड़ की भागीदारी
5 मई से 6 जुलाई 2025 के बीच किए गए इस सर्वेक्षण में राज्य के 27,24,768 परिवारों तथा 1,07,01,982 व्यक्तियों ने भाग लिया। यह सर्वेक्षण शैक्षणिक, सामाजिक और रोजगार की दृष्टि से अनुसूचित जातियों की वास्तविक स्थिति को जानने के लिए किया गया था।
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(Udaipur Kiran) / राकेश महादेवप्पा
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